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क्या इस संधि की वजह से उत्तर कोरिया की ढाल बनकर खड़ा है चीन ?

बीबीसी, हिंदी Updated Wed, 06 Sep 2017 11:33 AM IST
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Because of this treaty, China stands as a shield of North Korea!
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पीपल्स रिपब्लिक चाइना यानी चीन एक ऐसा राष्ट्र है जिसके अपने छोटे से उत्तर-पूर्वी पड़ोसी मुल्क के साथ गहरे संबंध हैं। इसकी एक वजह दोनों के बीच हुई संधि की प्रतिबद्धता भी है। उत्तर कोरिया इकलौता देश है जिसकी चीन के साथ यह संधि है। इसके तहत दोनों राष्ट्रों को एक-दूसरे की सहायता करना ज़रूरी है। इस संधि पर जुलाई 1961 में हस्ताक्षर हुए थे और इसमें केवल सात अनुच्छेद हैं।

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इसका दूसरा अनुच्छेद बेहद अहम है। इसमें लिखा है, "हस्ताक्षर करने वाले दोनों पक्ष संयुक्त रूप से इस पर सहमत हैं कि किसी भी देश द्वारा होने वाली कैसी भी आक्रामकता को रोका जाएगा।"
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युद्ध की स्थिति में भी करने होगी मदद
इसमें आगे कहा गया है कि अगर एक पक्ष पर कोई राष्ट्र या कई राष्ट्र मिलकर हमला करते हैं और वह युद्ध में शामिल हो जाता है तो दूसरा पक्ष इसको समाप्त करने के लिए तुरंत सेना और दूसरे साधनों से मदद करेगा।

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संक्षेप में समझा जाए तो अगर उत्तर कोरिया पर अमेरीका या दक्षिण कोरिया हमला करता है तो चीन का क्या पक्ष होगा, उसका जवाब इस अनुच्छेद से ज़रूर मिल जाता है। इस संधि के अनुसार एक पक्ष दूसरे पक्ष के युद्ध में शामिल होने के लिए बाध्यकारी है। इन तरीकों से पता चलता है कि इतिहास दो पक्षों के बीच संबंध को आगे बढ़ाता है।

युद्ध में शामिल हुआ था चीन
इसके अलावा और भी मिसालें हैं। इस संधि से पहले 1950 में चीन ने कोरियाई युद्ध में संयुक्त राष्ट्र की सेना के उतरने के बाद अपने लाखों सैनिक उतार दिए थे। उत्तर कोरिया की रक्षा और मध्यवर्ती क्षेत्र के लिहाज़ से एक बड़ी सैन्य संपत्ति थी। यह संधि अभी भी अस्तित्व में है। हालांकि, जब इस पर हस्ताक्षर किया गया था तब से अब तक चीन में भारी बदलाव आ चुका है।

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1976 में चीन के शासक माओ की मौत के बाद इस राष्ट्र ने समाजवाद के एक आदर्शवादी संस्करण का पालन करते हुए इसमें बड़ा सुधार किया। इसी के परिणामस्वरूप आज चीन की प्रणाली बेहद जटिल है। इसकी अर्थव्यवस्था और भू-राजनीतिक महत्व बढ़ा है। उत्तर कोरिया के लिए चीज़ें काफ़ी अलग हो गई हैं। तेज़ प्रयासों के बावजूद पिछले तीन दशकों में नियंत्रित सुधारों में बहुत कम सफ़लता मिली है।

उत्तर कोरिया ने नहीं अपनाया चीन का मॉडल

Because of this treaty, China stands as a shield of North Korea!
china flag

2000 की शुरुआत में चीन ने उत्तर कोरिया के तत्कालीन शासक किम जॉन्ग इल की मेज़बानी की थी। चीन ने उन्हें शांघाई में उन्हें स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन दिखाया था और उदाहरण दिया था कि कैसे पूंजीवादी पश्चिम के राष्ट्रों को विनिर्माण और निर्यात की सेवा देते हुए मार्क्सवादी-लेनिनवादी प्रणाली बरक़रार रखी जा सकती है।

चीन के इस प्रयास से उत्तर कोरिया को कोई मदद नहीं मिली। वह अपनी जूशे विचारधार पर चलता रहा। यह एक राष्ट्रवादी विचारधारा है, जिसका मकसद किसी और मॉडल की नक़ल करने से रोकना है। इस कारण उत्तर कोरिया में इस समय जो भी मार्केट अस्तित्व में है वह अत्यधिक सीमाबद्ध और देश के सैन्य उद्देश्यों एवं शासन की सहायक की भूमिका में है।

सोवियत संघ था सबसे महत्वपूर्ण​ संरक्षक
चीन की वर्तमान में सबसे बड़ी ताकत उसका व्यापार, सहायता और ऊर्जा है। 1991 में जब सोवियत संघ का विघटन हुआ तब उत्तर कोरिया का सबसे महत्वपूर्ण संरक्षक रातोंरात गायब हो गया। उसके बाद उत्तर कोरिया की चीन पर निर्भरता बढ़ गई जो अब एकाधिकार के रूप में मौजूद है।

उत्तर कोरिया का 80 फ़ीसदी तेल चीन से आता है। कोयले का आयात भी चीन से होता था। हालांकि, उत्तेजक व्यवहार के बाद पिछले साल जुलाई में उस पर प्रतिबंध लगा दिए गए। चीन अपने इस समझौते के कारण फंसा हुआ महसूस करता है।

उत्तर कोरिया का लगभग पूरा निर्यात या तो चीन के लिए होता है या चीन के रास्ते होता है। उसकी 90 फ़ीसदी सहायता चीन से आती है। चीन इकलौता देश है जिसके साथ उसके एयर लिंक्स और रेल लाइन है।

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