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Azamgarh News: जीवित्पुत्रिका कल, माताएं रखेंगी निर्जला व्रत
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08 जीवित्पुत्रिका पर्व को लेकर चौक पर खरीदारी करती महिलाएं। संवाद
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अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाने वाला जीवित्पुत्रिका (जिउतिया) व्रत इस वर्ष 14 सितंबर को श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाएगा। इस अवसर पर माताएं अपने पुत्रों की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य की कामना के लिए निर्जला व्रत रखेंगी।
इस व्रत में महिलाएं 24 घंटे तक अन्न और जल का त्याग करती हैं और शाम को विधिवत पूजन करती हैं। व्रत का पारण अगले दिन यानी 15 सितंबर को सुबह 6:28 बजे के बाद किया जाएगा।
ज्योतिषाचार्य नीतेश मिश्रा ने बताया कि इस व्रत का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यंत गहरा है। जीवित्पुत्रिका व्रत के प्रभाव से संतान को सुख, ऐश्वर्य और दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
व्रत की पूर्व संध्या पर यानी 13 सितंबर को व्रती महिलाएं परंपरानुसार तरोई (तोरी) की सब्जी का सेवन करती हैं। इसके अगले दिन निर्जला व्रत रखकर धूप, दीप, अक्षत, रोली और विभिन्न प्रकार के फलों से जिउतिया का पूजन करती हैं।
पूजन के दौरान जीवित्पुत्रिका की कथा भी श्रवण की जाती है। इसके बाद अगली सुबह स्नान आदि कर भगवान की पूजा कर व्रत का पारण किया जाता है और चांदी की जिउतिया (जीवित्पुत्रिका का प्रतीक) धारण की जाती है।
त्योहार को लेकर बाजारों में विशेष चहल-पहल देखने को मिल रही है। चांदी की जिउतिया की दुकानों पर खरीदारी जोरों पर है। ये 250 रुपये से लेकर 1000 रुपये तक में बिक रही हैं। मान्यता है कि मनौती पूर्ण होने पर माताएं चांदी की जिउतिया माता को अर्पण करती हैं, जिससे पुत्र को लंबी उम्र का आशीर्वाद मिलता है।
ज्योतिषाचार्य नीतेश पांडेय ने बताया कि व्रत के दौरान माताओं को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। साथ ही साफ-सफाई, वाणी की मर्यादा, और मन की पवित्रता बनाए रखना आवश्यक है। व्रत के समय किसी भी प्रकार के अपशब्द या नकारात्मक विचार वर्जित माने जाते हैं।

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इस व्रत में महिलाएं 24 घंटे तक अन्न और जल का त्याग करती हैं और शाम को विधिवत पूजन करती हैं। व्रत का पारण अगले दिन यानी 15 सितंबर को सुबह 6:28 बजे के बाद किया जाएगा।
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ज्योतिषाचार्य नीतेश मिश्रा ने बताया कि इस व्रत का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यंत गहरा है। जीवित्पुत्रिका व्रत के प्रभाव से संतान को सुख, ऐश्वर्य और दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
व्रत की पूर्व संध्या पर यानी 13 सितंबर को व्रती महिलाएं परंपरानुसार तरोई (तोरी) की सब्जी का सेवन करती हैं। इसके अगले दिन निर्जला व्रत रखकर धूप, दीप, अक्षत, रोली और विभिन्न प्रकार के फलों से जिउतिया का पूजन करती हैं।
पूजन के दौरान जीवित्पुत्रिका की कथा भी श्रवण की जाती है। इसके बाद अगली सुबह स्नान आदि कर भगवान की पूजा कर व्रत का पारण किया जाता है और चांदी की जिउतिया (जीवित्पुत्रिका का प्रतीक) धारण की जाती है।
त्योहार को लेकर बाजारों में विशेष चहल-पहल देखने को मिल रही है। चांदी की जिउतिया की दुकानों पर खरीदारी जोरों पर है। ये 250 रुपये से लेकर 1000 रुपये तक में बिक रही हैं। मान्यता है कि मनौती पूर्ण होने पर माताएं चांदी की जिउतिया माता को अर्पण करती हैं, जिससे पुत्र को लंबी उम्र का आशीर्वाद मिलता है।
ज्योतिषाचार्य नीतेश पांडेय ने बताया कि व्रत के दौरान माताओं को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। साथ ही साफ-सफाई, वाणी की मर्यादा, और मन की पवित्रता बनाए रखना आवश्यक है। व्रत के समय किसी भी प्रकार के अपशब्द या नकारात्मक विचार वर्जित माने जाते हैं।