4 दिन के छठ पर्व में खरना के साथ ही 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरु हो जाता है। इस व्रत को व्रती पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ करते हैं लेकिन इस 36 घंटे के निर्जला अनुष्ठान के कुछ नियम भी होते हैं। इन नियमों का छठ व्रतियों को पालन करना ही चाहिए जिससे व्रत पूरी तरह से फलित हो और व्रती के स्वास्थ्य पर भी कोई असर ना हो।
खरना का भोजन करते समय इस बात का ध्यान रखें कि खाते समय कोई बच्चा रोतो हुआ ना हो और व्रती के आसपास शोर भी ना हो रहा हो। व्रती को थोड़ा सा भोजन घर के दूसरे सदस्यों के लिए प्रसाद स्वरुप छोड़ना चाहिए और व्रती को खरना के बाद छठी मईया का आशीर्वाद ले घर के सभी बड़े सदस्यों का चरणस्पर्श कर आशीर्वाद लोना चाहिए।
खरना के बाद थाली का धोवन जूठन या नाली में ना जाए इसका विशेष ख्याल करना चाहिए।
प्रसाद बनाते समय विशेष ख्याल रखें कि प्रसाद में बनने वाली चीजें शुद्ध चीजों का इस्तेमाल करना चाहिए। साथ ही प्रसाद बनाते समय अलग वस्त्र पहने जिसे पहन कर सिर्फ प्रसाद बनाएं और प्रसाद बनाते समय बातचीत ना करें इससे बोलते समय मुंह के कण प्रसाद को जूठा कर सकते हैं।
अब बात करते हैं अस्ताचलगामी सूर्य यानि अस्त होते सूर्य को अर्घ देने वाले दिन की इस दिन दोपहर से ही सूप आदि तैयार करके रख लें और सूर्यास्त के कुछ देर पहले से पानी में उतर जाएं।
सूर्योस्त के अर्घ्य के बाद उसी सूप को रखें और दूसरे दिन सुबह उसी सूप के साथ प्रसाद बदलकर पूजन करें ।
सूर्योदय के पूजन के दिन फिर से सूप में प्रसाद सजाकर पानी में उतरें और सूर्योदय से पहले ही पानी में खड़े रहें।
व्रती जब पानी से निकले तो सभी बड़े बूढ़ों के चरणस्पर्श करे।
इस तरह के व्रत विधि का पालन करने पर निश्चित ही छठी मईया के पूजन अर्चन का अनुष्ठान पूरा होता है।
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