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अतीत की गलती स्वीकारी: फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने माना, कैमरून की आजादी की लड़ाई में फ्रांस ने की दमनकारी हिंसा
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, पेरिस
Published by: नितिन गौतम
Updated Wed, 13 Aug 2025 07:44 AM IST
सार
यह पत्र जनवरी में जारी हुई फ्रांसीसी-कैमरून आयोग के इतिहासकारों की रिपोर्ट के बाद सामने आया है। आयोग की रिपोर्ट में खुलासा किया गया कि फ्रांस ने कैमरून की आजादी की लड़ाई को निर्मम उग्रवादियों की मदद से कुचलने की कोशिश की।
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इमैनुएल मैक्रों, फ्रांस के राष्ट्रपति
- फोटो : ANI
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विस्तार
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने पहली बार आधिकारिक तौर पर स्वीकारा है कि फ्रांस ने कैमरून की आजादी की लड़ाई में दमनकारी हिंसा की। मैक्रों ने एक पत्र में अपने देश द्वारा अतीत की गई गलती को स्वीकारा है और ये भी माना कि फ्रांस की दमनकारी हिंसा कैमरून की आजादी की लड़ाई के दौरान और उसके कुछ समय बाद तक भी जारी रही। मंगलवार को यह पत्र सार्वजनिक हुआ।
'फ्रांस ने कैमरून की आजादी की लड़ाई को दमनकारी हिंसा से कुचलने की कोशिश की'
फ्रांसीसी राष्ट्रपति का यह पत्र बीते महीने कैमरून के राष्ट्रपति पॉल बिया को भेजा गया था। यह पत्र जनवरी में जारी हुई फ्रांसीसी-कैमरून आयोग के इतिहासकारों की रिपोर्ट के बाद सामने आया है। आयोग की रिपोर्ट में खुलासा किया गया कि फ्रांस ने कैमरून में बड़े पैमाने पर विस्थापन किया और कैमरून के हजारों लोगों को गिरफ्तार करके कैंपों में रखा। साथ ही कैमरून की आजादी की लड़ाई को निर्मम उग्रवादियों की मदद से कुचलने की कोशिश की। हिंसा का यह दौर 1945 से 1971 तक चला। कैमरून को 1 जनवरी 1960 को फ्रांसीसी उपनिवेश से आजादी मिली थी।
इतिहासकारों की रिपोर्ट का दिया हवाला
साल 2022 में इमैनुएल मैक्रों ने कैमरून की राजधानी याउंडे का दौरा किया था। उसी दौरान मैक्रों ने फ्रांस और कैमरून के इतिहासकारों का संयुक्त आयोग बनाने का एलान किया था। इस आयोग ने कैमरून की आजादी में फ्रांस की भूमिका की जांच की। पत्र में कैमरून ने इतिहासकारों की रिपोर्ट का हवाला देकर लिखा कि 'रिपोर्ट के अंत में आयोग के इतिहासकारों ने साफ कहा है कि कैमरून में एक युद्ध हुआ, जिसमें फ्रांसीसी सेना ने कई तरह से देश के अलग-अलग हिस्सों में दमनकारी हिंसा की।'
ये भी पढ़ें- Ireland: आयरलैंड के राष्ट्रपति हिगिंस ने भारतीयों पर हमलों की निंदा की, कहा- हिंसा देश के मूल्यों के विपरीत
उपनिवेशों में फ्रांस की मौजूदगी पर बढ़ रहा विवाद
