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Lalitpur News: त्रेता से चली आ रही गोमाता का शृंगार करने की परंपरा
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ललितपुर। बुंदेलखंड अपनी संस्कृति और परंपराओं के लिए जाना जाता है। अपनी बोली और कुछ परंपराएं ऐसी हैं जो द्वापर और त्रेता युग से चली आ रही हैं। बुंदेलखंड में बुंदेली अंदाज में दिवाली गाने की भी परंपरा है।
दीपावली की रात लक्ष्मी पूजन किया जाता है तो दूसरे दिन गोवर्धन पूजा के साथ सुबह से गोमाता को स्नान कराकर उनका शृंगार किया जाता है। गोमाता के सींगों को रंगते हैं।
दीपावली के दूसरे दिन परमा पर यहां गोमाता का विशेष पूजन किया जाता है। यह परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है। पंडित पवन शास्त्री के अनुसार शास्त्रों में गाय माता को देवी का दर्जा प्राप्त है। दीपावली पर लक्ष्मी पूजन के साथ गो पूजन करने से घर में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है। द्वापर काल में इंद्र द्वारा गोकुल में भारी बारिश से जब यहां के लोग, गो माताएं और ग्वाल वाले परेशान हुए थे, तब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को एक अंगुली पर उठा लिया था और उसके नीचे पूरे गोकुल वासियों सहित गो माताओं को छिपाकर इंद्र के कोप से बचाया था।
दूसरी मान्यता यह भी है कि प्राचीन काल से गाय को किसान लक्ष्मी का रूप मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं। दीपावली पर जहां लोग घर में खुशहाली के लिए लक्ष्मी की पूजा करते हैं, वहीं किसान दीपावली के दूसरे दिन गो माता की पूजा करते हैं।
उनका आकर्षक शृंगार करते हैं। गो माता के शरीर के ऊपर गेरू के लेप और रंगों से आकर्षक छापे लगाते हैं। गो माता को लोहे एवं पीतल की नई घंटियां पहनाई जाती हैं।
कुछ लोग तो अपनी गाे माताओं के पैरों में घुंघरू तक पहनाते हैं। गो माता की पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है और उन्हें खीर-पूड़ी व मिष्ठान खिलाया जाता है। इन गायों और पशुओं से उनके परिवार का भरण-पोषण होता है। इनके दूध से वह व्यापार करते हैं।
सजाने वाले सामान का लगता है बाजार
दीपावली पर लोग अपने घरों की रंगाई-पुताई कर लाइट से सजाते हैं। इसके लिए बाजार में दुकानें लगती हैं। गो माताओं को सजाने के लिए भी शहर, नगर व कस्बा के बाजारों में विशेष साजो-सामान की दुकानें लग जाती हैं।
गो माताओं के गले में बांधने के लिए विशेष मालाएं, जिसमें घंटियां लगी होती हैं तथा रंग-बिरंगे सीसा के नग लगे होते हैं। भैंस और गाय के पैर व सिर पर बांधने के अलग अलग सजावटी सामान रहते हैं। लोहा-पीतल की दुकानों पर गो माताओं के लिए आकर्षक लोहा व पीतल की घंटियां भी बिकती हैं।
12 गांवों में नाचते गाते हैं मौनिया
दीपावली के दूसरे दिन बुंदेलखंड में मौनिया बनने की परंपरा है। मौनिया बनने वाले लोग मौन धारण कर लेते हैं और न तो रास्ते में कहीं बैठते हैं और न ही कुछ खाते हैं। ये लोग गांव के देवस्थान पर पूजा करने के बाद 12 गांवों की परिक्रमा करते हैं। मान्यता है कि जब श्रीकृष्ण की गायों को चुरा लिया गया था, तब श्रीकृष्ण काफी उदास रहने लगे थे। ग्वाल बालों ने गायों को खोजना शुरू किया था।
