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भारत-पाकिस्तान संकट और ट्रंप की चुप्पी पर पूर्व अमेरिकी राजनयिकों ने कहा- यह खतरे की घंटी है
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला
Published by: संदीप भट्ट
Updated Wed, 06 Mar 2019 04:46 PM IST
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डोनाल्ड ट्रंप
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जब 1999 में भारत और पाकिस्तान युद्ध के कगार पर खड़े थे, राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने संकट से निपटने के लिए व्यक्तिगत कूटनीति, दबाव डालने वाली चिट्ठी और कड़ी चेतावनी के साथ इस्लामाबाद के खिलाफ कठोर आर्थिक कार्रवाई की धमकी दी जब तक कि यह पीछे नहीं हटा।
लेकिन पिछले हफ्ते जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया था, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके कई वरिष्ठ सहयोगी उत्तर कोरिया के साथ एक शिखर सम्मेलन में व्यस्त थे। इसके साथ ही उनके पूर्व निजी वकील माइकल कोहेन से अमेरिकी संसद में पूछताछ चल रही थी।
यह बीते कुछ दशकों में दक्षिण एशिया के दो परमाणु-सशस्त्र प्रतिद्वंद्वी देशों के बीच सबसे गंभीर टकराव था, लेकिन ट्रंप प्रशासन प्रभावी रूप से तमाशा देखने वाला एक दर्शक की भूमिका में था। इन्होंने गतिरोध खत्म करने के लिए मध्यस्थता करने के लिए कोई पहल नहीं की, जैसा कि अतीत में अमेरिका करता रहा है। कई पूर्व और विदेशी राजनयिकों ने एनबीसी समाचार को यह बताया।
ओबामा प्रशासन के दौरान अफगानिस्तान और पाकिस्तान में विशेष प्रतिनिधि रह चुके डैनियल फेल्डमैन ने कहा, "अमेरिकी सरकार इस मुद्दे पर उच्च स्तर पर सक्रिय नहीं दिखती है।" उन्होंने कहा, "यह न केवल ध्यान देने की कमी को प्रदर्शित करता है, बल्कि कई प्रमुख एजेंसियों में कई खाली पड़े पदों या कार्यवाहक अधिकारियों के साथ यह दिखाता है कि हमारी क्षमता बहुत कम है।"
पूर्व अधिकारियों ने कहा पिछले हफ्ते जब संकट उच्चतम स्तर पर पहुंच गया था, विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन और संयुक्त प्रमुखों के अध्यक्ष जनरल जोसेफ डनफोर्ड ने इस्लामाबाद और नई दिल्ली में अपने समकक्षों को फोन कॉल किए। यह महत्वपूर्ण थे लेकिन उस महीन कूटनीति जैसे नहीं थे जो पहले के संकटों के दौरान अपनाए गए थे।
साल 1999 में क्लिंटन ने अपने दोनों समकक्षों के साथ फोन पर बातचीत किया और गतिरोध के समाधान में मदद की थी। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ।
क्लिंटन के कार्यकाल के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में काम कर चुके सीआईए के एक पूर्व अधिकारी ब्रूस रीडेल ने कहा, "20 सालों से ज्यादा समय में, ऐसा पहली बार हुआ है कि अमेरिका भारत-पाकिस्तान संकट को सुलझाने की कोशिश में सक्रिय भूमिका में नहीं था।" उन्होंने कहा, "राष्ट्रपति ने पक्षकारों से बात नहीं की।"
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लेकिन पिछले हफ्ते जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया था, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके कई वरिष्ठ सहयोगी उत्तर कोरिया के साथ एक शिखर सम्मेलन में व्यस्त थे। इसके साथ ही उनके पूर्व निजी वकील माइकल कोहेन से अमेरिकी संसद में पूछताछ चल रही थी।
