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Kushinagar News: अंग्रेजों ने चार को मृत्यु दंड और 74 को दी थी यातना
संवाद न्यूज एजेंसी, कुशीनगर
Updated Sat, 12 Aug 2023 11:57 PM IST
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यादें : आजादी के आंदोलन की
स्वतंत्रता की लड़ाई में दुदही क्षेत्र के सपूतों ने भी गंवाई थी जान, सही थी यातना
संवाद न्यूज एजेंसी
दुदही। अति पिछड़े इलाकों में सुमार दुदही ने देश की आज़ादी की लड़ाई में अहम रोल निभाया था। 1942 में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया तब स्वतंत्रता आंदोलन दबाने के लिए अंग्रेजों ने चार लोगों को मौत के घाट उतार दिया था, जबकि 74 लोगों को कठोर यातना दी थी।
स्वतंत्रता आंदोलन में दुदही क्षेत्र के क्रांतिकारियों की कमान सरवन पांडेय उर्फ़ सुराजी बाबा, चंद्रदेव तिवारी और गेंदा सिंह के हाथ में थी। उनकी अगुवाई में क्षेत्र के बांसगांव चौरिया, बैरिया, खैरवा, अमवाखास, पंचरुखीया, गौरीश्रीराम, मिश्रौली, दुदही, नाराहवा, कैथवलिया, शाहपुर, धोकरहा, चाफ, अमवा दीगर, बड़हरा, सरगतिया, रामपुर बरहन, अमहि, धर्मपुर पर्वत, गौरीजडिश आदि गांवों के नौजवानों ने जगह-जगह रेल पटरियां उखाड़ दीं। सरकारी गेहूं गोदाम लूट लिया। फ़ोन का तार काट डाले और सरकारी गोदामों को निशाना बनाया।
अंग्रेज अफ़सरों ने गौरीशुक्ल गांव के जतन मलाह, अमवाखास खास टोला करवतहि के धरीक्षण व मंगल राय और किशुनवा गांव के भोला नोनिया को गोली मरवा दी। इसके बाद भी क्षेत्र के युवाओं में स्वतंत्रता आंदोलन की धार कम नहीं हुई। इससे खार खाए अंग्रेजों ने दमनकारी नीति अपनाते हुए इन गांवों में खूब उत्पात मचाया था।
क्षेत्र के बुजुर्ग बताते हैं कि कई गांव जला दिए गए, अंग्रेजों ने मंगल भगत को जिंदा जला दिया था। आंदोलन दबाने के लिए फिरंगियों ने महिला, बच्चों और बुजुर्गों पर जुल्म ढाहा। इससे आक्रोशित 400 क्रांतिकारियों ने तुर्कपट्टी-कसया रोड को क्रॉस कर रहे खनुवा नाले पर बने पुल को पांच घंटे में ध्वस्त कर दिया था। इसी रास्ते से फिरंगी आकर लोगों पर जुल्म करते थे। इसके बदले में अंग्रेजों ने 74 लोगों पर मुक़दमा चलाया। बुजुर्ग बताते हैं कि अंग्रेजी हुक़ूमत में गेंदा सिंह तथा देवकली को तीन-तीन साल कैद हो गई। चंद्रदेव तिवारी को दो वर्ष और दिलीप राय को एक वर्ष की कैद व 12 बेंत की सजा मिली।
इसी तरह बांसगांव के नकछेद को एक साल कैद व छह बेंत, अमवादीगर के सूर्यदेव को 18 बूट, गौरीश्रीराम के श्रीकिशन गुप्ता को 500 रुपये हर्जाना, बांसगांव चौरिया के बच्चा बाबू को तीन माह कैद, 1100 रुपये जुर्माना और छह बेंत की सजा दी गई। जेल में बंद माधोपुर के जनार्दन को लकवा मार दिया। अंग्रेजों के इस जुल्म को देखते हुए स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल कुतुबुद्दीन, सत्यनारायण, लुटावन और छठु भूमिगत हो गए थे।
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स्वतंत्रता की लड़ाई में दुदही क्षेत्र के सपूतों ने भी गंवाई थी जान, सही थी यातना
संवाद न्यूज एजेंसी
दुदही। अति पिछड़े इलाकों में सुमार दुदही ने देश की आज़ादी की लड़ाई में अहम रोल निभाया था। 1942 में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया तब स्वतंत्रता आंदोलन दबाने के लिए अंग्रेजों ने चार लोगों को मौत के घाट उतार दिया था, जबकि 74 लोगों को कठोर यातना दी थी।
स्वतंत्रता आंदोलन में दुदही क्षेत्र के क्रांतिकारियों की कमान सरवन पांडेय उर्फ़ सुराजी बाबा, चंद्रदेव तिवारी और गेंदा सिंह के हाथ में थी। उनकी अगुवाई में क्षेत्र के बांसगांव चौरिया, बैरिया, खैरवा, अमवाखास, पंचरुखीया, गौरीश्रीराम, मिश्रौली, दुदही, नाराहवा, कैथवलिया, शाहपुर, धोकरहा, चाफ, अमवा दीगर, बड़हरा, सरगतिया, रामपुर बरहन, अमहि, धर्मपुर पर्वत, गौरीजडिश आदि गांवों के नौजवानों ने जगह-जगह रेल पटरियां उखाड़ दीं। सरकारी गेहूं गोदाम लूट लिया। फ़ोन का तार काट डाले और सरकारी गोदामों को निशाना बनाया।
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अंग्रेज अफ़सरों ने गौरीशुक्ल गांव के जतन मलाह, अमवाखास खास टोला करवतहि के धरीक्षण व मंगल राय और किशुनवा गांव के भोला नोनिया को गोली मरवा दी। इसके बाद भी क्षेत्र के युवाओं में स्वतंत्रता आंदोलन की धार कम नहीं हुई। इससे खार खाए अंग्रेजों ने दमनकारी नीति अपनाते हुए इन गांवों में खूब उत्पात मचाया था।
क्षेत्र के बुजुर्ग बताते हैं कि कई गांव जला दिए गए, अंग्रेजों ने मंगल भगत को जिंदा जला दिया था। आंदोलन दबाने के लिए फिरंगियों ने महिला, बच्चों और बुजुर्गों पर जुल्म ढाहा। इससे आक्रोशित 400 क्रांतिकारियों ने तुर्कपट्टी-कसया रोड को क्रॉस कर रहे खनुवा नाले पर बने पुल को पांच घंटे में ध्वस्त कर दिया था। इसी रास्ते से फिरंगी आकर लोगों पर जुल्म करते थे। इसके बदले में अंग्रेजों ने 74 लोगों पर मुक़दमा चलाया। बुजुर्ग बताते हैं कि अंग्रेजी हुक़ूमत में गेंदा सिंह तथा देवकली को तीन-तीन साल कैद हो गई। चंद्रदेव तिवारी को दो वर्ष और दिलीप राय को एक वर्ष की कैद व 12 बेंत की सजा मिली।
इसी तरह बांसगांव के नकछेद को एक साल कैद व छह बेंत, अमवादीगर के सूर्यदेव को 18 बूट, गौरीश्रीराम के श्रीकिशन गुप्ता को 500 रुपये हर्जाना, बांसगांव चौरिया के बच्चा बाबू को तीन माह कैद, 1100 रुपये जुर्माना और छह बेंत की सजा दी गई। जेल में बंद माधोपुर के जनार्दन को लकवा मार दिया। अंग्रेजों के इस जुल्म को देखते हुए स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल कुतुबुद्दीन, सत्यनारायण, लुटावन और छठु भूमिगत हो गए थे।