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Jalaun News: सितंबर की बारिश किसानों के लिए ला रही आफत
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कदौरा। जून से सक्रिय मानसून किसानों के लिए वरदान की बजाय नुकसान का कारण बन गया है। खेत सूख नहीं पा रहे हैं। इससे जुताई नहीं हो पा रही है। खेतों में पानी भरा पड़ा है, जिससे फसल सड़ रही है।
किसानों का कहना है कि यदि बारिश 10 दिन भी थम जाए तो खेतों में चढ़ी इस कठोर तह को तोड़कर मृदा को पोषक और हवादार बनाकर खरपतवार नष्ट किया जा सके। ऊपर चढ़ी चारे की परतों को खोला जा सके और समय रहते जुताई कर रबी की बुआई की तैयारी की जा सके। जुताई से मिट्टी की जल सोखने की क्षमता बढ़ती है। इससे बारिश का पानी बेहतर तरीके से जमीन में जाता है और लंबे समय तक पौधों के लिए नमी उपलब्ध रखता है। इस वर्ष यह असंभव रहा।
क्षेत्र के अनुभवी किसानों आशीष ग्राम हरचंदपुर, विजयकांत ग्राम बागी, सीनू गुप्ता कदौरा, बबलू यादव ग्राम उदनपुर, श्यामबाबू ग्राम चतेला, धन्नजय सिंह लोदीपुर, हेमंत , शिप्पू, विजय आदि के मुताबिक एक भी बाव न पड़ने से सरसों और लाही की उम्मीद लगभग टूट चुकी है। यदि बुआई हुई भी तो औसत उपज मिलना मुश्किल होगा। मसूर और मटर की पैदावार पर भी संकट मंडरा रहा है। खेतों में केवल ऊपरी सतह पर नमी रहने और पुलाई न मिलने से पौधों की वृद्धि प्रभावित होने की आशंका है।
खरीफ की मौसमी फसलें भी इस बार मानसून की मार झेल रही हैं। मूंग, उड़द, तिल और ज्वार-मक्का जैसी फसलें इस वर्ष बुआई ही नहीं जा सकीं। केवल धान की फसलें ही खेतों में लहलहा रही हैं। पीड़ित किसानों का कहना है कि धान बोने वालों का तो साल निकल जाएगा। सरसों, मसूर और मटर की खेती करने वालों के लिए इस बार हालात बेहद खराब हैं।

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किसानों का कहना है कि यदि बारिश 10 दिन भी थम जाए तो खेतों में चढ़ी इस कठोर तह को तोड़कर मृदा को पोषक और हवादार बनाकर खरपतवार नष्ट किया जा सके। ऊपर चढ़ी चारे की परतों को खोला जा सके और समय रहते जुताई कर रबी की बुआई की तैयारी की जा सके। जुताई से मिट्टी की जल सोखने की क्षमता बढ़ती है। इससे बारिश का पानी बेहतर तरीके से जमीन में जाता है और लंबे समय तक पौधों के लिए नमी उपलब्ध रखता है। इस वर्ष यह असंभव रहा।
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क्षेत्र के अनुभवी किसानों आशीष ग्राम हरचंदपुर, विजयकांत ग्राम बागी, सीनू गुप्ता कदौरा, बबलू यादव ग्राम उदनपुर, श्यामबाबू ग्राम चतेला, धन्नजय सिंह लोदीपुर, हेमंत , शिप्पू, विजय आदि के मुताबिक एक भी बाव न पड़ने से सरसों और लाही की उम्मीद लगभग टूट चुकी है। यदि बुआई हुई भी तो औसत उपज मिलना मुश्किल होगा। मसूर और मटर की पैदावार पर भी संकट मंडरा रहा है। खेतों में केवल ऊपरी सतह पर नमी रहने और पुलाई न मिलने से पौधों की वृद्धि प्रभावित होने की आशंका है।
खरीफ की मौसमी फसलें भी इस बार मानसून की मार झेल रही हैं। मूंग, उड़द, तिल और ज्वार-मक्का जैसी फसलें इस वर्ष बुआई ही नहीं जा सकीं। केवल धान की फसलें ही खेतों में लहलहा रही हैं। पीड़ित किसानों का कहना है कि धान बोने वालों का तो साल निकल जाएगा। सरसों, मसूर और मटर की खेती करने वालों के लिए इस बार हालात बेहद खराब हैं।