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यह बीते कुछ दशकों में दक्षिण एशिया के दो परमाणु-सशस्त्र प्रतिद्वंद्वी देशों के बीच सबसे गंभीर टकराव था, लेकिन ट्रंप प्रशासन प्रभावी रूप से तमाशा देखने वाला एक दर्शक की भूमिका में था। इन्होंने गतिरोध खत्म करने के लिए मध्यस्थता करने के लिए कोई पहल नहीं की, जैसा कि अतीत में अमेरिका करता रहा है। कई पूर्व और विदेशी राजनयिकों ने एनबीसी समाचार को यह बताया।
ओबामा प्रशासन के दौरान अफगानिस्तान और पाकिस्तान में विशेष प्रतिनिधि रह चुके डैनियल फेल्डमैन ने कहा, "अमेरिकी सरकार इस मुद्दे पर उच्च स्तर पर सक्रिय नहीं दिखती है।" उन्होंने कहा, "यह न केवल ध्यान देने की कमी को प्रदर्शित करता है, बल्कि कई प्रमुख एजेंसियों में कई खाली पड़े पदों या कार्यवाहक अधिकारियों के साथ यह दिखाता है कि हमारी क्षमता बहुत कम है।"
पूर्व अधिकारियों ने कहा पिछले हफ्ते जब संकट उच्चतम स्तर पर पहुंच गया था, विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन और संयुक्त प्रमुखों के अध्यक्ष जनरल जोसेफ डनफोर्ड ने इस्लामाबाद और नई दिल्ली में अपने समकक्षों को फोन कॉल किए। यह महत्वपूर्ण थे लेकिन उस महीन कूटनीति जैसे नहीं थे जो पहले के संकटों के दौरान अपनाए गए थे।
साल 1999 में क्लिंटन ने अपने दोनों समकक्षों के साथ फोन पर बातचीत किया और गतिरोध के समाधान में मदद की थी। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ।
क्लिंटन के कार्यकाल के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में काम कर चुके सीआईए के एक पूर्व अधिकारी ब्रूस रीडेल ने कहा, "20 सालों से ज्यादा समय में, ऐसा पहली बार हुआ है कि अमेरिका भारत-पाकिस्तान संकट को सुलझाने की कोशिश में सक्रिय भूमिका में नहीं था।" उन्होंने कहा, "राष्ट्रपति ने पक्षकारों से बात नहीं की।"
ट्रंप प्रशासन ने इस आलोचना को खारिज किया
John Bolton
हालांकि ट्रंप प्रशासन के अधिकारियों ने इस आलोचना को खारिज करते हुए कहा कि अमेरिका पिछले महीने आत्मघाती बम धमाके की निंदा करने वाली पहली सरकारों में से एक था, जिसमें 40 भारतीय सैनिक मारे गए थे और दोनों देशों के बीच जारी संकट गहरा गया। उन्होंने कहा कि अमेरिका ने दोनों पक्षों से बार-बार संघर्ष को टालने की अपील की। विदेश विभाग के प्रवक्ता ने कहा कि पोम्पियो ने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को कम करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रवक्ता ने कहा, नई दिल्ली और इस्लामाबाद में अमेरिकी दूतावासों के माध्यम से वाशिंगटन भी लगातार संपर्क में था। उन्होंने आगे कहा, "जबकि सभी कूटनीति सार्वजनिक कर नहीं की जा सकती है, अमेरिका तनाव को कम करने के लिए सभी उपयुक्त चैनलों के जरिए भारत और पाकिस्तान के साथ संपर्क में बना रहेगा।
