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बांग्लादेश क्यों पहुंचे ISI प्रमुख: PAK के लिए यूनुस सरकार की क्या योजनाएं, भारत के लिए कितनी चिंता की बात?

स्पेशल डेस्क, अमर उजाला Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Fri, 24 Jan 2025 02:50 PM IST
सार

बीते कुछ दिनों में बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच रिश्तों में अप्रत्याशित बदलाव क्यों देखने को मिला है? दोनों ही देश मौजूदा समय में किन-किन क्षेत्रों में संपर्क बढ़ा रहे हैं? इसके अलावा बांग्लादेश की मौजूदा यूनुस सरकार और पाकिस्तान इस वक्त चाहते क्या हैं? इससे भारत के हित किस तरह प्रभावित होते हैं? आइये जानते हैं...

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Bangladesh Pakistan Relation ISI Chief Asim Malik Visit Dhaka Muhammad Yunus Interim Government India Tension
पाकिस्तान-बांग्लादेश के रिश्ते। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विस इंटेलिजेंस (आईएसआई) के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल असीम मलिक के इस हफ्ते की शुरुआत में ही बांग्लादेश पहुंचने की खबरें सामने आई हैं। कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि मलिक दुबई के रास्ते होते हुए ढाका पहुंचे थे, जहां उनका स्वागत बांग्लादेश सेना के क्वार्टर मास्टर जनरल ले. जनरल मोहम्मद फैजुर रहमान ने किया। गौरतलब है कि पिछले हफ्ते ही बांग्लादेश सेना के अफसर लेफ्टिनेंट जनरल कमरुल हसन भी पाकिस्तान गए थे, जहां उन्होंने पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर से मुलाकात की थी। 
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खबरों की मानें तो हसन और रहमान का पाकिस्तान के कट्टरपंथियों से गहरा नाता रहा है और दोनों देशों के रिश्तों को नए सिरे से बढ़ाने में उनकी बड़ी भूमिका है। ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर बीते कुछ दिनों में बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच रिश्तों में अप्रत्याशित बदलाव क्यों देखने को मिला है? दोनों ही देश मौजूदा समय में किन-किन क्षेत्रों में संपर्क बढ़ा रहे हैं? इसके अलावा बांग्लादेश की मौजूदा यूनुस सरकार और पाकिस्तान इस वक्त चाहते क्या हैं? इससे भारत के हित किस तरह प्रभावित होते हैं? आइये जानते हैं...
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हसीना के हटने के बाद किन क्षेत्रों में बढ़े पाकिस्तान-बांग्लादेश के रिश्ते?


1. राजनीतिक रिश्ते
अगस्त 2024 में शेख हसीना के सत्ता से हटने और आवामी लीग सरकार के गिरने के बाद से ही बांग्लादेश में उथल-पुथल का माहौल रहा। हालांकि, इस बीच देश में एक अंतरिम सरकार का गठन हुआ, जिसकी कमान मोहम्मद यूनुस ने संभाली। वह भी अंतरिम सरकार के सलाहकार का पद लेकर। 

मोहम्मद यूनुस का पद यूं तो अंतरिम सरकार के सलाहकार का है, लेकिन उन्होंने बांग्लादेश की नीतियों में बदलाव की भी शुरुआत कर दी। इनमें उनकी एक नीति देश को पुराने चलनों से अलग कर दूसरी राह पर ले जाने की रही है। इसी कड़ी में यूनुस ने अब बांग्लादेश को पाकिस्तान के करीब ले जाना शुरू कर दिया है। पिछले साल संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) से इतर यूनुस ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से मुलाकात की थी और दोनों देशों के रिश्तों को आगे बढ़ाने की वकालत की। इसके बाद 2024 के आखिर में दोनों नेता मिस्र के काहिरा में भी मिले और 1971 के पहले और बाद के सभी गिले-शिकवों को भुलाकर संबंधों में सुधार की बात कही। 

