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हरदोईः सेमरिया में हुआ था जलियांवाला बाग जैसा कांड
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फोटो - 40 - शहीद स्मारक सेमरिया
- फोटो : HARDOI
हरपालपुर। शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा। देशभक्ति का यह गीत वर्ष 1932 के पशु मेले में अंग्रेजों के खिलाफ जंग का ऐलान करने वाले शहीद क्रांतिकारियों के बलिदान की यादों को ताजा कर देता है।
हिंदुस्तान को आजादी दिलाने में कटियारी क्षेत्र का विशेष योगदान रहा है। वर्ष 1932 में सेमरिया मेले में क्षेत्र के बलिदानियों पर अंग्रेजों की बर्बरता पूर्ण गोलीकांड आजादी के इतिहास में मिनी जलियां वाला बाग हत्याकांड के रूप में मशहूर है। इसमें 269 लोग शहीद हुए थे।
जिला मुख्यालय से 41 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सेमरिया गांव में 2011 में तत्कालीन जिलाधिकारी अवधेश कुमार सिंह राठौर की पहल पर स्मारक बना था।
शहीद स्मारक समिति सेमरिया के अध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार अभय शंकर गौड़ व सचिव महेश मिश्र ने जन सहयोग से शहीद स्मारक का निर्माण कराया था। यहां 15 अगस्त को साइकिल रेस प्रतियोगिता होती है।
पूर्णमासी पर यहां हर वर्ष पशुओं का बड़ा मेला लगता था। वर्ष 1932 को इसी मेले में अंग्रेजों के खिलाफ जंग का ऐलान कर क्रांतिकारियों ने एक बड़ी सभा कर आजादी की लड़ाई का बिगुल फूंका था।
महेश्वर नाथ गुप्त शाहाबादी की अगुवाई में क्रांतिकारियों का जुलूस इंकलाब के नारों के साथ सेमरिया मेले में जा पहुंचा। जहां मेले में कंट्रोलर मजिस्ट्रेट को नागवार गुजरा। इसमें जुलूस पर रोक का फरमान जारी किया।
जिसे क्रांतिकारियों ने खारिज कर दिया। आजादी दो इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए गए। बात यहां तक बढ़ गई कि मजिस्ट्रेट ने मेले की भीड़ पर गोली चलाने का आदेश अंग्रेज सिपाहियों को दे डाला।
गोलीकांड में लगभग 269 निर्दोष लोग मारे गए। लाशों को अंग्रेजों ने अपने जुर्म पर पर्दा डालने के लिए रातों-रात रामगंगा नदी में डलवा दिया। अंग्रेजी हुकूमत इतने पर भी शांत नहीं हुई और उसने क्षेत्र के आसपास के तमाम क्रांतिकारियों की एक सूची तैयार कर मेले में दंगा फसाद का आरोप लगाकर तमाम लोगों पर फर्जी मुकदमे दर्ज कराए। जिसमें 24 लोगों को जेल भी भेजा गया था।
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जिला मुख्यालय से 41 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सेमरिया गांव में 2011 में तत्कालीन जिलाधिकारी अवधेश कुमार सिंह राठौर की पहल पर स्मारक बना था।
शहीद स्मारक समिति सेमरिया के अध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार अभय शंकर गौड़ व सचिव महेश मिश्र ने जन सहयोग से शहीद स्मारक का निर्माण कराया था। यहां 15 अगस्त को साइकिल रेस प्रतियोगिता होती है।
पूर्णमासी पर यहां हर वर्ष पशुओं का बड़ा मेला लगता था। वर्ष 1932 को इसी मेले में अंग्रेजों के खिलाफ जंग का ऐलान कर क्रांतिकारियों ने एक बड़ी सभा कर आजादी की लड़ाई का बिगुल फूंका था।
महेश्वर नाथ गुप्त शाहाबादी की अगुवाई में क्रांतिकारियों का जुलूस इंकलाब के नारों के साथ सेमरिया मेले में जा पहुंचा। जहां मेले में कंट्रोलर मजिस्ट्रेट को नागवार गुजरा। इसमें जुलूस पर रोक का फरमान जारी किया।
जिसे क्रांतिकारियों ने खारिज कर दिया। आजादी दो इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए गए। बात यहां तक बढ़ गई कि मजिस्ट्रेट ने मेले की भीड़ पर गोली चलाने का आदेश अंग्रेज सिपाहियों को दे डाला।
गोलीकांड में लगभग 269 निर्दोष लोग मारे गए। लाशों को अंग्रेजों ने अपने जुर्म पर पर्दा डालने के लिए रातों-रात रामगंगा नदी में डलवा दिया। अंग्रेजी हुकूमत इतने पर भी शांत नहीं हुई और उसने क्षेत्र के आसपास के तमाम क्रांतिकारियों की एक सूची तैयार कर मेले में दंगा फसाद का आरोप लगाकर तमाम लोगों पर फर्जी मुकदमे दर्ज कराए। जिसमें 24 लोगों को जेल भी भेजा गया था।