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Pithoragarh News: सुविधाओं के अभाव में पलायन का दंश झेल रहे भेरंग पट्टी के गांव
संवाद न्यूज एजेंसी, पिथौरागढ़
Updated Mon, 22 Dec 2025 01:13 AM IST
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गिरीश पंत
गंगोलीहाट (पिथौरागढ़)। सीमांत जिले में अब भी ऐसे कई गांव हैं जो विकास से कोसों दूर हैं। गांवों में बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार की सुविधा नहीं हैं। वन्यजीवों की दहशत हर दिन बढ़ रही है। ऐसे में कई ग्रामीणों के लिए पलायन करना मजबूरी बन गया है। गंगोलीहाट के भेरंग पट्टी में राज्य गठन के बाद से अब तक क्षेत्र के 18 से अधिक गांवों में 50 प्रतिशत से ज्यादा परिवार पलायन कर चुके हैं। इन गांव में अब आर्थिक रूप से कमजोर, बुजुर्ग और अनुसूचित जाति के लोग ही रह गए हैं।
सबसे अधिक पलायन पोखरी गांव से हुआ है। यहां कभी 150 परिवार रहते थे। अब गांव में 25 लोग ही मौजूद हैं। भेरंग पट्टी के पोखरी, विरगोली, मल्लागर्खा, चौली, नरग्वाड़ी, बहेलकोट, हटकेश्वर, बोयल, खुलेत, जजुट, सकार, स्वाल, अग्रोन, पाली, चिटगल और सोन की हाट से भी पलायन जारी है। इन गांवों में राज्य गठन तक 1250 से अधिक परिवार रहते थे, अब मात्र 500 परिवार ही हैं।
ग्रामीणों ने बताया कि पलायन का मुख्य कारण स्वास्थ्य, शिक्षा सुविधाओं के साथ ही रोजगार का अभाव है। स्वास्थ्य सेवाओं के लिए नजदीकी अस्पतालों में बेहतर सुविधा नहीं है। सरकारी स्कूलों में पढ़ाने के लिए शिक्षक नहीं हैं। इन सब के बीच जंगली जानवरों की दहशत भारी पड़ी है। खेती से रोजगार कर रहे किसानों की मेहनत पर भालू, बंदर, लंगूर, जंगली सुअर सहित अन्य वन्यजीव पानी फेर रहे हैं। ऐसे में खेती करना भी मुश्किल हो गया है। किसान खेती छोड़ रोजगार के लिए पलायन करने के लिए मजबूर हैं। संवाद
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भेरंग पट्टी फलों की पैदावार के लिए है प्रसिद्ध
ग्रामीणों ने बताया कि पहले पूरे क्षेत्र में सभी प्रकार के फल और सब्जियां प्रचुर मात्रा में हुआ करती थीं। बिरगोली के माल्टा, नारंगी, अमृतफल और बोयल के हजारी केले की दूर-दूर तक मांग थी। इनके अलावा आडू, पुलम, खुमानी, आंवला, केला, पपीता, अमरूद, लीची, कटहल के साथ सभी प्रकार की सब्जियां ग्रामीण पैदा करते थे। सिंचाई के साधनों का रखरखाव न होना और साही, जंगली सुअर, खरगोश और बंदरों की वजह से खेत बंजर हो गए हैं। ग्रामीण हल्द्वानी, लखनऊ, मुंबई, दिल्ली समेत तहसील और जिला मुख्यालय की ओर पलायन कर रहे हैं।
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बोले ग्रामीण
सब्जी और फसलों की जंगली जानवरों से दिन-रात रखवाली करनी पड़ती है। चूक होने पर जंगली जानवर खेतों को तबाह कर देते हैं। - मोहन सिंह, सब्जी उत्पादक निवासी जजुट
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बंदरों की वजह से फलों के बगीचे समाप्त होने की कगार पर हैं। पुराने पेड़ बूढ़े हो चुके हैं। लोगों ने नए पेड़ लगाने बंद कर दिए है। - जीवन चंद्र पंत, फल उत्पादक निवासी पाली गांव
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शिक्षक और चिकित्सकों के अभाव में पहाड़ के लोगों को सुविधा नहीं मिलती है। रोजगार के साधन नहीं हैं। ऐसे में पलायन करना लोगों की मजबूरी है। - नारायण सिंह महरा, निवासी बिरगोली
