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Uk: चमक समेटे बिखरी धूल को नहीं कर सकते फेंकने की भूल, सोना निकालने की सदियों पुरानी कला

राजेंद्र सिंह बिष्ट बबली Published by: गायत्री जोशी Updated Thu, 25 Dec 2025 04:26 PM IST
सार

हल्द्वानी के सर्राफा बाजार की चमक-दमक के पीछे एक ऐसी दुनिया है जो नजर से ओझल रहते हुए भी सोने की तलाश में अंधेरे में मेहनत की मिसाल गढ़ती है।

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We cannot make the mistake of throwing away the dust that holds the sparkle within it
हल्द्वानी में सुनार की दुकानों के सामने से धूल एकत्र करते मौहम्मद आसिफ। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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हल्द्वानी के सर्राफा बाजार की चमक-दमक के पीछे एक ऐसी दुनिया है जो नजर से ओझल रहते हुए भी सोने की तलाश में अंधेरे में मेहनत की मिसाल गढ़ती है। सुबह और देर रात जब बाजार की रौनक थम जाती है तब कुछ लोग झाड़ू और ब्रश के साथ ज्वैलर्स की दुकानों के बाहर जमी धूल में अपनी चमकदार किस्मत तलाशते दिखाई देते हैं। यह मामूली सफाई नहीं बल्कि धूल से सोना निकालने की सदियों पुरानी कला है जिसे न्यारा कहा जाता है।

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क्या है न्यारा
सुनारों के काम के दौरान सोने-चांदी के अति सूक्ष्म कण कपड़ों, जूतों या हवा के साथ दुकान से बाहर आ जाते हैं और धीरे-धीरे धूल में मिल जाते हैं। इन्हीं कणों को चुन-चुनकर एकत्र करना न्यारा कहलाता है

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पूरे भारत में जाते हैं हुनरमंद
11 वर्षों से आगरा से न्यारा करने हल्द्वानी आ रहे शुएब बताते हैं कि यह उनका खानदानी पेशा है। वह पूरे हिंदुस्तान में सर्राफा बाजारों के बाहर की रेत इकट्ठा करते हैं। नौ वर्षों से इस काम में लगे उवेश का कहना है कि उनके परिवार की कई पीढ़ियां इसी हुनर से जुड़ी रही हैं। कानपुर के जावेद के अनुसार रात में काम करने का मकसद यही होता है कि धूल उड़ने से आम लोगों को परेशानी न हो।


ऐसे प्राप्त होता है धूल से सोना
धूल इकट्ठा कर न्यारा करने वाले उसे आगरा ले जाते हैं। जहां एक विशेष प्रक्रिया से उसमें से सोना निकालने की कोशिश की जाती है। भोसले ज्वैलर्स के राजू भोसले बताते हैं कि धूल एकत्र करने के बाद इसे कई बार धोया जाता हैं। इसके बाद जो गाद बैठती है उसे रांगा डालकर रिफाइन किया जाता है। करीब पांच से छह घंटे की लगातर मेहनत के बाद सोना प्राप्त होता है।

300-400 मिली ग्राम सोना निकालता है
सर्राफा कारोबारियों की मानें तो यह प्रक्रिया स्वाभाविक है। भोसले ज्वैलर्स के स्वामी राजू भोसले बताते हैं कि दुकानदार आमतौर पर झाड़ू अंदर की ओर लगाते हैं जबकि बाहर की सफाई न्यारा करने वाले करते हैं। यदि दस दुकानों के सामने की धूल एकत्र की जाए तो उससे लगभग 300 से 400 मिलीग्राम तक सोना निकाला जा सकता है।

दुकान के अंदर की धूल का होता है ठेका
न्यारा करने वाले दुकान के बाहर से तो बिना कुछ रकम चुकाए धूल एकत्र कर लेते हैं लेकिन भीतर की धूल का ठेका होता है। भीतर की धूल का ठेका दुकान में होने वाले सोने के काम से तय होता है। जहां आभूषण निर्माण का कम काम होता है वहां की धूल का सालभर का करीब 70 हजार में ठेका होता है। बड़ी दुकानों से धूल एकत्र करने के लिए न्यारा करने वालों को करीब डेढ़ लाख रुपये तक चुकाने पड़ते हैं। सिद्धि ज्वैलर्स के यज्ञ वर्मा के अनुसार जिन दुकानों में हस्तशिल्प के कारीगर बैठते हैं वहां साल भर के कूड़े और रेत से लगभग 10 ग्राम सोना मिलने की संभावना रहती है।

 


 
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