मान्यता है कि गायों के मिल जाने के बाद श्रीकृष्ण सहित ग्वाल बालों ने खूब नृत्य किया था। मौनी नृत्य मंडली के सदस्यों द्वारा नृत्य के समय एक हाथ में मोर पंख होता है, जिसे श्रीकृष्ण का स्वरूप माना जाता है।

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दीपावली की रात लक्ष्मी पूजन किया जाता है तो दूसरे दिन गोवर्धन पूजा के साथ सुबह से गोमाता को स्नान कराकर उनका शृंगार किया जाता है। गोमाता के सींगों को रंगते हैं।
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दीपावली के दूसरे दिन परमा पर यहां गोमाता का विशेष पूजन किया जाता है। यह परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है। पंडित पवन शास्त्री के अनुसार शास्त्रों में गाय माता को देवी का दर्जा प्राप्त है। दीपावली पर लक्ष्मी पूजन के साथ गो पूजन करने से घर में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है। द्वापर काल में इंद्र द्वारा गोकुल में भारी बारिश से जब यहां के लोग, गो माताएं और ग्वाल वाले परेशान हुए थे, तब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को एक अंगुली पर उठा लिया था और उसके नीचे पूरे गोकुल वासियों सहित गो माताओं को छिपाकर इंद्र के कोप से बचाया था।
दूसरी मान्यता यह भी है कि प्राचीन काल से गाय को किसान लक्ष्मी का रूप मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं। दीपावली पर जहां लोग घर में खुशहाली के लिए लक्ष्मी की पूजा करते हैं, वहीं किसान दीपावली के दूसरे दिन गो माता की पूजा करते हैं।
उनका आकर्षक शृंगार करते हैं। गो माता के शरीर के ऊपर गेरू के लेप और रंगों से आकर्षक छापे लगाते हैं। गो माता को लोहे एवं पीतल की नई घंटियां पहनाई जाती हैं।
कुछ लोग तो अपनी गाे माताओं के पैरों में घुंघरू तक पहनाते हैं। गो माता की पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है और उन्हें खीर-पूड़ी व मिष्ठान खिलाया जाता है। इन गायों और पशुओं से उनके परिवार का भरण-पोषण होता है। इनके दूध से वह व्यापार करते हैं।
सजाने वाले सामान का लगता है बाजार
दीपावली पर लोग अपने घरों की रंगाई-पुताई कर लाइट से सजाते हैं। इसके लिए बाजार में दुकानें लगती हैं। गो माताओं को सजाने के लिए भी शहर, नगर व कस्बा के बाजारों में विशेष साजो-सामान की दुकानें लग जाती हैं।
गो माताओं के गले में बांधने के लिए विशेष मालाएं, जिसमें घंटियां लगी होती हैं तथा रंग-बिरंगे सीसा के नग लगे होते हैं। भैंस और गाय के पैर व सिर पर बांधने के अलग अलग सजावटी सामान रहते हैं। लोहा-पीतल की दुकानों पर गो माताओं के लिए आकर्षक लोहा व पीतल की घंटियां भी बिकती हैं।
12 गांवों में नाचते गाते हैं मौनिया
दीपावली के दूसरे दिन बुंदेलखंड में मौनिया बनने की परंपरा है। मौनिया बनने वाले लोग मौन धारण कर लेते हैं और न तो रास्ते में कहीं बैठते हैं और न ही कुछ खाते हैं। ये लोग गांव के देवस्थान पर पूजा करने के बाद 12 गांवों की परिक्रमा करते हैं। मान्यता है कि जब श्रीकृष्ण की गायों को चुरा लिया गया था, तब श्रीकृष्ण काफी उदास रहने लगे थे। ग्वाल बालों ने गायों को खोजना शुरू किया था।
मान्यता है कि गायों के मिल जाने के बाद श्रीकृष्ण सहित ग्वाल बालों ने खूब नृत्य किया था। मौनी नृत्य मंडली के सदस्यों द्वारा नृत्य के समय एक हाथ में मोर पंख होता है, जिसे श्रीकृष्ण का स्वरूप माना जाता है।