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अध्ययन: मानवजनित जलवायु परिवर्तन बना यूरोप में 1,500 मौतों की वजह, वैज्ञानिकों ने किया की चौंकाने वाला खुलासा

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, वाशिंगटन Published by: शुभम कुमार Updated Thu, 10 Jul 2025 04:58 AM IST
सार

यूरोप में तेज गर्मी से करीब 2,300 लोगों की मौत हुई। वैज्ञानिकों का कहना है कि इनमें से लगभग 1,500 मौतें इंसानों द्वारा फैलाए गए जलवायु परिवर्तन की वजह से हुईं। अध्ययन में बताया गया कि भीषण गर्मी का असर सबसे ज्यादा बुजुर्गों पर दिखा। साथ ही इस बात पर भी जोर दिया गया कि अगर इंसानों ने पिछले सौ वर्षों में तेल, कोयला और गैस न जलाए होते, तो ये मौतें नहीं होतीं।

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Burning of fossil fuels caused 1,500 deaths in recent European heat wave study estimates News In Hindi
भीषण गर्मी का असर - फोटो : FreePik
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विस्तार
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यूरोप में हाल ही के दिनों में भीषण गर्मी का प्रकोप देखने को मिला। इसके चलते लगभग 1500 लोगों की मौत होने की भी खबर भी सामने आई। अब इस मामले में वैज्ञानिकों ने एक बड़ा और चौंकाने वाला खुलासा किया है। इसके तहत गर्मी के चलते हुई मौतों के लिए इंसानों द्वारा फैलाया गया जलवायु परिवर्तन जिम्मेदार है। इंपीरियल कॉलेज लंदन और लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के वैज्ञानिकों ने एक त्वरित अध्ययन में बताया कि 23 जून से 2 जुलाई 2025 के बीच यूरोप के 12 बड़े शहरों में गर्मी से लगभग 2,300 लोगों की मौत हुई, जिनमें से करीब 1,500 मौतें केवल जलवायु परिवर्तन के कारण हुईं। यानी अगर इंसानों ने पिछले सौ वर्षों में तेल, कोयला और गैस न जलाए होते, तो ये मौतें नहीं होतीं।

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गर्मी से सबसे अधिक बुजुर्गों की गई जान
अध्ययन में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन से जुड़ी मौतों में से 1,100 से अधिक लोग 75 वर्ष से ऊपर के थे। गर्मी के कारण मृत्यु को आमतौर पर हार्ट अटैक, फेफड़ों की बीमारी या अन्य समस्याओं के रूप में दर्ज किया जाता है, इसलिए इसकी असली संख्या सामने नहीं आती। बता दें कि इस अध्ययन में लंदन, पेरिस, फ्रैंकफर्ट, बुडापेस्ट, ज़ाग्रेब, एथेंस, बार्सिलोना, मैड्रिड, लिस्बन, रोम, मिलान और सासारी को शामिल किया गया। सभी शहरों में, लिस्बन को छोड़कर, जलवायु परिवर्तन के कारण 2 से 4 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ा, जिससे हीटवेव और खतरनाक हो गई। लंदन में सबसे ज्यादा चार डिग्री तक का अतिरिक्त तापमान दर्ज किया गया।
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इन शहरों में दिखा सबसे ज्यादा असर
इसके साथ ही अध्ययन में पाया गया कि मिलान, पेरिस और बार्सिलोना में इस अतिरिक्त गर्मी के कारण सबसे ज्यादा मौतें हुईं, जबकि सासारी, फ्रैंकफर्ट और लिस्बन में इसका असर अपेक्षाकृत कम रहा। वहीं बात अगर इस मामले में विशेषज्ञों की करें तो डॉ. फ्रेडरिक ओटो ने कहा कि ये 1,500 लोग सिर्फ जलवायु परिवर्तन की वजह से मरे हैं।

उन्होंने कहा कि अगर हमने जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल न किया होता, तो ये आज जिंदा होते। वहीं अध्ययन में शामिल नहीं होने वाले डॉ. जोनाथन पाट्ज ने कहा कि यह रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि हर एक डिग्री तापमान में वृद्धि का सीधा असर मानव जीवन पर होता है। साथ ही एक आपातकालीन चिकित्सक डॉ. कोर्टनी हॉवर्ड ने कहा कि ऐसी स्टडीज यह दिखाती हैं कि फॉसिल फ्यूल को कम करना असल में हेल्थ केयर है।

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ग्रीनहाउस गैसों की खामोश मार
कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस के अनुसार जून 2025 में यूरोप ने दो गंभीर हीटवेव झेलीं। पहली लहर 17 से 22 जून के बीच और दूसरी 30 जून से 2 जुलाई तक, जिसने तापमान को रिकॉर्ड स्तर तक पहुंचा दिया। पश्चिमी यूरोप में जून का महीना अब तक का सबसे गर्म रहा, जिसमें सतह के पास तापमान 2.81 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा। स्पेन के कुछ हिस्सों में तापमान 45 डिग्री तक पहुंच गया।रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला, गैस और पेट्रोलियम के दहन से तापमान में औसतन 4 डिग्री सेल्सियस तक वृद्धि हुई है, जिससे हीटवेव से होने वाली मौतें तीन गुना तक बढ़ गई हैं।

ये अध्ययन क्यों है खास?
जलवायु परिवर्तन और गर्मी से हुई सैकड़ों मौत के मामले में किया गया ये अध्ययन अब तक का ऐसा पहला कोशिश है जिसमें सिर्फ मौसम पर नहीं, बल्कि सीधे कोयला, तेल और गैस के जलने से होने वाली मौतों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। अभी यह शोध पियर-रिव्यू नहीं हुआ है, लेकिन यह जलवायु वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लंबे अनुभव और तकनीकों पर आधारित है।

इसके साथ ही यह अध्ययन इस बात पर भी जोर दे रहा है कि हीटवेव साइलेंट किलर होती हैं और जलवायु परिवर्तन से उनका प्रभाव कई गुना बढ़ गया है। हर बढ़ा हुआ डिग्री इंसानी जीवन को और जोखिम में डाल रहा है। समय रहते फॉसिल फ्यूल का इस्तेमाल कम करना जरूरी है, नहीं तो आने वाले वर्षों में गर्मी और ज्यादा जानें ले सकती है।

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