शारदीय नवरात्रि के अवसर पर राजधानी जयपुर से 50 किलोमीटर दूर स्थित आसलपुर गांव में माता आशापुरा का 1338वां प्रागट्योत्सव बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया गया। पहाड़ी की गुफा में विराजमान माता आशापुरा को चौहान वंश सहित कई समाजों की कुलदेवी माना जाता है। श्रद्धालु मां के दर्शन के लिए 400 से अधिक सीढ़ियां चढ़कर मंदिर पहुंचे।
मंदिर के पुजारी मोहित शर्मा ने बताया कि विक्रम संवत 699 में भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को माता आशापुरा पहाड़ को चीरकर प्रकट हुई थीं और सबसे पहले सांभर नरेश माणकराव को दर्शन दिए थे। इसके बाद उनके आदेश पर राजा माणकराव ने मंदिर का निर्माण कराया। तभी से भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को प्रागट्योत्सव मनाने की परंपरा चली आ रही है। इस बार यहां 1338वां आयोजन हुआ।
मंदिर समिति के संरक्षक महावीर सिंह राव के अनुसार, आसलपुर मंदिर राजस्थान में आशापुरा माता का पहला प्राकट्य स्थल माना जाता है। माता का सात्विक स्वरूप ही यहां पूजा जाता है। चावल और लापसी का भोग विशेष प्रिय माना गया है। यहां तामसिक भोग नहीं चढ़ाया जाता। चौहान वंश के अलावा मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज के 28 गोत्र, साथ ही जाट, गुर्जर और माली समाज के कई गोत्र भी माता आशापुरा को अपनी कुलदेवी मानते हैं। देशभर से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।
मंदिर सेवा समिति के अध्यक्ष शिवरतन सोनी ने बताया कि नवरात्रि और प्रागट्योत्सव पर यहां भक्तों का सैलाब उमड़ता है। दूर-दराज से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भोजन व रहने की व्यवस्था की जाती है। व्रतधारियों के लिए फलाहार की सुविधा भी रहती है।
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नवरात्रि की अष्टमी पर विशेष रूप से भव्य भंडारे का आयोजन किया गया, जिसमें 1100 कन्याओं को भोजन कराया गया। भक्तगण इस कन्या पूजन को माता को प्रसन्न करने का पावन अवसर मानते हैं। इसके बाद सभी श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण कर माता से अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति का आशीर्वाद मांगते हैं।
माना जाता है कि माता आशापुरा अपने भक्तों की झोली हमेशा भरती हैं और सबकी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। यही कारण है कि हर साल प्रागट्योत्सव और नवरात्रि में यहां आस्था का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।