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Kushinagar News: कसया से तांगे पर बैठकर आए थे फिरोज गांधी
संवाद न्यूज एजेंसी, कुशीनगर
Updated Sat, 12 Aug 2023 11:49 PM IST
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स्वतंत्रता सेनानियों की शरण स्थली था जौरा मनराखन का राम जानकी मंदिर
संवाद न्यूज एजेंसी
जौरा बाजार। जौरा मनराखन गांव स्थित राम जानकी मंदिर स्वतंत्रता सेनानियों की शरण स्थली था। उस समय क्षेत्र के आजादी के मतवाले दिनभर इधर-उधर भ्रमण करते थे, लेकिन रात के समय मंदिर में आकर शरण लेते थे। वहां उनकी गोपनीय बैठक होती थी, किसको क्या करना है, मंदिर में ही बताया जाता था।
मंदिर में बैठक में शामिल होने वालों में जोगिया के भैरो राय, जौरामनराखन के मंगल उपाध्याय, सठियांव के बाबूराम सिंह व जिऊत सिंह, सोहन के रामधारी शास्त्री, छहूं के राजदेव सिंह व काशीनाथ सिंह, पटखौली के राजवंशी राय व रामायण राय और अमवा गांव के रमाकांत तिवारी का मुख्य रूप से आना-जाना था।
आन्दोलन को गति देने के लिए सिब्बन लाल सक्सेना ने कई बार मंदिर पर आकर बैठक की थी। मंदिर के महंत सियाराम दास सबके लिए खाना बनाने का काम करते थे। रात के किसी समय देश की आजादी की लड़ाई में भाग लेने वाले कोई भी आता था तो उसको उसी समय भोजन कराने की पूरी जिम्मेदारी मंदिर के महंत सियाराम दास के जिम्मे थी।
आजादी के दीवाने रात गए मंदिर में आते थे और भोजन कर रात अंतिम पहर में कुलकुला के जंगल में चले जाते थे। कुलकुला के जंगल में भोजन पहुंचाने का काम बिसरी मियां करते थे। गांव से राशन इकठ्ठा करने का काम वीरबहादुर सिंह और चंद्र बली चौबे करते थे। मंगल उपाध्याय उस समय छितौनी में नौकरी करते थे। वह सिब्बन लाल सक्सेना की प्रेरणा से आजादी की जंग में शामिल हो गए। उनको पांच वर्ष की कठोर कारावास की सजा भी मिली थी। आजादी के बाद महात्मा गांधी के कहने पर फिरोज गांधी जौरा बाजार में कसया से तांगे पर बैठकर आए थे। मंगल उपाध्याय के वकील बनकर उनको जेल से मुक्त कराए थे।
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जौरा बाजार। जौरा मनराखन गांव स्थित राम जानकी मंदिर स्वतंत्रता सेनानियों की शरण स्थली था। उस समय क्षेत्र के आजादी के मतवाले दिनभर इधर-उधर भ्रमण करते थे, लेकिन रात के समय मंदिर में आकर शरण लेते थे। वहां उनकी गोपनीय बैठक होती थी, किसको क्या करना है, मंदिर में ही बताया जाता था।
मंदिर में बैठक में शामिल होने वालों में जोगिया के भैरो राय, जौरामनराखन के मंगल उपाध्याय, सठियांव के बाबूराम सिंह व जिऊत सिंह, सोहन के रामधारी शास्त्री, छहूं के राजदेव सिंह व काशीनाथ सिंह, पटखौली के राजवंशी राय व रामायण राय और अमवा गांव के रमाकांत तिवारी का मुख्य रूप से आना-जाना था।
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आन्दोलन को गति देने के लिए सिब्बन लाल सक्सेना ने कई बार मंदिर पर आकर बैठक की थी। मंदिर के महंत सियाराम दास सबके लिए खाना बनाने का काम करते थे। रात के किसी समय देश की आजादी की लड़ाई में भाग लेने वाले कोई भी आता था तो उसको उसी समय भोजन कराने की पूरी जिम्मेदारी मंदिर के महंत सियाराम दास के जिम्मे थी।
आजादी के दीवाने रात गए मंदिर में आते थे और भोजन कर रात अंतिम पहर में कुलकुला के जंगल में चले जाते थे। कुलकुला के जंगल में भोजन पहुंचाने का काम बिसरी मियां करते थे। गांव से राशन इकठ्ठा करने का काम वीरबहादुर सिंह और चंद्र बली चौबे करते थे। मंगल उपाध्याय उस समय छितौनी में नौकरी करते थे। वह सिब्बन लाल सक्सेना की प्रेरणा से आजादी की जंग में शामिल हो गए। उनको पांच वर्ष की कठोर कारावास की सजा भी मिली थी। आजादी के बाद महात्मा गांधी के कहने पर फिरोज गांधी जौरा बाजार में कसया से तांगे पर बैठकर आए थे। मंगल उपाध्याय के वकील बनकर उनको जेल से मुक्त कराए थे।