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VIDEO : 21वीं सदी में बालोद के इस गांव तक नहीं पहुंच पाया मोबाइल नेटवर्क, लैंडलाइन के भरोसे जीवन, छात्रों का भविष्य अधर में है लटका
बालोद ब्यूरो
Updated Wed, 19 Mar 2025 10:43 AM IST
भारत ने चांद पर कदम रख लिया है। एयरफाइबर का दौर चल रहा है। ऑनलाइन क्लासेज चल रही हैं। लेकिन बालोद जिले का एक गांव ऐसा भी है। जहां गर्भवती महिलाओं को यदि अस्पताल ले जाने महतारी एक्सप्रेस बुलाना हो तो 3 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ रही है। जी हां.. हम बात कर रहे हैं बालोद जिले के ग्राम किल्ले कोड़ा की। बालोद जिले का यह गांव आदिवासी बाहुल्य गांव हैं। इस गांव को ये भी नहीं पता कि मोबाइल क्या होता है। क्योंकि मोबाइल का उपयोग तो करते हैं केवल गेम खेलने के लिए। आज भी यहां के ग्रामीण लैंडलाइन के सहारे अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। सोशल मीडिया और संचार क्रांति के इस दौर में मोबाइल नेटवर्क के अभाव में शासन की ऑनलाइन योजनाओं और सुविधाओं का लाभ भी ग्रामीणों को नहीं मिल पा रहा। ग्रामीणों ने बताया कि दिन के समय अगर किसी को बहुत जरूरी बात करनी हो तो पहाड़ी पर जाना पड़ता है। रात के समय कोई इमरजेंसी होने पर सुबह का इंतजार करना पड़ता है। सबसे ज्यादा दिक्कत बीमार और गर्भवती महिलाओं को अस्पताल पहुंचाने के लिए महतारी एक्सप्रेस और एंबुलेंस बुलाने में आती है। ऑनलाइन कक्षाओं से तो यह बच्चे कोसों दूर हैं। जिस कारण शिक्षा का स्तर भी यहां गिरते जा रहा है। ग्रामीण तुकेश्वर प्रसाद सिन्हा ने बताया कि गांव में कोई विपत्ति हो तो हमें नेटवर्क खोजने सबसे पहले गांव से 3 किलोमीटर दूर दूसरे गांव में जाना पड़ता है। उन्होंने बताया कि कई बार हम बालोद जा चुके हैं। जिला प्रशासन के पास अपनी समस्याओं को रख चुके हैं। बावजूद इसके अब तक किसी तरह को कोई भी निराकरण नहीं मिल पाया है। और हमारे गांव में ज्यादातर घरों में लैंडलाइन लगा हुआ है। वह भी अच्छे से काम नहीं करता। उसका टावर भी हमने चौक में लगा रखा है। बावजूद इसके रिश्तेदारों दोस्त यार इत्यादि से बात करने काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। शिक्षक गोकुल सोरी ने बताया कि बच्चों को पढ़ने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। यहां 12वीं तक की कक्षा है। आज कल होमवर्क ऑनलाइन वाट्सअप ग्रुप में माध्यम से दिया जाता है। ग्रुप स्ट्डीज ऑनलाइन होती है। ऐसे में इन बच्चों के लिए आधुनिकता अभी बहुत दूर है। इसका एकमात्र कारण नेटवर्क की समस्या है। बच्चे अगर पढ़ना चाहे ऑनलाइन तो वो पहाड़ों में थोड़ी जायेंगे। वहीं हमारे गांव में कलाकार मूर्तिकार हैं। उन्हें भी यदि संपर्क करना हो तो असंभव है। इसलिए उनका व्यापार भी पतन की ओर जा रहा है। उप सरपंच दीपक भूआर्य ने बताया कि पंचायत के माध्यम से शासन और प्रशासन तक आवेदन दे चुके हैं। लेकिन अब तक किसी तरह का कोई सार्थक प्रयास नहीं किया गया है। गांव की महिला श्यामवती सिन्हा और आरती सिन्हा ने बताया कि हम सब गांव की महिलाएं हैं और छोटे-छोटे काम करके अपने जीवन यापन चलते हैं यदि हम अपने व्यवसाय को बढ़ाना हो तो चाहकर भी नहीं बढ़ा सकते। क्योंकि इसके लिए नेटवर्क कनेक्टिविटी बहुत ही जरूरी है। हम सब इससे कोसो दूर हैं। लैंडलाइन फोन हैं। उससे भी बात करना बहुत संघर्ष भरा रहता है।
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