चौंकाने वाली बात यह है कि 1971 में आजादी से पहले तक पूर्वी पाकिस्तान के तौर पर जाना जाने वाला बांग्लादेश मौजूदा पाकिस्तान (पश्चिमी पाकिस्तान) से जंग की स्थिति में था। वजह थी मानवाधिकारों का उल्लंघन, जिसके जरिए पाकिस्तानी हुकूमत ने बांग्ला जनसंख्या के खिलाफ दमनकारी नीतियों का प्रयोग किया। आखिरकार इस बर्ताव के कारण ही बांग्लादेश में उग्र आंदोलन की शुरुआत हुई थी, जो कि एक नए देश के गठन के साथ खत्म हुआ। हालांकि, यूनुस के नेतृत्व में बांग्लादेश का फिर से पाकिस्तान की तरफ जाना देश के इतिहास और भू-राजनीति के मद्देनजर चौंकाने वाला है। 

2. व्यापार में बढ़ोतरी के लिए दोनों देश उठा रहे कदम
आंकड़ों की मानें तो मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में बांग्लादेश ने व्यापार के क्षेत्र में पाकिस्तान को तवज्जो दी है। इसकी शुरुआत बीते साल नवंबर में स्पष्ट तौर पर देखने को मिली। इसके बाद दिसंबर में बांग्लादेश के चटगांव बंदरगाह पर पाकिस्तान के कराची से आए एक पोत ने लंगर डाल लिया। पनामा के झंडे वाला शिप एमवी युआन शांग फा झान बांग्लादेशी जलक्षेत्र में पहुंचा था। इसमें औद्योगिक सामान- जैसे डोलोमाइट, संगमरमर के ब्लॉक, कपड़ों से जुड़ा कच्चा सामान, शक्कर और इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद मौजूद थे। 1971 के बाद 53 साल में यह पहली बार था, जब पाकिस्तान और बांग्लादेश ने समुद्री व्यापार की शुरुआत की हो।

इतना ही नहीं दोनों देशों ने आर्थिक सहयोग बढ़ाने का भी निर्णय लिया है। इसी हफ्ते मंगलवार को पाकिस्तान और बांग्लादेश के व्यापारियों ने दोनों देशों के बीच एक संयुक्त व्यापार परिषद की स्थापना पर सहमति जताई है। 

अरब न्यूज पाकिस्तान के मुताबिक, पाकिस्तान ने हाल ही में अपने दो व्यापार प्रतिनिधिमंडलों को बांग्लादेश भी भेजा है। इनके जरिए दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों को और बेहतर करने का लक्ष्य रखा गया है। बताया गया है कि पाकिस्तान का व्यापार प्रतिनिधिमंडल अब खजूर और खट्टे फलों के निर्यात पर चर्चा कर रहे हैं। 

पाकिस्तान के व्यापार विकास प्राधिकरण (टीडीएपी) के मुताबिक, 2002 के बाद से उसकी बांग्लादेश के साथ व्यापार समझौते पर भी बात चल रही थी। लेकिन शेख हसीना के सत्ता में रहने की वजह से दोनों देशों के रिश्ते ठहरे हुए थे। इसके बावजूद पाकिस्तान, बांग्लादेश के टॉप-10 आयातकों में बना रहा। खासकर कपड़ों, कृषि, खाद्य, केमिकल और धातुओं के क्षेत्र में दोनों देशों का व्यापार कुछ हद तक चलता भी रहा है। 

मोहम्मद यूनुस सरकार के आने के बाद भारत के लिए एक चिंता की बात यह है कि बीते कुछ महीनों में ही बांग्लादेश के पाकिस्तान से व्यापार ने बीते रिकॉर्ड तोड़ने की कोशिश शुरू कर दी है। आंकड़ों के लिहाज से लें तो जहां 2023 में पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच का सालाना व्यापार करीब 70 करोड़ डॉलर करहा है। हालांकि, जापान के अखबार निक्केई एशिया की रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश की तरफ से पाकिस्तान से व्यापार को ढील दिए जाने के बाद अब दोनों देश एक साल में व्यापार को 3 अरब डॉलर तक ले जाने की कोशिश में जुटे हैं। 

