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Gonda News: रियासत के राजा को सियासत में मिला था यूपी टाइगर नाम
संवाद न्यूज एजेंसी, गोंडा
Updated Tue, 08 Jul 2025 12:02 AM IST
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मनकापुर में अपने पिता पूर्व मंत्री राजा आनंद सिंह की अर्थी को कंधा देते केंद्रीय विदेश राज्यमंत
गोंडा। वर्ष 1965 में सियासी पारी शुरू करने वाले मनकापुर रियासत के कुंवर आनंद सिंह को वर्ष 1971 में एक नया नाम मिला था। दरअसल, 1971 के चुनाव में कांग्रेस में दो फाड़ हो गए थे। कांग्रेस सिंडिकेट से आनंद सिंह गोंडा संसदीय सीट से मैदान में उतरे तो कांग्रेस इंडिकेट (आई) ने उनके चाचा और विधान परिषद के उपसभापति कुंवर देवेंद्र प्रताप सिंह उर्फ लल्लन साहब को प्रत्याशी बनाया। रोमांचक मुकाबले में आनंद सिंह ने जीत हासिल कर संसद में प्रवेश किया। इस चुनाव के बाद उन्हें यूपी टाइगर के नाम से पहचान मिली थी।
अलग थी पहचान
पूर्व मंत्री के करीबी केबी सिंह ने बताया कि पूर्वांचल की राजनीति में अपने सियासी दबदबे का लोहा मनवाने वाले मनकापुर के राजा आनंद सिंह को यूपी टाइगर के नाम से जाना जाता था। कांग्रेस पार्टी उन्हें सादा सिंबल दे देती थी, फिर आनंद सिंह जिसे चाहते नाम भरकर सिंबल दे देते थे। जिसके सिर पर मनकापुर कोट का हाथ होता, वह सांसद, विधायक, जिला परिषद अध्यक्ष और ब्लाॅक प्रमुख बन जाता था। साहित्यकार सूर्य प्रसाद मिश्र का कहना है कि आनंद सिंह की एक अलग छवि थी। वह स्पष्टवादी सोच के नेता थे।
छोड़ गए भरा पूरा परिवार
पारिवारिक सूत्रों के अनुसार, आनंद सिंह का विवाह वीना सिंह से हुआ था। तीन पुत्रियां निहारिका सिंह, राधिका सिंह व शिवानी हैं। पुत्र कीर्तिवर्धन सिंह वर्तमान में केंद्र सरकार में विदेश, वन और पर्यावरण राज्यमंत्री हैं।
कराई थी आईटीआई की स्थापना
आनंद सिंह ने सांसद रहते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से क्षेत्र के विकास को लेकर मुलाकात की। इसके बाद वर्ष 1984 में मनकापुर में आईटीआई की स्थापना की गई। कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में आईटीआई ने खूब विकास किया, लेकिन बाद में यह आर्थिक तंगी का शिकार हो गया।
अदावत में संवेदना के दो शब्द भी नहीं
मनकापुर (गोंडा)। वैसे तो सियासी ताप में एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहता है, लेकिन सोमवार को जिले में एक ऐसा परिदृश्य सामने आया, जिसने हर किसी को चौंका दिया। पूर्व मंत्री आनंद सिंह के निधन पर हर दल के नेताओं ने शोक संवेदना जाहिर की। किसी ने मौके पर पहुंचकर तो किसी ने सोशल मीडिया का सहारा लिया। इन सबके बीच कैसरगंज के पूर्व सांसद बृज भूषण शरण सिंह, कैसरगंज सांसद करण भूषण सिंह व सदर विधायक प्रतीक भूषण सिंह की खामोशी को लेकर लोग तरह-तरह की चर्चा करते दिखे।
बृजभूषण शरण सिंह व आनंद सिंह की अदावत किसी से छिपी नहीं है। बृजभूषण कई मौकों इसका खुलेआम जिक्र कर चुके हैं। यही नहीं, वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने आनंद सिंह को हराया था। इसके बाद 1996 में उनकी पत्नी केतकी सिंह ने भी आनंद सिंह को हराया। हालांकि इस हार के बाद आनंद सिंह ने संसदीय चुनाव से दूरी बना ली। यह बात अलग है कि उनके बेटे कीर्तिवर्धन सिंह ने चुनावी कमान संभाली। इसके बाद भी अदावत कम नहीं हुई।
सोमवार को मनकापुर कोट में वैसे तो हरेक दल के नेताओं ने पहुंचकर शोक व्यक्त की, लेकिन बृजभूषण शरण सिंह खामोश रहे। न तो वह खुद सामने आए और न ही सोशल मीडिया या अन्य माध्यम से कोई संदेश ही दिया। इसको लेकर हर कोई चर्चा करता दिखा।