मैक्रों ने कैमरून की आजादी की लड़ाई के नायकों रुबेन उम न्योबे, पॉल मोमो, इसाक न्योबे और जेरेमी नेलेनी की मौत में भी फ्रांस की भूमिका स्वीकार की। इन नेताओं की साल 1958 से 1960 के बीच फ्रांसीसी सैन्य अभियानों में मौत हुई। प्रथम विश्व युद्ध के अंत तक कैमरून एक जर्मन उपनिवेश था। युद्ध के बाद इस पर ब्रिटेन और फ्रांस का कब्जा हो गया और यह देश दो हिस्सों में बंट गया। फ्रांस द्वारा प्रशासित क्षेत्र को 1960 में आजादी मिली और इसके अगले वर्ष कैमरून को ब्रिटेन से भी आजादी मिल गई और दोनों देश एक संघ में शामिल हो गए। कैमरून की आजादी की लड़ाई 1950 में शुरू हुई, जब राष्ट्रवादी संगठन यूपीसी ने पूर्ण संप्रभुता की मांग को लेकर सशस्त्र संघर्ष शुरू किया। कैमरून की आजादी के बाद भी फ्रांस की सरकार यूपीसी से लड़ती रही थी। यह पत्र ऐसे समय में आया है जब अफ्रीका में अपने पूर्व के उपनिवेशों में फ्रांस की अभी भी उपस्थिति पर लगातार विवाद बढ़ रहा है।
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'फ्रांस ने कैमरून की आजादी की लड़ाई को दमनकारी हिंसा से कुचलने की कोशिश की'
फ्रांसीसी राष्ट्रपति का यह पत्र बीते महीने कैमरून के राष्ट्रपति पॉल बिया को भेजा गया था। यह पत्र जनवरी में जारी हुई फ्रांसीसी-कैमरून आयोग के इतिहासकारों की रिपोर्ट के बाद सामने आया है। आयोग की रिपोर्ट में खुलासा किया गया कि फ्रांस ने कैमरून में बड़े पैमाने पर विस्थापन किया और कैमरून के हजारों लोगों को गिरफ्तार करके कैंपों में रखा। साथ ही कैमरून की आजादी की लड़ाई को निर्मम उग्रवादियों की मदद से कुचलने की कोशिश की। हिंसा का यह दौर 1945 से 1971 तक चला। कैमरून को 1 जनवरी 1960 को फ्रांसीसी उपनिवेश से आजादी मिली थी।
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इतिहासकारों की रिपोर्ट का दिया हवाला
साल 2022 में इमैनुएल मैक्रों ने कैमरून की राजधानी याउंडे का दौरा किया था। उसी दौरान मैक्रों ने फ्रांस और कैमरून के इतिहासकारों का संयुक्त आयोग बनाने का एलान किया था। इस आयोग ने कैमरून की आजादी में फ्रांस की भूमिका की जांच की। पत्र में कैमरून ने इतिहासकारों की रिपोर्ट का हवाला देकर लिखा कि 'रिपोर्ट के अंत में आयोग के इतिहासकारों ने साफ कहा है कि कैमरून में एक युद्ध हुआ, जिसमें फ्रांसीसी सेना ने कई तरह से देश के अलग-अलग हिस्सों में दमनकारी हिंसा की।'
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उपनिवेशों में फ्रांस की मौजूदगी पर बढ़ रहा विवाद
मैक्रों ने कैमरून की आजादी की लड़ाई के नायकों रुबेन उम न्योबे, पॉल मोमो, इसाक न्योबे और जेरेमी नेलेनी की मौत में भी फ्रांस की भूमिका स्वीकार की। इन नेताओं की साल 1958 से 1960 के बीच फ्रांसीसी सैन्य अभियानों में मौत हुई। प्रथम विश्व युद्ध के अंत तक कैमरून एक जर्मन उपनिवेश था। युद्ध के बाद इस पर ब्रिटेन और फ्रांस का कब्जा हो गया और यह देश दो हिस्सों में बंट गया। फ्रांस द्वारा प्रशासित क्षेत्र को 1960 में आजादी मिली और इसके अगले वर्ष कैमरून को ब्रिटेन से भी आजादी मिल गई और दोनों देश एक संघ में शामिल हो गए। कैमरून की आजादी की लड़ाई 1950 में शुरू हुई, जब राष्ट्रवादी संगठन यूपीसी ने पूर्ण संप्रभुता की मांग को लेकर सशस्त्र संघर्ष शुरू किया। कैमरून की आजादी के बाद भी फ्रांस की सरकार यूपीसी से लड़ती रही थी। यह पत्र ऐसे समय में आया है जब अफ्रीका में अपने पूर्व के उपनिवेशों में फ्रांस की अभी भी उपस्थिति पर लगातार विवाद बढ़ रहा है।
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