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Uproar in America over H-1B visa, Trump's decision challenged in court
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H-1B वीजा पर अमेरिका में बवाल, ट्रंप के फैसले को कोर्ट में चुनौती
अमर उजाला डिजिटल डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Fri, 17 Oct 2025 11:14 AM IST
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा हाल ही में H-1B वीजा की फीस एक लाख डॉलर तय करने के फैसले पर अब अमेरिका के भीतर ही विरोध शुरू हो गया है। अमेरिका के सबसे प्रभावशाली व्यावसायिक संगठन यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स ने इस फैसले को अदालत में चुनौती दी है।
चैंबर ऑफ कॉमर्स का कहना है कि यह फैसला न केवल अवैध है, बल्कि इससे अमेरिकी व्यवसायों की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता पर भी गंभीर असर पड़ेगा। इस फैसले से सबसे ज्यादा प्रभावित वे कंपनियां होंगी जो विदेशी प्रतिभा पर निर्भर हैं खासकर टेक्नोलॉजी, रिसर्च और इनोवेशन के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियां।
यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स ने गुरुवार को कहा कि उसने ट्रंप प्रशासन के इस फैसले को अमेरिकी संघीय अदालत में चुनौती दी है। अपनी याचिका में संगठन ने कहा है कि एच-1बी वीजा की नई फीस “गैरकानूनी” है, क्योंकि यह अप्रवासन और राष्ट्रीयता कानून (Immigration and Nationality Act) के प्रावधानों का उल्लंघन करती है।
“एक लाख डॉलर का नया वीजा शुल्क अमेरिकी नियोक्ताओं खासकर स्टार्ट-अप्स और छोटे व मध्यम आकार के व्यवसायों के लिए यह कार्यक्रम लगभग असंभव बना देगा। कांग्रेस ने यह योजना अमेरिकी व्यवसायों को वैश्विक प्रतिभा तक पहुंच देने के लिए बनाई थी, न कि उन्हें सीमित करने के लिए।”
नील ब्रैडली ने अपने बयान में कहा कि H-1B वीजा कार्यक्रम अमेरिकी नवाचार और प्रौद्योगिकी विकास की रीढ़ रहा है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर यह फैसला बरकरार रहा तो अमेरिका में कुशल विदेशी श्रम की कमी पैदा हो जाएगी, जिससे इनोवेशन और टेक्नोलॉजी सेक्टर को भारी नुकसान हो सकता है।
यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स ने कहा कि ट्रंप प्रशासन का यह कदम अमेरिका की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति को कमजोर करेगा और अन्य देशों जैसे कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूके को विदेशी प्रतिभा आकर्षित करने का मौका देगा।
कुछ दिन पहले ही राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके तहत एच-1बी वीजा की फीस बढ़ाकर एक लाख डॉलर (करीब 88 लाख रुपये) कर दी गई थी।
यह फीस उन कंपनियों से वसूली जानी है जो नए कर्मचारियों के लिए वीजा आवेदन करेंगी।
ट्रंप प्रशासन का कहना है कि यह “एकमुश्त शुल्क” है, जिसे केवल नई याचिकाओं के लिए लागू किया जाएगा यानी यह वार्षिक शुल्क नहीं है। सरकार का तर्क है कि यह फैसला “अमेरिकी नौकरियों की सुरक्षा” और “स्थानीय श्रमिकों को प्राथमिकता देने” की नीति के तहत लिया गया है।
एच-1बी वीजा पर अमेरिका में काम करने वाले सबसे अधिक लोग भारतीय मूल के हैं। हर साल लगभग 70% से अधिक H-1B वीजा भारतीय आईटी पेशेवरों को दिए जाते हैं। फीस में इतनी बड़ी बढ़ोतरी से न केवल भारतीय कंपनियों पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा, बल्कि कई अमेरिकी टेक कंपनियां भी भारतीय प्रतिभा को नियुक्त करने से हिचक सकती हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस फैसले से भारतीय आईटी उद्योग, विशेष रूप से इन्फोसिस, टीसीएस, विप्रो और टेक महिंद्रा जैसी कंपनियों को बड़ा झटका लग सकता है।
टेक उद्योग से जुड़े संगठनों का कहना है कि यह फैसला स्टार्टअप्स और छोटे व्यवसायों के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है। H-1B वीजा के जरिए वे विदेशी इंजीनियरों, डिजाइनरों और शोधकर्ताओं को नियुक्त करते हैं, जिससे उनके उत्पाद और तकनीकी नवाचार को गति मिलती है।
यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स ने चेतावनी दी कि अगर यह नीति लागू रही, तो कई विदेशी कुशल पेशेवर कनाडा या यूरोप की ओर रुख करेंगे, जिससे अमेरिका की नवाचार क्षमता और निवेश का प्रवाह घटेगा।
अमेरिका में चुनावी माहौल के बीच ट्रंप सरकार का यह फैसला एक राजनीतिक विवाद का रूप लेता जा रहा है। जहां ट्रंप इसे “अमेरिकी नौकरियों की रक्षा” के रूप में पेश कर रहे हैं, वहीं व्यापारिक संगठन और उद्योग जगत इसे आर्थिक आत्मघाती कदम बता रहे हैं।
अब अदालत में इस मामले की सुनवाई के बाद तय होगा कि क्या ट्रंप प्रशासन को पीछे हटना पड़ेगा या नहीं। लेकिन फिलहाल, यह तय है कि इस फैसले से भारतीय पेशेवरों और अमेरिकी कंपनियों दोनों की चिंता बढ़ गई है।
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