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ओवैसी की AIMIM ने राजद-कांग्रेस को पहुंचाया कितना नुकसान?
अमर उजाला डिजिटल डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Sat, 15 Nov 2025 04:36 PM IST
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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने एक बार फिर सीमांचल की राजनीति में अपनी पकड़ साबित कर दी है। पार्टी ने इस बार 25 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिनमें से 24 सीटें सीमांचल की मुस्लिम बहुल विधानसभा क्षेत्र थीं। अंतिम नतीजों में AIMIM ने 5 सीटों पर जीत हासिल कर अपने 2020 वाले प्रदर्शन को दोहरा दिया।
2020 के विधानसभा चुनाव में AIMIM ने जोकीहाट, बहादुरगंज, ठाकुरगंज, किशनगंज और कोचाधामन सीट पर जीत दर्ज की थी। हालांकि बाद में इनमें से 4 विधायकों ने RJD का दामन थाम लिया था, जिसके कारण AIMIM की पकड़ कमजोर मानी जा रही थी। लेकिन 2025 के नतीजों ने साफ कर दिया कि ओवैसी की पार्टी सीमांचल में अपनी जड़ें मजबूत कर चुकी है। इस बार भी पार्टी ने 5 सीटें जीतकर अपना प्रभाव कायम रखा है।
इस बार AIMIM को कुल 1.88% वोट मिले हैं, जो यह दर्शाता है कि सीमांचल में मुस्लिम वोटरों पर उनका प्रभाव व्यापक रूप से कायम है।
2025 में AIMIM ने जोकिहाट, बहादुरगंज, कोचाधामन, अमौर और बायसी सीट पर जीत दर्ज की है।
जीतने वाले AIMIM उम्मीदवार:
• जोकीहाट (अररिया) – मोहम्मद मुर्शिद आलम
• बहादुरगंज (किशनगंज) – मोहम्मद तौसीफ आलम
• कोचाधामन (किशनगंज) – मोहम्मद सरवर आलम
• अमौर (पूर्णिया) – अख्तरुल इमान
• बायसी (पूर्णिया) – गुलाम सरवर
इन पांच सीटों पर AIMIM की जीत ने एक बार फिर साबित कर दिया कि पार्टी सीमांचल की मुस्लिम बहुल सीटों पर गंभीर राजनीतिक ताकत बन चुकी है।
सीमांचल की 24 सीटों में मुस्लिम आबादी 40% से लेकर 70% तक है। इस क्षेत्र में ओवैसी ने चुनाव से पहले कई आक्रामक रैलियां कीं, जिनमें उन्होंने सीधे तौर पर मुस्लिम मुद्दों को उठाया। उनके भाषणों और रणनीति ने मुस्लिम वोटों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, AIMIM के प्रदर्शन ने न केवल अपनी ताकत कायम रखी बल्कि RJD और कांग्रेस जैसे दलों को भी भारी नुकसान पहुंचाया। कई सीटों पर AIMIM की मौजूदगी ने मुस्लिम वोटों को बांटा, जिसका नुकसान महागठबंधन को उठाना पड़ा। चुनावी नतीजों में यह साफ दिखा कि कांग्रेस AIMIM से भी कम सीटें जीत पाई।
सीमांचल की राजनीति में AIMIM का उभार पिछले दो चुनावों से लगातार दिख रहा है। यह क्षेत्र बिहार के बड़े दलों के लिए हमेशा से चुनौती रहा है, और अब AIMIM की स्थिर उपस्थिति ने समीकरणों को और मुश्किल बना दिया है।
ओवैसी की राजनीति पर अक्सर आरोप लगते रहे हैं कि वह वोट काटते हैं, लेकिन सीमांचल में AIMIM के संगठन और कार्यकर्ताओं ने पिछले पांच वर्षों में जमीन पर मजबूत ढांचा तैयार किया है।
2025 का चुनाव यह संकेत दे गया कि सीमांचल में AIMIM अब कोई “विकल्प” नहीं, बल्कि एक स्थायी राजनीतिक शक्ति बन चुकी है। महागठबंधन और एनडीए—दोनों के लिए आने वाले चुनावों में यह फैक्टर बेहद निर्णायक साबित हो सकता है।
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