देवभूमि में बंदरों की भरमार: नर से दोगुनी मादा, आक्रामकता से लोगों में भय; शोध में कई चौंकाने वाले खुलासे
रामनगरी में नरों की तुलना में मादा बंदरों की संख्या दोगुना है। बंदरों की बढ़ती जनसंख्या और उसके प्रबंधन पर किए जा रहे शोध में कई रोचक बातें सामने आई हैं। आगे पढ़ें पूरी खबर...
विस्तार
रामनगरी अयोध्या में नगर निगम सीमा में बंदरों की बढ़ती जनसंख्या और उसके प्रबंधन पर शोध किया जा रहा है। शोध के जरिये यह पता लगाने की कोशिश की जाएगी कि कैसे इनकी जनसंख्या को नियंत्रित किया जा सकता है? इसके लिए क्या उपाय किए जाने चाहिए? खान-पान के क्या तरीके अपनाकर मानव-जीव संघर्ष को रोका जा सकता है? बंदरों के प्रबंधन पर यह शोध कार्य अवध विश्वविद्यालय से संबद्ध साकेत महाविद्यालय के जंतु विज्ञान विभाग की ओर से किया जा रहा है।
बंदरों के प्रबंधन पर शोध कर रहे डॉ. प्रशांत कुमार ने बताया कि शोध के लिए पूरे नगर निगम क्षेत्र को लिया गया है। अब तक जो जानकारी मिल पाई है, उसके अनुसार अयोध्या नगर में इनका वितरण असमान है। किसी खास इलाके राम की पैड़ी व आचार्य नरेंद्र देव नगर में इनकी संख्या अधिक है तो राष्ट्रीय राजमार्ग के आसपास के इलाकों में इनकी संख्या या तो कम है या फिर नहीं है। इनके समूह का आकार 15-20 से लेकर 100 से ज्यादा तक देखा गया। हालांकि, समूह के आकार का निर्धारण सामूहिक बसावट के समय बड़ी समस्या है।
मादाओं की संख्या नर से दो गुना तक...
डॉ. प्रशांत के अनुसार शोध में अब तक जो जानकारियां उपलब्ध हुई हैं उसके अनुसार मादाओं की संख्या नर से दो गुना तक है। इसके अलावा शिशु-वयस्क अनुपात भी तीन गुना से ज्यादा संभव है। प्रजननशील वयस्क भी अप्रजनन शील उम्रदराज की अपेक्षा ज्यादा देखे गए हैं। इससे यह कहा जा सकता है कि निकट भविष्य में इनकी जनसंख्या और तेजी से बढ़ सकती है।
उन्होंने बताया कि उपलब्ध पुस्तकों तथा शोध सामग्रियों के अध्ययन से यह पता लगता है कि इस दिशा में अब तक कोई ठोस कार्य नहीं किया गया है। यहां तक कि अयोध्या नगर में बंदरों की संख्या व उनकी बसावट के संबंध में भी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। बंदरों के प्रबंधन के लिए यह बिंदु काफी महत्वपूर्ण हैं।
बंदर धार्मिक पुस्तकों में देवताओं के सदृश्य
फलदार वृक्ष की कमी मनुष्यों से विवाद के लिए कर रही मजबूर उन्होंने बताया कि बंदर धार्मिक पुस्तकों में देवताओं के सदृश्य बताए गए हैं। जैव विकास के सिद्धांत के अनुसार बंदर, मनुष्यों से काफी नजदीकी रखते हैं। मनुष्यों की तरह ही ये भी जंतु जगत में अत्यधिक बुद्धिमान और संवेदनशील होते हैं।
इनकी बसावट मनुष्यों की बसावट से मेल खाती नजर आती है। विगत कुछ वर्षों में तेज नगरीकरण और वास स्थानों की लगातार होती कमी से समस्या और विकराल रूप लेती जा रही है। फलदार वृक्षों की लगातार होती कमी इन्हें मनुष्यों से विवाद के लिए मजबूर कर रही है। इसलिए नगर में फलदार पौधे लगाए जाने चाहिए। शोध छात्र सुनील कुमार भी इस कार्य में लगे हुए हैं।
जनसंख्या अधिक होने से समस्या के रूप में देखा जाने लगा
डॉ. प्रशांत कुमार का कहना है कि अयोध्या नगर में बंदरों की आबादी काफी अधिक है। चूंकि, यहां इनकी जनसंख्या ज्यादा है। इस वजह से इन्हें समस्या के रूप में देखा जाने लगा है। घर से सामान लेकर भाग जाने या हमला करने की खबरें भी आती हैं। इससे बचने के लिए लोग अतिरिक्त प्रबंध करते हैं और जालियां लगाते हैं। झटका वाले तार भी लगाते हैं। इससे मकान निर्माण की लागत बढ़ जाती है। यह मानव-जीव संघर्ष की मिसाल है।
साकेत महाविद्यालय में जीव विज्ञान विभाग के प्रो. डॉ. प्रशांत कुमार ने कहा कि जिस जीव में हम देव का प्रतिबिंब देखते हैं, वे आज हमारी जूठन खाने को विवश हैं। बंदरों की समस्या से त्रस्त आमजन बंदरों के साथ अमानवीय व्यवहार कर रहे हैं। मानवीय दृष्टि से इस समस्या का हल निकाल कर ही हम अपने आराध्यों का वास्तविक पूजन कर पाएंगे। इसलिए शोध के जरिये बंदरों के प्रबंधन का उपाय ढूंढने की कोशिश होगी।
