Uttarakhand: वक्त की मार...मांग बढ़ी तो कम पड़ गए रमाड़ी के रसीले संतरे, प्रदेशभर के बाजारों से आ रही डिमांड
रमाड़ी गांव जो अपने रसीले संतरों के लिए मशहूर था, आज उत्पादन में भारी गिरावट का सामना कर रहा है। पहले संतरों की कद्र कम होने के बावजूद पेड़ फलों से लदे रहते थे, लेकिन अब प्रदेश भर में मांग बढ़ने के बाद भी उत्पादन इतना घट गया है कि किसान चिंतित हैं।
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बागेश्वर जिले के सुदूरवर्ती कपकोट तहसील का रमाड़ी गांव अपने रसीले संतरों के नाम से अपनी पहचान बना चुका था। एक दौर था जब यहां संतरों की कद्र करने वाले कम थे लेकिन पेड़ों पर फल इतने लदे होते थे कि बाजार छोटा पड़ जाता था। आज जब प्रदेशभर के बाजारों में रमाड़ी के संतरों की भारी मांग है। तब उत्पादन में आई भारी गिरावट ने काश्तकारों की माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं।
रमाड़ी गांव में संतरों का उत्पादन करने वाले पुराने काश्तकारों ने बताया कि 10 साल पहले तक यहां संतरों का इतना उत्पादन होता था कि विपणन की समस्या खड़ी हो जाती थी। उस वक्त मांग सीमित थी और उचित दाम न मिलने के कारण कई बार फल पेड़ों पर ही सड़ जाते थे।
अब हल्द्वानी, अल्मोड़ा और देहरादून जैसी मंडियों से लगातार डिमांड आ रही है मगर बगीचे खाली पड़ने लगे हैं। काश्तकारों ने बताया कि उत्पादन घटने के पीछे संतरों के पेड़ों में टहनियों के सूखने और जड़ों में बीमारी लगने की समस्या बढ़ गई है। बेमौसम बारिश और सर्दियों में बढ़ते तापमान ने फलों के आकार और मिठास पर असर डाला है। अधिकांश बगीचे पुराने हो चुके हैं जिनका पुनरुद्धार नहीं हो पाया है।
बंदरों और अन्य जंगली जानवरों की बढ़ती धमक से भी उत्पादन को बचाना चुनौतीपूर्ण हो गया है। स्वाद में मीठापन और बेहद रसीला होने के कारण रमाड़ी का संतरा ग्राहकों की पहली पसंद है। जैविक पद्धति से तैयार होने के कारण इसकी मांग बढ़ी है। आपूर्ति कम होने के कारण अब इसकी कीमतें भी आसमान छूने लगी हैं। गांव में संतरा पांच से आठ रुपये प्रति नग के अनुसार बिक रहा है।
यह है किसानों का कहना
हम पूर्वजों के समय से संतरों का उत्पादन कर रहे हैं। हमारे पास 50 से अधिक पौधे हैं। सालाना उत्पादन में गिरावट आ रही है। कई जगह से फोन के माध्यम से डिमांड आ रही है। पानी की कमी और समय से बरसात नहीं होने के चलते इस बार उत्पादन कम हुआ है। -तारा देवी, किसान
प्रचार-प्रसार होने और आधुनिक समय में गांव तक पहुंचने के साधनों में बढ़ोतरी होने से संतरों की काफी मांग है। मांग बढ़ने से कीमतें तो मिल रही हैं लेकिन उत्पादन करना चुनौतीपूर्ण हो रहा है। सिंचाई के साधनों की कमी से भी पैदावार प्रभवित हो रही है। ओलावृष्टि से भी नुकसान हुआ है। -बलवंत सिंह कोश्यारी, किसान
हमारे समय में संतरा पांच पैसे प्रति नग की दर से बिकता था। आज कीमतें 10 रुपये प्रति नग तक पहुंच गई हैं लेकिन उत्पादन न होने से मांग पूरी नहीं हो पा रही है। काश्तकार मेहनत तो कर रहे हैं लेकिन जलवायु में हो रहे बदलाव से संतरों का उत्पादन कम हुआ है। -उमेद सिंह, काश्तकार

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