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Navratri Festival: Arbudadevi Temple in Mount Abu, one of the 52 Shaktipeeths
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नवरात्रि महोत्सव: 52 शक्तिपीठों में से एक माउंटआबू स्थित अर्बुदादेवी मंदिर, जानें क्या है इसका इतिहास और महत्व
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, सिरोही Published by: सिरोही ब्यूरो Updated Tue, 08 Oct 2024 06:21 PM IST
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नवरात्रि महोत्सव में आज हम बात कर रहे हैं माउंटआबू स्थित अर्बुदादेवी मंदिर की। करीब पांच हजार साल पुराना यह मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है। बताया जा रहा है कि यहां मां के होठ गिरे थे। इसलिए इस मंदिर का नाम अधरदेवी एवं अर्बुदादेवी पड़ा। वैसे तो यहां सालभर श्रद्धालुओं की आवाजाही बनी रहती है। बात करें नवरात्रि की तो इस दौरान मेले सा माहौल बना रहता है। श्रद्धालुओं को मां के दर्शनों के लिए अपनी बारी आने के लिए इंतजार करना पड़ता है।
प्रदेश के एकमात्र हिल स्टेशन माउंटआबू में रोडवेज बस स्टैंड से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर प्राकृतिक वातावरण के बीच देलवाड़ा मार्ग पर अर्बुदादेवी मंदिर स्थित है। यह मंदिर समुद्र तल से करीब साढ़े पांच हजार फीट की ऊंचाई पर है। यहां अर्बुदादेवी, अधरदेवी एक संकरी प्राकृतिक गुफा में विराजमान है। माता के दर्शन के लिए झुककर गुफा में प्रवेश करना होता है। मंदिर की गुफा के प्रवेश द्वार के समीप एक शिव मंदिर भी बना है। इस मंदिर में वैसे तो सालभर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। नवरात्रि में श्रद्धालुओं की संख्या में एकाएक खासी बढ़ोतरी हो जाती है। श्रद्धालुओं को दर्शन के लिए अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है।
शक्तिपीठ के रूप में विराजमान हैं मां अर्बुदादेवी
माउंटआबू का ये मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है। मां अर्बुदादेवी, अधरदेवी के दर्शन के लिए 350 सीढ़ियां चढ़कर पहुंचना होता है। यहां देवी माता की गुप्त रूप में पूजा की जाती है। करीब 5 हजार साल पुराना है। इस मंदिर का प्रसंग माता सती के आत्माहुति से जुड़ा हुआ है, अपने पिता दक्ष की बातों से दुखी होकर सती यज्ञ की अग्नि में कूद गई थीं। इससे क्रोधित होकर भगवान शिव सती के शरीर को लेकर जगह-जगह घूमने लगे थे। शिव के क्रोध की वजह से संसार में जन्म-मृत्यु की प्रक्रिया रुक गई थी। इसके बाद चिंतित देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे तथा प्रार्थना की। कहावत है कि भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के अंगों का विच्छेद कर दिया था। भगवान शिव ने माता सती के भस्म हुए शरीर को लेकर वियोग में तांडव शुरू कर दिया था। उस समय 51 स्थानों पर माता के अंग गिरे थे, जिसके कारण वे सभी स्थान शक्तिपीठ कहलाए। उसी समय माता सती के के होंठ इस स्थान पर गिरे थे, तभी से ये जगह अधर देवी (अधर मतलब होंठ) के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
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