बढ़ गया जोखिम: धरती हिली तो तराई-भाबर वालों को रहना होगा सतर्क, आने वाले समय में खतरें का जताया जा रहा अंदेशा
भूकंप की दृष्टि से कुमाऊं के तराई भाबर का क्षेत्र में वर्तमान में अति संवेदनशील है। आईआईटी कानपुर के भूगर्भ वैज्ञानिकों ने रामनगर क्षेत्र का नंदपुर गैबुआ क्षेत्र में बड़ा भूकंप आने की आशंका जताई है।
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भूकंप की दृष्टि से कुमाऊं के तराई भाबर का क्षेत्र में वर्तमान में अति संवेदनशील है। आईआईटी कानपुर के भूगर्भ वैज्ञानिकों ने रामनगर क्षेत्र का नंदपुर गैबुआ क्षेत्र में बड़ा भूकंप आने की आशंका जताई है। भारतीय मानक ब्यूरो ने डिजाइन भूकंपीय जोखिम संरचनाओं के भूकंपरोधी डिजाइन के मानदंड रीति संहित 2025 में नया भूकंपीय क्षेत्रीकरण मानचित्र जारी किया है। भूकंप की दृष्टि से कुमाऊं के तराई भाबर का क्षेत्र में वर्तमान में अति संवेदनशील है। फरवरी 2020 में आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक प्रोफेसर जावेद मलिक की अगुवाई में आठ भूगर्भ वैज्ञानिकों की टीम रामनगर पहुंची थी।
टीम ने ग्राउंड प्रेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर), ग्लोबल पोजिशन सिस्टम (जीपीएस) और सेटेलाइट के जरिए पहाड़ और तराई में 1505 और 1803 में आए भूकंप के निशान तलाशे थे और उस जगह को चिह्नित किया। यह जगह रामनगर-हल्द्वानी मार्ग पर 15 किमी की दूरी पर नंदपुर गांव और कुछ दूरी पर पहाड़ में नजर आई थी। यहां पर भूगर्भ वैज्ञानिकों ने पांच दिन तक जांच पड़ताल कर एक रिपोर्ट तैयार की थी। तब वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र को अति संवेदनशील घोषित किया था।
7.5 से लेकर 8 रिक्टर स्केल की तीव्रता वाला आएगा भूकंप
आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक प्रोफेसर जावेद मलिक ने बताया कि रामनगर इलाके पर तीव्र भूकंप का खतरा है। संभावना जताई कि आने वाले वर्षों में रामनगर इलाके में 7.5 से लेकर 8 रिक्टर स्केल की तीव्रता वाला भूकंप आएगा। इससे बरेली, लखनऊ, कानपुर, दिल्ली के इलाके प्रभावित होंगे। बताया कि रामनगर के नंदपुर गैबुआ में वर्ष 1505 में 8 तीव्रता और 1803 में 7.5 तीव्रता का भूकंप आया था। गहन अध्ययन से तैयार की गई इस रिपोर्ट को मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंस को भेजा गया है।
टेक्टोनिक प्लेटों की सक्रियता बढ़ी
वैज्ञानिक मलिक ने बताया कि टेक्टोनिक प्लेटों की सक्रियता बढ़ने लगी है। हल्के भूकंप के झटके महसूस होने लगते है। जहां तीव्रता का भूकंप आया हो वहां 500-550 साल में कंपन फिर शुरू होती है भूकंप आने की आशंका बढ़ जाती है। इसका सटीक समय नहीं बताया जा सकता है, यह घटना कभी भी घट सकती है। समय निश्चित भले ही न हो लेकिन भूकंप आना निश्चित है। ग्राउंड पैंट्रिंग रडार के माध्यम से आठ मीटर अंदर तक जमीन को परखा है। मिट्टी की सतह एक के ऊपर एक चढ़ी है। प्राकृतिक आपदाओं को रोका नहीं जा सकता है लेकिन समय रहते जानकारी काफी बचाव कर सकती है।
केंद्र बदल-बदल कर आ रहे भूकंप
प्रो. मलिक के अनुसार हिमालयी क्षेत्र में 50 साल के अंतराल में केंद्र बदल-बदल कर भूकंप आ रहे हैं। वर्ष 1905 में कांगड़ा धर्मशाला हिमाचल, 1934 में बिहार-नेपाल बॉर्डर, 1950 में असोम, 2005 में कश्मीर और 2015 में नेपाल में बड़े भूकंप आए थे। यह सभी भूकंप हिमालय के ऊपरी हिस्सों में आए। माना जाता है कि जिस स्थान पर तीव्र गति वाला भूकंप आता है वहां पांच-छह सौ साल बाद भूकंप जरूर आता है।