अमेरिका का पाकिस्तान में कोई राजदूत नहीं है और बीते दिसंबर में ही आखिरकार व्हाइट हाउस ने दक्षिण और मध्य एशिया मामलों को देखने वाले विदेश विभाग में वरिष्ठ पद के लिए नाम सुझाया। दक्षिण एशिया को संभालने वाले अन्य विभाग के वरिष्ठ पदों पर लगातार फेरबदल हुआ है। पूर्व अधिकारियों का कहना है कि व्हाइट हाउस की अक्सर अन्य प्राथमिकताएं रही हैं जिसकी वजह से भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर लंबे समय से चल रहे विवाद की अनदेखी की गई है।
पूर्व रक्षा सचिव जेम्स मैटिस दक्षिण एशिया के इतिहास और राजनीति के अच्छे जानकार हैं। उन्होंने सीरिया और अंतरराष्ट्रीय गठबंधनों पर राष्ट्रपति से टकराव के बाद दिसंबर में पद से इस्तीफा दे दिया था। उनके उत्तराधिकारी पैट्रिक शनहान बोइंग के पूर्व कार्यकारी हैं और उन्हें विदेश नीति का कोई अनुभव नहीं है।
पेंटागन के एक पूर्व अधिकारी और अब नॉनप्रोलिफरेशन पॉलिसी सेंटर के कार्यकारी निदेशक, हैरी सोकोल्स्की ने कहा, "अतीत में, हम इस क्षेत्र के शेरिफ थे। अब हमारे पुलिस स्टेशन में कोई भी ऐसा नहीं है जो हस्तक्षेप करने को तैयार हो।" उन्होंने कहा, "हमारा राजनयिक कौन है जो यहां हस्तक्षेप करने जा रहा है?" बता दें कि शेरिफ अमेरिका में एक काउंटी में निर्वाचित अधिकारी होता है जिसकी शांति बनाए रखने की जिम्मेदारी होती है।
बीते कुछ महीनों के दौरान सिर्फ एक अमेरिकी एजेंसी को चिंता थी कि दो विरोधी देशों के बीच तनाव बढ़ रहा था। इन चिंताओं ने सीआईए को इस क्षेत्र में अपनी प्रतिबद्धता के लिए प्रेरित किया। दो अमेरिकी अधिकारी जो रिकॉर्ड पर बोलने के लिए अधिकृत नहीं थे उन्होंने एनबीसी न्यूज को यह जानकारी दी। उन्होंने इसके आगे कोई विवरण नहीं दिया।
प्रवक्ता ने कहा, नई दिल्ली और इस्लामाबाद में अमेरिकी दूतावासों के माध्यम से वाशिंगटन भी लगातार संपर्क में था। उन्होंने आगे कहा, "जबकि सभी कूटनीति सार्वजनिक कर नहीं की जा सकती है, अमेरिका तनाव को कम करने के लिए सभी उपयुक्त चैनलों के जरिए भारत और पाकिस्तान के साथ संपर्क में बना रहेगा।
अमेरिका का पाकिस्तान में कोई राजदूत नहीं है और बीते दिसंबर में ही आखिरकार व्हाइट हाउस ने दक्षिण और मध्य एशिया मामलों को देखने वाले विदेश विभाग में वरिष्ठ पद के लिए नाम सुझाया। दक्षिण एशिया को संभालने वाले अन्य विभाग के वरिष्ठ पदों पर लगातार फेरबदल हुआ है। पूर्व अधिकारियों का कहना है कि व्हाइट हाउस की अक्सर अन्य प्राथमिकताएं रही हैं जिसकी वजह से भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर लंबे समय से चल रहे विवाद की अनदेखी की गई है।
पूर्व रक्षा सचिव जेम्स मैटिस दक्षिण एशिया के इतिहास और राजनीति के अच्छे जानकार हैं। उन्होंने सीरिया और अंतरराष्ट्रीय गठबंधनों पर राष्ट्रपति से टकराव के बाद दिसंबर में पद से इस्तीफा दे दिया था। उनके उत्तराधिकारी पैट्रिक शनहान बोइंग के पूर्व कार्यकारी हैं और उन्हें विदेश नीति का कोई अनुभव नहीं है।
पेंटागन के एक पूर्व अधिकारी और अब नॉनप्रोलिफरेशन पॉलिसी सेंटर के कार्यकारी निदेशक, हैरी सोकोल्स्की ने कहा, "अतीत में, हम इस क्षेत्र के शेरिफ थे। अब हमारे पुलिस स्टेशन में कोई भी ऐसा नहीं है जो हस्तक्षेप करने को तैयार हो।" उन्होंने कहा, "हमारा राजनयिक कौन है जो यहां हस्तक्षेप करने जा रहा है?" बता दें कि शेरिफ अमेरिका में एक काउंटी में निर्वाचित अधिकारी होता है जिसकी शांति बनाए रखने की जिम्मेदारी होती है।
