Uk News :दिए गए अतिरिक्त वेतन की वसूली का आदेश निरस्त, न्यायमूर्ति मनोज कुमार की एकलपीठ में मामले की सुनवाई
हाईकोर्ट ने राज्य के सरकारी कर्मचारियों को राहत देते हुए वेतन से अतिरिक्त भुगतान की वसूली के आदेश को निरस्त कर दिया है। इस फैसले के बाद राज्य के विभिन्न विभागों में कार्यरत उन कर्मचारियों को राहत मिली है।
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उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य के सरकारी कर्मचारियों को बड़ी राहत देते हुए वेतन से अतिरिक्त भुगतान की वसूली संबंधी आदेशों को निरस्त कर दिया है। इस फैसले के बाद राज्य के विभिन्न विभागों में कार्यरत उन कर्मचारियों को राहत मिली है, जिनसे वर्षों पुराने कथित अधिक भुगतान की वसूली की जा रही थी। न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। मामले के अनुसार राम उजागर व अन्य ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
इस मामले का मूल विवाद वेतन निर्धारण में हुई कथित त्रुटियों और उसके आधार पर कर्मचारियों को मिले अतिरिक्त वित्तीय लाभों से जुड़ा था। लेखा परीक्षा दल की आपत्ति के बाद सक्षम प्राधिकारी ने यह मानते हुए वसूली के आदेश जारी कर दिए थे कि कर्मचारियों को गलत वेतन निर्धारण के चलते अतिरिक्त वेतन और इंक्रीमेंट का लाभ मिला है। याचिका में कहा कि यह कार्यवाही 27 मई 2019 को जारी शासनादेश के आधार पर की गई थी।
याचिकाकर्ताओं ने इन वसूली आदेशों को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। कर्मचारियों की ओर से कहा गया कि उन्हें जो वेतन और लाभ दिए गए वे सक्षम अधिकारियों के माध्यम से नियमों के अनुरूप स्वीकृत थे। ऐसे में वर्षों बाद वसूली का आदेश जारी करना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध और पूरी तरह मनमाना है। साथ ही यह आर्थिक रूप से कर्मचारियों के लिए अत्यंत कठोर है। सुनवाई के दौरान न्यायालय के संज्ञान में यह तथ्य आया कि इसी प्रकार के एक मामले में कोर्ट ने निर्णय दिया जा चुका है, जिसमें लेखा परीक्षा रिपोर्ट और 27 मई 2019 के शासनादेश को रद्द कर दिया गया था।
कोर्ट ने कहा कि जब समान मुद्दे पर पहले ही निर्णय हो चुका है, तो वर्तमान याचिकाओं का निस्तारण भी उसी के अनुरूप किया जाना उचित होगा। सरकार की ओर से वसूली के आदेश को सही ठहराते हुए कहा कि लेखा परीक्षा आपत्ति के बाद सक्षम प्राधिकारी को अधिक भुगतान की वसूली का अधिकार हए, कहा गया कि कर्मचारियों ने संशोधित वेतनमान का विकल्प चुनते समय एक अंडरटेकिंग दी थी, जिसके आधार पर वे वसूली के लिए बाध्य होते हैं। इस संदर्भ में उच्चतम न्यायालय के एक फैसले का उल्लेख किया गया। सभी पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने कर्मचारियों की याचिकाएं स्वीकार करते हुए वसूली के आदेशों को रद्द कर दिया। हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि सक्षम प्राधिकारी आवश्यक होने पर लागू नियमों और नीतियों के अंतर्गत कर्मचारियों के वेतन का पुनः निर्धारण कर सकता है। इसका अर्थ यह है कि भविष्य के वेतन निर्धारण पर पुनर्विचार संभव रहेगा, लेकिन पिछली अवधि के लिए की जा रही रिकवरी तत्काल प्रभाव से समाप्त मानी जाएगी।