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टेक्नोलॉजीः 5जी की बात छोड़िए, चीन और अमेरिका में छिड़ गई है 6जी की होड़

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, हांगकांग Published by: Harendra Chaudhary Updated Wed, 10 Feb 2021 07:07 PM IST
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सार

जानकारों के मुताबिक 5जी की तुलना में 6जी 100 गुना ज्यादा तेज होगा। इससे ऐसी सेवाएं हकीकत बन सकेंगी, जिन्हें अभी तक विज्ञान कथाओं में ही पढ़ा जाता रहा है...

Technology: China and USA started 6G technology trial besides 5G technology
Realme V11 5G - फोटो : Realme
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विस्तार
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दुनिया के ज्यादातर देशों में अभी इंटरनेट की 5जी सेवा उपलब्ध नहीं हो सकी है, लेकिन अमेरिका और चीन ने 6जी लॉन्च करने के लिए काम करना शुरू कर दिया है। माना जा रहा है कि इनमें जो देश पहले 6जी को विकसित कर लेगा, उसे दुनिया में बन रही नई अर्थव्यवस्था में बड़ा शुरुआती लाभ हासिल हो जाएगा। जानकारों के मुताबिक 5जी की तुलना में 6जी 100 गुना ज्यादा तेज होगा। इससे ऐसी सेवाएं हकीकत बन सकेंगी, जिन्हें अभी तक विज्ञान कथाओं में ही पढ़ा जाता रहा है।

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तकनीक विशेषज्ञों में 6जी की संभावनाओं पर चर्चा लगभग दो साल से चल रही है। माना जा रहा है कि अमेरिका और चीन में इस समय जैसी होड़ है, उसे देखते हुए दोनों देश इसे विकसित करने में अपने पूरे संसाधन और विशेषज्ञता को झोंक देंगे। नोकिया कंपनी की रिसर्च शाखा बेल लैब्स में एक्सेस एंड डिवाइसेज शाखा के प्रमुख पीटर वेटर ने टोक्यो से प्रकाशित अखबार जापान टाइम्स से कहा- यह प्रयास इतना अहम है कि हथियारों की होड़ जैसी शक्ल ले सकता है। लेकिन इसके लिए अनुसंधानकर्ताओं की फौज की जरूरत है।
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अमेरिका के पूर्व ट्रंप प्रशासन की नीतियों के कारण चीन की टेक्नोलॉजी कंपनियों को काफी नुकसान हुआ। इसके बावजूद चीन की कंपनियां 5जी तकनीक में अग्रणी बन कर उभरीं। अमेरिका ने उसे रोकने की पूरी कोशिश की। लेकिन चीन की कंपनियां आज दुनिया के सबसे बड़े हिस्से में 5जी सेवाएं दे रही हैं। खासकर हुवावे कंपनी का कारोबार सबसे सस्ती सेवा देने के कारण दुनिया भर में फैल गया है।

इसलिए अब अमेरिका में समझ बनी है कि अगर उसने पहले 6जी तकनीक विकसित कर ली, तो अभी चीन को जो बढ़त मिली है, उसका मुकाबला वह कर सकेगा। अमेरिका स्थित सूचना एवं संचार कंपनी फ्रॉस्ट एंड सुलिवान में वरिष्ठ निदेशक विक्रांत गांधी ने जापान टाइम्स से कहा, 5जी की तरह अमेरिका 6-जी के मामले में अपनी नेतृत्वकारी भूमिका नहीं खोने देगा। ऐसी संभावना है कि 6जी के लिए प्रतिस्पर्धा 5जी के मुकाबले कहीं ज्यादा तीखी होगी।

फिलहाल चीन 6जी के मामले में भी आगे निकल गया लगता है। पिछले नवंबर में उसने एक उपग्रह छोड़ा, जो 6जी ट्रांसमिशन के लायक एयरवेव्स का परीक्षण करने में सक्षम है। हुवावे कंपनी कनाडा में अपना 6जी रिसर्च सेंटर बना चुकी है। उधर दूरसंचार उपकरण बनाने वाली कंपनी जेडटीई कॉर्प ने चाइना यूनिकॉम हांगकांग लिमिटेड के साथ इस तकनीक पर काम करने के लिए साझा उद्यम बनाया है।

ट्रंप प्रशासन ने चीनी कंपनियों की प्रगति रोकने के लिए उन पर प्रतिबंध लगाए थे। जेडटीई पर 2018 अमेरिकी तकनीक खरीदने पर रोक लगा दी गई थी। जानकारों का कहना है कि अमेरिका आगे भी अगर इस राह पर चला तो हुवावे की 6जी विकसित करने की कोशिशों पर खराब असर पड़ सकता है। उधर अमेरिका ने अपनी तैयारी तेजी से शुरू कर दी है। पिछले अक्टूबर में अमेरिकी टेलीकॉम स्टैंडर्ड डेवलपर एटीआईएस ने नेक्स्ट जी एलायंस नाम से एक कंपनी समूह निर्मित किया। इसका मकसद 6जी के मामले में उत्तर अमेरिका के नेतृत्व को आगे बढ़ाना बताया गया। इस कंपनी समूह में एपल इंक, एटी एंड टी इंक, क्वालकॉम इंक, गूगल, और सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी शामिल हैं। लेकिन इसमें हुवावे को शामिल नहीं किया गया है।

हुवावे 5जी तकनीक के मामले में आगे निकलने पर अमेरिका के निशाने पर आ गई थी। अमेरिका ने उस पर जासूसी का आरोप लगाया था। उसके बाद जापान, ऑस्ट्रेलिया, स्वीडन और ब्रिटेन ने उस पर रोक लगा दी। लेकिन रूस, फिलिपीन्स, थाईलैंड और अफ्रीका और पश्चिम एशिया के अनेक देशों ये कंपनी 5जी सेवा दे रही है। इसके अलावा उसके पास चीन का विशाल बाजार भी है।

इस बीच यूरोपियन यूनियन ने भी अपनी 6जी परियोजना शुरू की है। इसका नेतृत्व नोकिया कंपनी कर रही है। इसमें उसके एरिक्सन एबी और टेलीफोनिका एसए कंपनियां भी हैं। ब्रसेल्स स्थित थिंक टैंक यूरोपियन पॉलिसी सेंटर के वरिष्ठ सलाहकार पॉल टिमर्स के मुताबिक फिलहाल लगता है कि चीन पर लगे निगरानी और दमन के आरोपों के कारण इस बात की संभावना है कि वह अमेरिका और यूरोप के बाजार खो दे।

फिलहाल, अमेरिका और यूरोप में जो कोशिशें हो रही हैं, उनका यही संकेत है कि ये दोनों बड़े क्षेत्र चीन को 6जी तकनीक में आगे नहीं निकलने देना चाहते। लेकिन असल में क्या होगा, इस बारे में अभी अनुमान लगाना मुश्किल है।

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