बीते कुछ महीनों के दौरान सिर्फ एक अमेरिकी एजेंसी को चिंता थी कि दो विरोधी देशों के बीच तनाव बढ़ रहा था। इन चिंताओं ने सीआईए को इस क्षेत्र में अपनी प्रतिबद्धता के लिए प्रेरित किया। दो अमेरिकी अधिकारी जो रिकॉर्ड पर बोलने के लिए अधिकृत नहीं थे उन्होंने एनबीसी न्यूज को यह जानकारी दी। उन्होंने इसके आगे कोई विवरण नहीं दिया।
यह 20 साल पुराना भारत नहीं : विशेषज्ञ
नरेंद्र मोदी
- फोटो : amar ujala
अन्य क्षेत्रीय विशेषज्ञों का कहना है कि हालांकि वाशिंगटन ने अधिक सीमित भूमिका निभाई थी, भारत और पाकिस्तान ट्रंप प्रशासन को एक वार्ताकार के रूप में देखने के इच्छुक नहीं थे। पिछले गतिरोधों से उलट इस बार ट्रंप के नेतृत्व वाला व्हाइट हाउस भारत को वह मौका देना चाहता था जो स्थिति को हल करने के लिए जरूरी था।
सामरिक और अंतरराष्ट्रीय अध्ययन केंद्र थिंक टैंक के वरिष्ठ सलाहकार रिक रॉसो के मुताबिक, "यह अमेरिका के हस्तक्षेप की कोशिश में आक्रामक मुद्रा से थोड़ा कम है, लेकिन यह एक तयशुदा डिजाइन के तहत है क्योंकि आज का भारत 15 से 20 साल पहले की तुलना में बहुत अलग है।"
उन्होंने कहा, वाशिंगटन भारत को "एक जिम्मेदार भूमिका" में देखता है, जिसके पास अपने हितों का ध्यान रखने के लिए पर्याप्त शक्ति और कौशल है।
अटलांटिक काउंसिल थिंक टैंक शुजा नवाज के अनुसार, अमेरिका पाकिस्तान द्वारा आकंकवादियों पर नकेल कसने में नाकाम रहने पर बुरी तरह निराश हो चुका है, इस्लामाबाद के साथ वाशिंगटन के रिश्तों में दरार आ गई है, जबकि वह भारत के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए हुए है। अमेरिका भारत को चीन के खिलाफ एक महत्वपूर्ण पक्ष के रूप में देखता है।
नवाज ने कहा, "कुछ समय के लिए यह नीति रही है। भारत को लेकर इस बदलाव की शुरुआत बुश प्रशासन के वक्त हुई, जो ओबामा के कार्यकाल के दौरान जारी रहा और अब ट्रंप शासन में भी जारी है।
हालांकि पाकिस्तान द्वारा पिछले शुक्रवार को कैद किए गए भारतीय लड़ाकू पायलट अभिनंदन वर्तमान को रिहा करने के बाद संकट कम होता दिखाई दिया, लेकिन हफ्ते के आखिर में दोनों देशों ने एक दूसरे पर गोले दागे, जिसमें कई नागरिक मारे गए। लेकिन इन सब के बीच कश्मीर का मुद्दा और पाकिस्तान द्वारा आतंकवादियों के समर्थन पर जारी असहमति नहीं सुलझ सकी है।
सामरिक और अंतरराष्ट्रीय अध्ययन केंद्र थिंक टैंक के वरिष्ठ सलाहकार रिक रॉसो के मुताबिक, "यह अमेरिका के हस्तक्षेप की कोशिश में आक्रामक मुद्रा से थोड़ा कम है, लेकिन यह एक तयशुदा डिजाइन के तहत है क्योंकि आज का भारत 15 से 20 साल पहले की तुलना में बहुत अलग है।"
उन्होंने कहा, वाशिंगटन भारत को "एक जिम्मेदार भूमिका" में देखता है, जिसके पास अपने हितों का ध्यान रखने के लिए पर्याप्त शक्ति और कौशल है।
अटलांटिक काउंसिल थिंक टैंक शुजा नवाज के अनुसार, अमेरिका पाकिस्तान द्वारा आकंकवादियों पर नकेल कसने में नाकाम रहने पर बुरी तरह निराश हो चुका है, इस्लामाबाद के साथ वाशिंगटन के रिश्तों में दरार आ गई है, जबकि वह भारत के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए हुए है। अमेरिका भारत को चीन के खिलाफ एक महत्वपूर्ण पक्ष के रूप में देखता है।
