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Sanchar Saathi: 'संचार साथी' की अनिवार्यता वापस; जानें दूसरे लोकतांत्रिक देश कैसे करते हैं अपनी साइबर सुरक्षा?

टेक डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: सुयश पांडेय Updated Thu, 04 Dec 2025 12:11 PM IST
सार

निजता को लेकर लगे आरोपों के बाद संचार साथी एप की अनिवार्यता हटा दी गई है। विपक्ष लगातार इस एप का विरोध कर रहा था। जानें अमेरिका, यूरोपीय संघ, यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों में बिना सरकारी एप थोपे साइबर सुरक्षा कैसे की जाती है?

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Sanchar Saathi Row: India Drops Mandatory App Rule, How Other Countries Fight Cyber Crime
संचार साथी एप - फोटो : Sanchar Sathi
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विस्तार
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भारत सरकार ने सभी फोन कंपनियों को निर्देश दिया था कि अगले 90 दिनों में आने वाले सभी नए स्मार्टफोन में संचार साथी एप प्री-इंस्टॉल होना जरूरी होगा। पुराने स्मार्टफोन में भी इसे सॉफ्टवेयर अपडेट के जरिए जोड़ने के आदेश दिए गए थे। एपल, सैमसंग, शाओमी जैसी बड़ी कंपनियों को 120 दिनों के भीतर इसकी अनुपालन रिपोर्ट जमा करनी थी। जैसे ही यह निर्देश सामने आया, सोशल मीडिया पर गोपनीयता और सरकारी निगरानी को लेकर बड़ी बहस शुरू हो गई है। लेकिन अब बढ़ते विवादों के बीच केंद्र सरकार ने एप के प्री-इंस्टॉलेशन की अनिवार्यता को हटाने का फैसला किया है।

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सरकार का कहना है कि यह कदम चोरी हुए फोन ट्रैक करने, फर्जी IMEI की बिक्री रोकने और टेलीकॉम संसाधनों के दुरुपयोग पर नजर रखने के लिए जरूरी है। लेकिन सवाल उठ रहा है। क्या किसी ऐसे एप को अनइंस्टॉल या डिसेबल न कर पाने का मॉडल लोकतांत्रिक देशों में आम है? इसका जवाब है नहीं। आइए जानते हैं दुनिया साइबर अपराध से कैसे निपटती है?

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1. अमेरिका

अमेरिका किसी भी सरकारी एप को प्री-इंस्टॉल करने का आदेश नहीं देता। यहां साइबर सुरक्षा के लिए दो प्रमुख तरीके अपनाए जाते हैं। सभी टेलीकॉम ऑपरेटरों के लिए STIR/SHAKEN प्रोटोकॉल अनिवार्य है, जिससे कॉल स्पूफिंग रोकी जाती है। यूएस की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी FBI (फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन) का 24/7 ऑपरेशन सेंटर CyWatch साइबर अपराधों पर नजर रखता है। CISA निजी कंपनियों के साथ मिलकर थ्रेट इंटेलिजेंस साझा करता है। यूजर्स पर कोई एप थोपने की बजाय, अमेरिका टार्गेटेड सर्विलांस और मजबूत आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर पर निर्भर करता है।


यह भी पढ़ें: सरकार ने संचार साथी एप के प्री-इंस्टॉलेशन की अनिवार्यता हटाई, कहा-इसकी स्वीकार्यता बढ़ रही

2. यूनाइटेड किंगडम (UK)

यूके कोई सरकारी एप प्री-इंस्टॉल नहीं करवाता। यहां ऑनलाइन सेफ्टी एक्ट 2023 टेक कंपनियों पर जिम्मेदारी डालता है। फेसबुक, गूगल जैसे प्लेटफॉर्म्स पर धोखाधड़ी करने वाले कंटेंट और स्कैम रोकने की कानूनी जिम्मेदारी है। यूजर-जनरेटेड कंटेंट की निगरानी भी इन्हीं प्लेटफार्म्स की जिम्मेदारी है। इस मॉडल में सरकार सीधे फोन या एप में हस्तक्षेप नहीं करती।

3. यूरोपीय संघ (EU)

यूरोपीय संघ डाटा प्रोटेक्शन और साइबर सुरक्षा में सबसे सख्त माना जाता है। लेकिन फिर भी ईयू किसी भी सरकारी एप का प्री-इंस्टॉलेशन अनिवार्य नहीं करता। साइबर रेजिलिएंस एक्ट के तहत हर डिवाइस को यूजर इस्तेमाल के पहले ही बॉक्स से बाहर सुरक्षित होना चाहिए। हर डिवाइस में कम से कम 5 साल के सिक्योरिटी अपडेट अनिवार्य हैं। डिजिटल सर्विसेज एक्ट के तहत गूगल, मेटा, टिकटॉक जैसे प्लेटफॉर्म स्कैम हटाने के लिए जिम्मेदार हैं। ईयू का EUDI वॉलेट एप है लेकिन यह पूरी तरह स्वैच्छिक है। इसके साथ किसी प्री-इंस्टॉलेशन की अनिवार्यता नहीं है।

4. सिंगापुर

सिंगापुर में स्कैमशील्ड नाम का एप है जो पुलिस डाटाबेस के आधार पर कॉल और SMS फिल्टर करता है। लेकिन एप पूरी तरह वैकल्पिक है। किसी भी फोन में यह प्री-इंस्टॉल नहीं होता।

यह भी पढ़ें: खोया फोन होगा ब्लॉक... फर्जी कॉल पर लगेगी रोक, जानिए 'संचार साथी एप' के 5 बड़े फीचर्स

5. दक्षिण कोरिया 

कोरिया ने एक बार SmartSheriff नाम का सरकारी एप अनिवार्य किया था, लेकिन यह सिर्फ नाबालिगों के लिए था। यह एक तरह का पैरेंटल कंट्रोल एप था। ये एप संवेदनशील शब्दों पर अलर्ट भेजता था। फिर एप में गंभीर सुरक्षा खामियां मिलने के बाद 2015 में इसे हटा लिया गया। इसके बाद किसी लोकतंत्र में ऐसा कदम दोबारा नहीं उठाया गया।

रूस में अनिवार्य हैं कुछ सरकारी एप्स 

अगर विश्व में किसी देश की तुलना की जाए तो भारत का मॉडल रूस जैसा दिखता है। रूस में 19 सरकारी एप्स अनिवार्य रूप से प्री-इंस्टॉल होते हैं। इनमें आईडी और सरकारी सर्विसेज के एप शामिल हैं। हाल ही में देश में मैक्स सुपर एप भी अनिवार्य किया गया है। जोकि लोकतांत्रिक देशों में आमतौर पर देखने नहीं मिलता।

ज्यादातर लोकतांत्रिक देशों में सरकारें एप प्री-इंस्टॉल करने को बाध्य नहीं करतीं। वे आमतौर पर साइबर सुरक्षा को कानूनों को सख्त करती हैं, सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स की जिम्मेदारी बढ़ाती हैं और आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर को सुदृढ़ बनाती हैं। भारत का मॉडल अपने आप में अद्वितीय है, क्योंकि यहां एक ऐसा एप अनिवार्य किया जा रहा है जिसे यूज़र हटाने का विकल्प भी नहीं रखता।

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