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Pithoragarh News: छह हजार फुट की ऊंचाई पर कनार मेले में उमड़ा आस्था का सैलाब
संवाद न्यूज एजेंसी, पिथौरागढ़
Updated Thu, 04 Dec 2025 10:35 PM IST
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अस्कोट (पिथौरागढ़)। बंगापानी तहसील क्षेत्र के कनार गांव में समुद्र तल से छह हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित कोकिला मंदिर में एक दिनी रात्रिकालीन मेले में आस्था का सैलाब उमड़ा। मेले में श्रद्धालुओं ने मां कोकिला के दर्शन कर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मांगा। मेले में कनार के सबसे बड़े दमाऊ की आवाज से पूरा क्षेत्र गूंजता रहा।
कनार स्थित प्रसिद्ध मां कोकिला मंदिर में आयोजित मुख्य मेले में बीते बुधवार दोपहर से ही भीड़ जुटनीं शुरू हो गई थी। मेले में जाराजिबली, अस्कोट, मेतली, गोगई, तोली, चामी, बलुवाकोट, पय्यापौड़ी, बरम, लुमती, मुनस्यारी, बजानी, धारचूला आदि क्षेत्रों के लोगों ने मां कोकिला की पूजा, अर्चना कर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मांगा। देर शाम पारंपरिक तरीके से इन गांवों की जातें ढोल-नगाड़ों की थाप पर मुख्य मंदिर से मलौरा रवाना हुई। स्थानीय महिलाओं ने पारंपरिक नृत्य के साथ देवी मां के डोले को विदा किया। देवी मां का डोला लगभग चार किमी दूर मलौरा तक पहुंचाया गया।
इस दौरान देवडांगरों ने अवतरित होकर श्रद्धालुओं को समृद्ध जीवन का आशीर्वाद दिया। मंदिर के प्रांगण में रातभर धूनी जलती रही। श्रद्धालुओं ने रात भर-भजन कीर्तन कर मां कोकिला का गुणगान किया। मंदिर समिति के मुताबिक मेले में शामिल होने विभिन्न हिस्सों से 10 हजार से अधिक श्रद्धालु पहुंचे। बृहस्पतिवार को मां कोकिला को भोग लगाने और आरती के बाद मेले का समापन हुआ।
राज्य के सबसे बड़े दमुआ का वादन रहा आकर्षण
कनार के कोकिला मंदिर में बजने वाला दमुआ मेले का मुख्य आकर्षण रहा। इस दमुआ को राज्य के सबसे बड़े दमुआ के रूप में पहचान मिली है। पारंपरिक तरीके से तैयार यह दमुआ मां कोकिला मां को समर्पित है। मेले में इसी दमुआ की थाप पर देवडांगर अवतरित होते हैं। संवाद
10 साल से बंद है पशु बलि
पूर्व में कोकिला मां मंदिर में आयोजित मेले में पशु बलि की प्रथा थी। यहां सैकड़ों की संख्या में बकरों की बलि दी जाती थी। स्थानीय लोगों और प्रशासन की पहल पर वर्ष 2015 में बलि प्रथा बंद कर दी गई। अब लोग बगैर बलि के ही आस्था के साथ मेले में शामिल होने पहुंचते हैं।
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कनार स्थित प्रसिद्ध मां कोकिला मंदिर में आयोजित मुख्य मेले में बीते बुधवार दोपहर से ही भीड़ जुटनीं शुरू हो गई थी। मेले में जाराजिबली, अस्कोट, मेतली, गोगई, तोली, चामी, बलुवाकोट, पय्यापौड़ी, बरम, लुमती, मुनस्यारी, बजानी, धारचूला आदि क्षेत्रों के लोगों ने मां कोकिला की पूजा, अर्चना कर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मांगा। देर शाम पारंपरिक तरीके से इन गांवों की जातें ढोल-नगाड़ों की थाप पर मुख्य मंदिर से मलौरा रवाना हुई। स्थानीय महिलाओं ने पारंपरिक नृत्य के साथ देवी मां के डोले को विदा किया। देवी मां का डोला लगभग चार किमी दूर मलौरा तक पहुंचाया गया।
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इस दौरान देवडांगरों ने अवतरित होकर श्रद्धालुओं को समृद्ध जीवन का आशीर्वाद दिया। मंदिर के प्रांगण में रातभर धूनी जलती रही। श्रद्धालुओं ने रात भर-भजन कीर्तन कर मां कोकिला का गुणगान किया। मंदिर समिति के मुताबिक मेले में शामिल होने विभिन्न हिस्सों से 10 हजार से अधिक श्रद्धालु पहुंचे। बृहस्पतिवार को मां कोकिला को भोग लगाने और आरती के बाद मेले का समापन हुआ।
राज्य के सबसे बड़े दमुआ का वादन रहा आकर्षण
कनार के कोकिला मंदिर में बजने वाला दमुआ मेले का मुख्य आकर्षण रहा। इस दमुआ को राज्य के सबसे बड़े दमुआ के रूप में पहचान मिली है। पारंपरिक तरीके से तैयार यह दमुआ मां कोकिला मां को समर्पित है। मेले में इसी दमुआ की थाप पर देवडांगर अवतरित होते हैं। संवाद
10 साल से बंद है पशु बलि
पूर्व में कोकिला मां मंदिर में आयोजित मेले में पशु बलि की प्रथा थी। यहां सैकड़ों की संख्या में बकरों की बलि दी जाती थी। स्थानीय लोगों और प्रशासन की पहल पर वर्ष 2015 में बलि प्रथा बंद कर दी गई। अब लोग बगैर बलि के ही आस्था के साथ मेले में शामिल होने पहुंचते हैं।

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