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गांव में बुजुर्ग लोग रह गए हैं। राज्य बनने के बाद पहाड़ के गांवों की ओर सरकारों ने ध्यान नहीं दिया। सुविधा मिलती तो पलायन नहीं होता। - सुरेंद्र सिंह बिष्ट, निवासी हाटकेश्वर
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गंगोलीहाट (पिथौरागढ़)। सीमांत जिले में अब भी ऐसे कई गांव हैं जो विकास से कोसों दूर हैं। गांवों में बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार की सुविधा नहीं हैं। वन्यजीवों की दहशत हर दिन बढ़ रही है। ऐसे में कई ग्रामीणों के लिए पलायन करना मजबूरी बन गया है। गंगोलीहाट के भेरंग पट्टी में राज्य गठन के बाद से अब तक क्षेत्र के 18 से अधिक गांवों में 50 प्रतिशत से ज्यादा परिवार पलायन कर चुके हैं। इन गांव में अब आर्थिक रूप से कमजोर, बुजुर्ग और अनुसूचित जाति के लोग ही रह गए हैं।
सबसे अधिक पलायन पोखरी गांव से हुआ है। यहां कभी 150 परिवार रहते थे। अब गांव में 25 लोग ही मौजूद हैं। भेरंग पट्टी के पोखरी, विरगोली, मल्लागर्खा, चौली, नरग्वाड़ी, बहेलकोट, हटकेश्वर, बोयल, खुलेत, जजुट, सकार, स्वाल, अग्रोन, पाली, चिटगल और सोन की हाट से भी पलायन जारी है। इन गांवों में राज्य गठन तक 1250 से अधिक परिवार रहते थे, अब मात्र 500 परिवार ही हैं।
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ग्रामीणों ने बताया कि पलायन का मुख्य कारण स्वास्थ्य, शिक्षा सुविधाओं के साथ ही रोजगार का अभाव है। स्वास्थ्य सेवाओं के लिए नजदीकी अस्पतालों में बेहतर सुविधा नहीं है। सरकारी स्कूलों में पढ़ाने के लिए शिक्षक नहीं हैं। इन सब के बीच जंगली जानवरों की दहशत भारी पड़ी है। खेती से रोजगार कर रहे किसानों की मेहनत पर भालू, बंदर, लंगूर, जंगली सुअर सहित अन्य वन्यजीव पानी फेर रहे हैं। ऐसे में खेती करना भी मुश्किल हो गया है। किसान खेती छोड़ रोजगार के लिए पलायन करने के लिए मजबूर हैं। संवाद
भेरंग पट्टी फलों की पैदावार के लिए है प्रसिद्ध
ग्रामीणों ने बताया कि पहले पूरे क्षेत्र में सभी प्रकार के फल और सब्जियां प्रचुर मात्रा में हुआ करती थीं। बिरगोली के माल्टा, नारंगी, अमृतफल और बोयल के हजारी केले की दूर-दूर तक मांग थी। इनके अलावा आडू, पुलम, खुमानी, आंवला, केला, पपीता, अमरूद, लीची, कटहल के साथ सभी प्रकार की सब्जियां ग्रामीण पैदा करते थे। सिंचाई के साधनों का रखरखाव न होना और साही, जंगली सुअर, खरगोश और बंदरों की वजह से खेत बंजर हो गए हैं। ग्रामीण हल्द्वानी, लखनऊ, मुंबई, दिल्ली समेत तहसील और जिला मुख्यालय की ओर पलायन कर रहे हैं।
बोले ग्रामीण
सब्जी और फसलों की जंगली जानवरों से दिन-रात रखवाली करनी पड़ती है। चूक होने पर जंगली जानवर खेतों को तबाह कर देते हैं। - मोहन सिंह, सब्जी उत्पादक निवासी जजुट
बंदरों की वजह से फलों के बगीचे समाप्त होने की कगार पर हैं। पुराने पेड़ बूढ़े हो चुके हैं। लोगों ने नए पेड़ लगाने बंद कर दिए है। - जीवन चंद्र पंत, फल उत्पादक निवासी पाली गांव
शिक्षक और चिकित्सकों के अभाव में पहाड़ के लोगों को सुविधा नहीं मिलती है। रोजगार के साधन नहीं हैं। ऐसे में पलायन करना लोगों की मजबूरी है। - नारायण सिंह महरा, निवासी बिरगोली
गांव में बुजुर्ग लोग रह गए हैं। राज्य बनने के बाद पहाड़ के गांवों की ओर सरकारों ने ध्यान नहीं दिया। सुविधा मिलती तो पलायन नहीं होता। - सुरेंद्र सिंह बिष्ट, निवासी हाटकेश्वर

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