3. यात्रा-पर्यटन से जुड़े रिश्तों में
बांग्लादेश सरकार ने व्यापारिक और आर्थिक संबंधों को और मजबूत करने के लिए पाकिस्तान के लोगों के लिए वीजा प्रक्रिया को सरल बना दिया है। पाकिस्तान में बांग्लादेश के उच्चायुक्त ने दो हफ्ते पहले ही इसकी जानकारी देते हुए कहा था कि मौजूदा यूनुस सरकार ने वीजा जारी करते समय बांग्लादेश से मंजूरी लेने की अनिवार्यता को हटा दिया है। जबकि इससे पहले पाकिस्तानी दूतावास प्रमुखों को अपने नागरिकों को बांग्लादेश भेजने के लिए ढाका की मंजूरी जरूरी होती थी। 

2016 से 2018 के बीच बांग्लादेश में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे रफिउद्दीन सिद्दीकी के मुताबिक, शेख हसीना की सरकार के दौरान पाकिस्तानी नागरिकों के लिए वीजा हासिल करना लगभग नामुमकिन था। लेकिन अब दोनों देशों ने वीजा प्रक्रिया को आसान करने के साथ सीधी उड़ानें शुरू करने पर भी बात शुरू कर दी है। गौरतलब है कि 2018 के बाद से ही पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच कोई सीधी उड़ान नहीं है। 

4. सैन्य रिश्ते बेहतर हुए
बांग्लादेश की यूनुस सरकार किस तेजी से पाकिस्तान के करीब जा रही है, इसका अंदाजा दोनों देशों के बीच बढ़ते सैन्य रिश्तों से भी लगाया जा सकता है। हाल ही में बांग्लादेशी सेना में लेफ्टिनेंट जनरल एसएम कमरुल हसन छह सदस्यीय सैन्य प्रतिनिधिमंडल के साथ पाकिस्तान पहुंचे थे। यहां उन्होंने पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर से मुलाकात की थी। हसन ने अपने पाकिस्तान दौर पर कई और पाकिस्तानी सैन्य अफसरों से मुलाकात की थी। तब पाकिस्तानी सेना के मीडिया विंग ने दोनों देशों के रिश्ते को भाईचारे वाला करार दिया था। इन दोनों सैन्य अधिकारियों ने बैठक में अपनी सेनाओं के बीच रिश्ते मजबूत करने के साथ अपनी साझेदारी को बाहरी दखल से बचाने की भी बात कही थी। 

इस मुलाकात के बाद इसी हफ्ते की शुरुआत में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख असीम मलिक ढाका पहुंच गए। उनके इस दौरे को पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच सैन्य जुड़ाव को तेज करने की कोशिशों के तौर पर देखा जा रहा है। असीम मलिक के साथ इस सैन्य मंडल में आईएसआई के चार और अधिकारी शामिल रहे। इनमें आईएसआई के विश्लेषक महानिदेशक मेजर जनरल शाहिद आमिर अफसर भी शामिल रहे, जो कि चीन में पाकिस्तान के डिफेंस अटाशे के तौर पर काम कर चुके हैं। यह सैन्य प्रतिनिधिमंडल चार दिन के दौरे पर बांग्लादेश पहुंचा। आशंका जताई जा रही है कि इस दौरे के बाद पाकिस्तान और बांग्लादेश अपने सैन्य रिश्तों को उच्चस्तरीय कर सकते हैं। 

5. कूटनीतिक संबंध
पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच समुद्री मार्ग से व्यापारिक रिश्ते बेहतर होने का एक नकारात्मक असर भारत की सुरक्षा पर भी पड़ने की संभावना है। दरअसल, बंगाल की खाड़ी में मौजूद चटगांव बंदरगाह कूटनीतिक रूप से काफी अहम है। यूनुस ने पाकिस्तान से रिश्ते प्रगाढ़ करने के लिए बंदरगाह पर पाक से आए शिपमेंट का अनिवार्य रूप से किया जाने वाला भौतिक निरीक्षण तक बंद कर दिया है। ऐसे में इसका असर भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा पर पड़ने के आसार हैं। हालांकि, बांग्लादेश ने इस मुद्दे पर अब तक भारत की चिंताओं को दूर नहीं किया है। 

