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There was bumper voting in the first phase, what is the inclination of the people of Bihar?
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पहले चरण में हुई बंपर वोटिंग, बिहार की जनता का क्या है रुझान?
अमर उजाला डिजिटल डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Fri, 07 Nov 2025 01:48 PM IST
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बिहार ने इस बार बोलना शुरू कर दिया है लेकिन यह आवाज न तो नारों में थी, न ही माइक पर गरजते नेताओं की भाषणबाज़ी में। यह आवाज ईवीएम के सामने खड़ी चुप कतारों में थी। पहले चरण की रिकॉर्ड वोटिंग ने संकेत दे दिया है कि राज्य का मूड बदल रहा है। सबसे बड़ा सवाल है किसके पक्ष में? किसके खिलाफ? और इस बदलाव का वास्तविक जीत का फैक्टर क्या है?
सबसे उल्लेखनीय आंकड़ा यह रहा कि पहले चरण में महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा मतदान किया। कई सीटों पर यह अंतर पाँच से लेकर सात प्रतिशत तक पहुंचा। यह कोई आकस्मिक घटना नहीं, बल्कि पिछले एक दशक में सामाजिक-आर्थिक नीतियों के असर का परिणाम है।
नीतीश कुमार की 35% आरक्षण, महिला स्वयं सहायता समूह, और मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना ने ग्रामीण महिलाओं में सुरक्षा और स्वावलंबन की भावना पैदा की। दूसरी ओर, तेजस्वी यादव ने 2,500 रुपये मासिक मान-सम्मान योजना, छात्राओं के लिए सब्सिडी, और नौकरी के वादे के जरिये सीधे आर्थिक लाभ की अपील की।
यानी महिलाओं के सामने इस बार केवल “लाभ” का सवाल नहीं था सम्मान, सुरक्षा और भरोसा तौल पर थे। यही वह फ़ैक्टर है जो दोनों गठबंधनों के लिए निर्णायक साबित होगा।
बिहार की चुनावी राजनीति को दशकों से परिभाषित करने वाला जातीय समीकरण इस बार पहली बार बड़े पैमाने पर खिसकता दिखा है।
• राघोपुर में यादव बहुल इलाक़े में भाजपा को अप्रत्याशित समर्थन मिला।
• मोकामा में भूमिहार बनाम यादव की परंपरागत लड़ाई स्थानीय प्रभाव और वफादारी की जीत में बदल गई।
• EBC वर्ग, विशेषकर कुशवाहा, मल्लाह, धानुक वोट कई सीटों पर बंट गए।
यह परिवर्तन बताता है कि मतदाता अब सिर्फ जाति के लेबल से नहीं, उम्मीदवार की स्वीकार्यता, स्थानीय पकड़ और ठोस दिशा के आधार पर वोट कर रहा है। यह बदलाव किसके पक्ष में झुकेगा, यह स्थानीय उम्मीदवारों की छवि और अभियान की ज़मीन पर तय होगा।
पहली बार वोट देने वाले युवा इस चुनाव में निर्णायक भूमिका में दिखे।
उनकी मांग स्पष्ट है-
• नौकरी
• कौशल विकास
• स्थानीय स्तर पर काम के मौके
तेजस्वी ने नौकरी को अपना मुख्य एजेंडा रखा यही उनका सबसे बड़ा वोट मैगनेट है।वहीं NDA विकास मॉडल और स्थिर प्रशासन को युवाओं के लिए सुरक्षा और योजना के रूप में प्रोजेक्ट कर रहा है। यानी युवा इस बार सबसे बड़ा स्विंग ब्लॉक साबित हो सकते हैं।
सीमांचल और कोसी बेल्ट में मुस्लिम आबादी निर्णायक है। पहले चरण में जातीय ढांचे में आई दरार को संतुलित करने के लिए NDA अब धार्मिक ध्रुवीकरण की रणनीति पर आ गया है। अमित शाह, योगी आदित्यनाथ और हिमंत बिस्व सरमा की रैलियां इस संकेत का साफ उदाहरण हैं।
दूसरी ओर, महागठबंधन यहाँ माई समीकरण (मुस्लिम-यादव) को एकजुट रखने की कोशिश में है, साथ ही महिलाओं और युवाओं के पैटर्न को स्थिर आधार में बदलने का प्रयास कर रहा है।
वास्तविक जीत का फैक्टर:
अब खेल तीन बिंदुओं पर टिका है-
1. महिलाओं का मतदान किस पर निर्णायक रूप से झुकता है
2. युवाओं के नौकरी बनाम स्थिरता के एजेंडा में कौन भरोसेमंद दिखता है
3. EBC और सीमांचल में कौन अपनी पकड़ बनाए रख पाता है
पहला चरण संकेत था। दूसरा चरण निर्णय होगा। बिहार इस बार सिर्फ सरकार नहीं चुन रहा, बिहार अपनी सियासत का नया चरित्र लिख रहा है।
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