COP30: 'विकसित देश निभाएं जलवायु फाइनेंस और तकनीक के वादे', ब्राजील जलवायु सम्मेलन में भारत का सख्त संदेश
ब्राजील में चल रहे COP30 जलवायु सम्मेलन में भारत ने विकसित देशों दो टूक अंदाज में सख्त संदेश दिया। भारत ने कहा कि वे वित्त, तकनीक और क्षमता निर्माण से जुड़ी अपनी कानूनी जिम्मेदारियां निभाएं। भारत ने चेताया कि जलवायु वित्त की अस्पष्टता वैश्विक प्रयासों में सबसे बड़ी बाधा है।
विस्तार
ब्राजील के बेलेम शहर में हो रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (COP30) के उद्घाटन सत्र में भारत ने जलवायु कार्रवाई में समानता और बहुपक्षीय सहयोग की भावना पर जोर दिया। मंगलवार को भारत ने दो टूक अंदाज में स्पष्ट किया कि विकसित देशों को वित्त, तकनीक और क्षमता निर्माण से जुड़ी अपनी कानूनी जिम्मेदारियां निभानी होंगी।
भारत ने ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन (BASIC) और समान विचारधारा वाले विकासशील देश (LMDC) समूहों की ओर से बोलते हुए कहा कि क्लाइमेट फाइनेंस यानी जलवायु वित्त अब भी सबसे बड़ी रुकावट है। भारत ने मांग की कि यह साफ परिभाषित किया जाए कि जलवायु वित्त वास्तव में क्या है और अनुकूलन के लिए सार्वजनिक वित्त को बढ़ाया और मजबूत किया जाए।
विकसित देशों पर वित्तीय मदद देना कानूनी दायित्व
भारत ने कहा कि पेरिस समझौते के अनुच्छेद 9.1 के तहत विकसित देशों पर वित्तीय मदद देना कानूनी दायित्व है। अनुकूलन के लिए वित्त को 15 गुना बढ़ाने की जरूरत है, ताकि उन अरबों लोगों की मदद की जा सके जिन्होंने जलवायु परिवर्तन में सबसे कम योगदान दिया है, लेकिन सबसे ज़्यादा असर झेल रहे हैं। साथ ही भारत ने दोहराया कि पेरिस समझौते की मूल भावना, समान लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारियां बरकरार रहनी चाहिए और उसके ढांचे में कोई बदलाव नहीं होना चाहिए।
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भारत की जलवायु तकनीक तक सस्सी और समान पहुंच की मांग
इसके साथ ही भारत ने जलवायु तकनीक तक सस्ती और समान पहुंच की मांग की। साथ ही कहा कि पेटेंट और बाजार से जुड़ी बाधाएं हटाई जाएं, जो विकासशील देशों को तकनीक हासिल करने से रोकती हैं। भारत ने विकसित देशों को याद दिलाया कि वे अपने ऐतिहासिक और मौजूदा दायित्वों को निभाएं, यानी जल्द नेट-जीरो लक्ष्य हासिल करें, नकारात्मक उत्सर्जन तकनीकों में निवेश करें और वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करें।
भारत की चेतावनी
इस दौरान भारत ने यह भी चेतावनी दी कि एकतरफा जलवायु-संबंधी व्यापार नीतियां (जैसे यूरोपीय संघ का कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म) विकासशील देशों पर अतिरिक्त बोझ डालती हैं। ऐसे कदम संयुक्त राष्ट्र जलवायु संधि के अनुच्छेद 3.5 का उल्लंघन करते हैं, जो जलवायु कार्रवाई के नाम पर व्यापार प्रतिबंध लगाने से रोकता है।
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बोलीविया ने इस मुद्दे को शामिल करने का दिया प्रस्ताव
गौरतलब है कि LMDC समूह की ओर से बोलीविया ने इस मुद्दे को इस साल की जलवायु वार्ताओं के एजेंडे में शामिल करने का प्रस्ताव दिया है। हालांकि, अब तक यह मामला औपचारिक रूप से नहीं उठाया गया है और COP30 की अध्यक्षता इस पर अलग से विचार-विमर्श कर रही है। दूसरी ओर ब्राजील की अध्यक्षता के तहत अभी भी कई संवेदनशील मुद्दों पर चर्चा जारी है, जिनमें विकसित देशों की वित्तीय जिम्मेदारी, 1.5 डिग्री सेल्सियस लक्ष्य की प्रगति और देशों के जलवायु डेटा की पारदर्शिता शामिल हैं।