इससे पहले सख्त व्यापार नीतियों के चलते पाकिस्तान से आने वाले शिपमेंट्स को मलयेशिया, सिंगापुर या श्रीलंका में माल उतारने के बाद बांग्लादेश लाया जाता था, जिससे भारत को इसकी करीब से निगरानी रखने में मदद मिलती थी। हालांकि, अब दोनों देश सिर्फ श्रीलंका के कोलंबो बंदरगाह का इस्तेमाल कर अपने शिपमेंट को भेजने पर विचार कर रहे हैं। इससे जहां हिंद महासागर क्षेत्र में दोनों देशों का व्यापार तेजी से बढ़ेगा, वहीं अवैध आयात-निर्यात की संभावनाएं भी बढ़ रही हैं जिसके चलते भारतीय एजेंसियों को इस क्षेत्र में सख्त सर्विलांस लागू करना पड़ सकता है।

भारत के लिए पाकिस्तान-बांग्लादेश के रिश्तों का बेहतर होना क्यों-कितनी चिंता की बात?

  • पूर्व में शेख हसीना सरकार के साथ बेहतर रिश्तों के चलते भारत और बांग्लादेश के बीच व्यापारिक संबंध तेजी से बढ़े हैं। इतना ही नहीं, भारत को अपने कूटनीतिक हितों की रक्षा में भी आसानी हुई है। अगर चटगांव बंदरगाह के जरिए पाकिस्तान और बांग्लादेश के व्यापारिक रिश्ते बढ़ने की बात को ही केंद्र में रख लिया जाए तो शेख हसीना के शासन के दौरान यहां से भारत विरोधी गतिविधियों के होने की संभावना न के बराबर रही हैं। साथ ही भारत का निगरानी तंत्र भी इस बंदरगाह पर लगातार नजर रखता रहा था। 
  • दोनों सरकारों की चौकसी के जरिए ही 2004 में ही भारतीय अधिकारियों ने चीनी हथियारों से भरा एक शिपमेंट को पकड़ा था, जिसे पाकिस्तान की आईएसआई ने भारत के पूर्वोत्तर में प्रतिबंधित किए गए यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के लिए भेजने की कोशिश की थी। पाकिस्तान ने 1990 और 2000 के दौर में बांग्लादेश से अपने व्यापार का बहाना करते हुए भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में बड़ी संख्या में हथियार भेजे। तब भारत ने शेख हसीना की मदद से पाकिस्तान के तनाव फैलाने के इरादों पर लगाम लगा दी थी। 

  • भारत को अब इस बात की चिंता है कि इस तरह समुद्री मार्ग से पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच व्यापार बढ़ने से भारत के पूर्वोत्तर में विद्रोही संगठनों की मदद की कोशिश की जा सकती है। खासकर बांग्लादेश की तरफ से इन शिपमेंट्स की जांच न होने के बाद यह संभावना काफी बढ़ जाती है। इसके अलावा दोनों देशों (पाकिस्तान और बांग्लादेश) में भारत के खिलाफ इस्लामिक चरमपंथ को भी बढ़ावा दिया जा सकता है। 
  • पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच इन बढ़ते समुद्री और व्यापारिक रिश्तों के चलते भारत की सुरक्षा चुनौतियां भी बढ़ती हैं। इसके अलावा दक्षिण एशिया में बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों को लेकर भी भारत में चिंता जताई गई है। 
  • भारत की एक चिंता यह भी है कि पाकिस्तानी नागरिकों की वीजा प्रक्रिया आसान होने से बांग्लादेश में कई ऐसे तत्व भी पहुंच सकते हैं, जो कि भारत-विरोधी हितों के लिए काम करें। इतना ही नहीं यह तत्व बांग्लादेश में चरमपंथ को बढ़ावा देने का काम भी कर सकते हैं और 1971 की जंग में पाकिस्तान का समर्थन करने वाले सहयोगियों को फिर से खड़ा करने में मदद पहुंचा सकते हैं।
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