विधायक को लेकर बढ़ी थी तल्खी
पूर्व मंत्री आनंद सिंह ने 2021 में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को गौरा विधायक प्रभात वर्मा के खिलाफ पत्र लिखा था। उस वक्त कैसरगंज के सांसद रहे बृजभूषण शरण सिंह ने इस पर सवाल खड़े किए थे। इसको लेकर भी खूब सियासत हुई थी।
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पूर्व मंत्री के करीबी केबी सिंह ने बताया कि पूर्वांचल की राजनीति में अपने सियासी दबदबे का लोहा मनवाने वाले मनकापुर के राजा आनंद सिंह को यूपी टाइगर के नाम से जाना जाता था। कांग्रेस पार्टी उन्हें सादा सिंबल दे देती थी, फिर आनंद सिंह जिसे चाहते नाम भरकर सिंबल दे देते थे। जिसके सिर पर मनकापुर कोट का हाथ होता, वह सांसद, विधायक, जिला परिषद अध्यक्ष और ब्लाॅक प्रमुख बन जाता था। साहित्यकार सूर्य प्रसाद मिश्र का कहना है कि आनंद सिंह की एक अलग छवि थी। वह स्पष्टवादी सोच के नेता थे।
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छोड़ गए भरा पूरा परिवार
पारिवारिक सूत्रों के अनुसार, आनंद सिंह का विवाह वीना सिंह से हुआ था। तीन पुत्रियां निहारिका सिंह, राधिका सिंह व शिवानी हैं। पुत्र कीर्तिवर्धन सिंह वर्तमान में केंद्र सरकार में विदेश, वन और पर्यावरण राज्यमंत्री हैं।
कराई थी आईटीआई की स्थापना
आनंद सिंह ने सांसद रहते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से क्षेत्र के विकास को लेकर मुलाकात की। इसके बाद वर्ष 1984 में मनकापुर में आईटीआई की स्थापना की गई। कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में आईटीआई ने खूब विकास किया, लेकिन बाद में यह आर्थिक तंगी का शिकार हो गया।
अदावत में संवेदना के दो शब्द भी नहीं
मनकापुर (गोंडा)। वैसे तो सियासी ताप में एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहता है, लेकिन सोमवार को जिले में एक ऐसा परिदृश्य सामने आया, जिसने हर किसी को चौंका दिया। पूर्व मंत्री आनंद सिंह के निधन पर हर दल के नेताओं ने शोक संवेदना जाहिर की। किसी ने मौके पर पहुंचकर तो किसी ने सोशल मीडिया का सहारा लिया। इन सबके बीच कैसरगंज के पूर्व सांसद बृज भूषण शरण सिंह, कैसरगंज सांसद करण भूषण सिंह व सदर विधायक प्रतीक भूषण सिंह की खामोशी को लेकर लोग तरह-तरह की चर्चा करते दिखे।
बृजभूषण शरण सिंह व आनंद सिंह की अदावत किसी से छिपी नहीं है। बृजभूषण कई मौकों इसका खुलेआम जिक्र कर चुके हैं। यही नहीं, वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने आनंद सिंह को हराया था। इसके बाद 1996 में उनकी पत्नी केतकी सिंह ने भी आनंद सिंह को हराया। हालांकि इस हार के बाद आनंद सिंह ने संसदीय चुनाव से दूरी बना ली। यह बात अलग है कि उनके बेटे कीर्तिवर्धन सिंह ने चुनावी कमान संभाली। इसके बाद भी अदावत कम नहीं हुई।
सोमवार को मनकापुर कोट में वैसे तो हरेक दल के नेताओं ने पहुंचकर शोक व्यक्त की, लेकिन बृजभूषण शरण सिंह खामोश रहे। न तो वह खुद सामने आए और न ही सोशल मीडिया या अन्य माध्यम से कोई संदेश ही दिया। इसको लेकर हर कोई चर्चा करता दिखा।
विधायक को लेकर बढ़ी थी तल्खी
पूर्व मंत्री आनंद सिंह ने 2021 में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को गौरा विधायक प्रभात वर्मा के खिलाफ पत्र लिखा था। उस वक्त कैसरगंज के सांसद रहे बृजभूषण शरण सिंह ने इस पर सवाल खड़े किए थे। इसको लेकर भी खूब सियासत हुई थी।