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UK: सिस्टम की बेरुखी...यहां 200 से अधिक परिवारों ने मुंह मोड़ा, बाजार के लिए नापनी पड़ती है 12 KM की पैदल दूरी

राहुल महर Published by: हीरा मेहरा Updated Mon, 24 Nov 2025 04:29 PM IST
सार

ग्राम पंचायत मोस्टा बकोड़ा पलायन की गंभीर समस्या से जूझ रही है, जहां कभी 500 से अधिक परिवार रहते थे, अब वहां 300 से भी कम परिवार शेष बचे हैं। इस पलायन का मुख्य कारण बुनियादी सुविधाओं का गंभीर अभाव है।

 

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Lack of Facilities is driving migration in Mosta Bakora
ग्राम पंचायत मोस्टा बकोड़ा। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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कभी 500 से अधिक परिवारों का बसेरा रहा ग्राम पंचायत मोस्टा बकोड़ा पलायन की गंभीर समस्या से जूझ रहा है। बुनियादी सुविधाओं से महरूम इस गांव में 300 से भी कम परिवार रह गए हैं। इस गांव से परिवारों का पलायन जारी है। ग्रामीणों के अनुसार पलायन का सबसे प्रमुख कारण सड़क सुविधा नहीं होना है। गांव से बाजार तक पहुंचने के लिए लोगों को आज भी करीब 12 किमी दूर मंच आना पड़ता है। गांव में किसी भी प्रकार की दुकान न होने के कारण रोजमर्रा की छोटी-छोटी जरूरतों के लिए भी लंबा सफर तय करना ग्रामीणों की मजबूरी है।

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ग्राम पंचायत में शिक्षा व्यवस्था केवल आठवीं कक्षा तक ही सीमित है। आगे की पढ़ाई के लिए छात्रों को 12 किमी दूर मंच या फिर टनकपुर जाना पड़ता है। स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति भी वर्षों से नहीं सुधर सकी है। छोटी सी बीमारी के इलाज लिए भी ग्रामीणों को जिला मुख्यालय जाना पड़ता है। आपातकाल में आज भी मरीजों को डोली के सहारे सड़क तक पहुंचाना पड़ता है। 

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खेती-बाड़ी में गिरावट, गहत की मशहूर खेती अब घट रही
मोस्टा बकोड़ा गहत की खोती की पैदावार के लिए कभी बेहद मशहूर था। सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं न होने का असर खेतीबाड़ी पर भी पड़ा है। यहां 50 फीसदी से भी कम लोग खेती कर रहे हैं। ग्रामीणों के अनुसार जब तक सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं सुधरतीं तब तक पलायन पर रोक लग पाना मुश्किल है।

मोस्टा बकोड़ा क्षेत्र में सड़क न होने से यहां के लोग सबसे ज्यादा परेशान हैं। कई बार विभागों को पत्र दिए, लेकिन अभी तक सड़क नहीं पहुंची है। गांव के युवा बेहतर भविष्य के लिए गांव छोड़ रहे हैं, यह हमारे लिए चिंता का विषय है। - रविंद्र रावत, ग्राम प्रधान बकोड़ा

आज भी बीमार पड़ जाएं तो डोली में ले जाना पड़ता है। सड़क होती तो अस्पताल तक जल्दी पहुंच जाते। हमारे बच्चों ने मजबूरी में गांव छोड़ दिया है। अपनी मिट्टी छोड़कर कोई जाना नहीं चाहता है। - गोविंद सिंह, स्थानीय बकोड़ा।

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