नवाज ने कहा, "कुछ समय के लिए यह नीति रही है। भारत को लेकर इस बदलाव की शुरुआत बुश प्रशासन के वक्त हुई, जो ओबामा के कार्यकाल के दौरान जारी रहा और अब ट्रंप शासन में भी जारी है।
हालांकि पाकिस्तान द्वारा पिछले शुक्रवार को कैद किए गए भारतीय लड़ाकू पायलट अभिनंदन वर्तमान को रिहा करने के बाद संकट कम होता दिखाई दिया, लेकिन हफ्ते के आखिर में दोनों देशों ने एक दूसरे पर गोले दागे, जिसमें कई नागरिक मारे गए। लेकिन इन सब के बीच कश्मीर का मुद्दा और पाकिस्तान द्वारा आतंकवादियों के समर्थन पर जारी असहमति नहीं सुलझ सकी है।
"ट्रंप की टीम वास्तविक विश्व संकट के लिए तैयार नहीं"
विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान को पाकिस्तान ने रिहा किया
गौरतलब है कि पुलवामा में हुए आतंकी हमले के 12 दिनों बाद 26 फरवरी मंगलवार को भारत ने पाकिस्तान के बालाकोट में जैश के आतंकी प्रशिक्षण शिविर पर हमला कर 325 आतंकवादी और आतंकियों के ट्रेनर का सफाया कर दिया। जिसके बाद 27 फरवरी को पाकिस्तान के लड़ाकू विमान भारत में घुस आए।
भारतीय वायु सेना के पायलटों और पाकिस्तानियों के बीच 27 फरवरी को हुए संघर्ष में भारतीय मिग-21 पायलट विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान ने एफ-16 को मार गिराया था। लेकिन पाकिस्तान ने उन्हें कैद कर लिया था और पिछले शुक्रवार को दबाव के बीच रिहा किया।
1971 के बाद से पाकिस्तान की सीमा पर पहली हवाई हमले का आदेश देकर, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संकेत दिया है कि उनकी सरकार आतंकवादी हमलों का तुरंत जवाब देगी, अगर वह पाकिस्तान से जुड़े हुए हैं, और उन्होंने अपने नजरिए को बयां करने के लिए इजराइल को एक मॉडल के रूप में चुना है।
अब अगली बार तनाव बढ़ने की स्थिति में बहुत कुछ दांव पर लगा है, और पूर्व अधिकारियों ने कहा कि ट्रंप प्रशासन अपने निर्णय लेने की अराजकता और अधिकारियों की कमी के कारण तैयार दिखाई नहीं देता।
रिडेल ने कहा, "यह खतरे की घंटी है।" वे कहते हैं, "ट्रंप की टीम वास्तविक विश्व संकट के लिए तैयार नहीं है। पिछले दो सालों के दौरान इसकी किस्मत अच्छी रही है।"
भारतीय वायु सेना के पायलटों और पाकिस्तानियों के बीच 27 फरवरी को हुए संघर्ष में भारतीय मिग-21 पायलट विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान ने एफ-16 को मार गिराया था। लेकिन पाकिस्तान ने उन्हें कैद कर लिया था और पिछले शुक्रवार को दबाव के बीच रिहा किया।
1971 के बाद से पाकिस्तान की सीमा पर पहली हवाई हमले का आदेश देकर, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संकेत दिया है कि उनकी सरकार आतंकवादी हमलों का तुरंत जवाब देगी, अगर वह पाकिस्तान से जुड़े हुए हैं, और उन्होंने अपने नजरिए को बयां करने के लिए इजराइल को एक मॉडल के रूप में चुना है।
अब अगली बार तनाव बढ़ने की स्थिति में बहुत कुछ दांव पर लगा है, और पूर्व अधिकारियों ने कहा कि ट्रंप प्रशासन अपने निर्णय लेने की अराजकता और अधिकारियों की कमी के कारण तैयार दिखाई नहीं देता।
रिडेल ने कहा, "यह खतरे की घंटी है।" वे कहते हैं, "ट्रंप की टीम वास्तविक विश्व संकट के लिए तैयार नहीं है। पिछले दो सालों के दौरान इसकी किस्मत अच्छी रही है।"