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Vijay Diwas: मो. यूनुस के राज में बांग्लादेश में कैसे मन रहा विजय दिवस, शेख हसीना के शासन से कितना अलग? जानें

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, ढाका Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Mon, 16 Dec 2024 01:41 PM IST
सार
यह जानना अहम है कि जब बांग्लादेश 26 मार्च को स्वतंत्रता दिवस मनाता है तो आखिर उसका पाकिस्तान से आजाद होने का जश्न यानी विजय दिवस 16 दिसंबर को क्यों मनाया जाता है? इस साल विजय दिवस मनाने के तरीके में क्या अंतर रहा? बांग्लादेश की मीडिया ने इस साल विजय दिवस समारोह का कवरेज कैसे किया? बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस ने अपने लंबे भाषण के दौरान इस समारोह को लेकर क्या कहा? आइये जानते हैं...
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India Bangladesh Vijay Diwas Muhammad Yunus Interim Government celebration differs Sheikh hasina rule
बांग्लादेश में 2024 में मोहम्मद यूनुस; 2021 में शेख हसीना के साथ भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति कोविंद। - फोटो : Amar Ujala

विस्तार
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भारत और बांग्लादेश में आज विजय दिवस समारोह मनाया जा रहा है। जहां भारत और बांग्लादेश दोनों ही इस मौके पर अपने-अपने स्तर पर जश्न मना रहे हैं, वहीं सम्मिलित तौर पर इस बार रिश्तों में उतनी गर्माहट देखने को नहीं मिली। बीते पांच दशकों में इस दिन पर हुए समारोह की बात करें तो शेख हसीना के शासन में जहां दोनों देश हर वर्ष साझा तौर पर पाकिस्तान पर विजयी के प्रतीक रहे इस दिन के लिए कई कार्यक्रम आयोजित करते रहे, वहीं इस बार दोनों देशों में तल्खी साफ नजर आ रही है। 



ऐसे में यह जानना अहम है कि जब बांग्लादेश 26 मार्च को स्वतंत्रता दिवस मनाता है तो आखिर उसका पाकिस्तान से आजाद होने का जश्न यानी विजय दिवस 16 दिसंबर को क्यों मनाया जाता है? इस साल विजय दिवस मनाने के तरीके में क्या अंतर रहा है? बांग्लादेश की मीडिया ने इस साल विजय दिवस समारोह का कवरेज कैसे किया है? बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस ने अपने लंबे भाषण के दौरान इस समारोह को लेकर क्या कहा? आइये जानते हैं...

1. भारत और बांग्लादेश क्यों साथ मनाते हैं विजय दिवस?
भारत और बांग्लादेश दोनों ही देश 16 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान पर विजय का जश्न मनाते हैं। सही मायनों में देखा जाए तो यह बांग्लादेश का स्वतंत्रता दिवस भी माना जा सकता है। हालांकि, बांग्लादेश अपनी स्वतंत्रता का दिन 26 मार्च को मनाता है। इसकी वजह यह है कि पश्चिमी पाकिस्तान (अब पाकिस्तान) के खिलाफ तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) ने 26 मार्च 1971 को ही पहली बार आजादी की आवाज उठाई थी और आधिकारिक तौर पर उत्तराधिकार देने की मांग की गई थी। तब भारत की प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी ने उनके स्वतंत्रता संघर्ष में उनका समर्थन किया था। बांग्लादेश के इसी एलान के बाद पाकिस्तानी सेनाओं ने पूर्वी पाकिस्तान में व्यापक नरसंहार किया। अंततः भारत पर हुए एक हमले के बाद भारतीय सेनाओं को बांग्लादेश की आजादी के लिए युद्ध में उतरना पड़ा।

26 मार्च 1971 को हुए आजादी के इस आह्वान के चलते ही बांग्लादेश अपना स्वतंत्रता दिवस हर साल 26 मार्च को मनाता है। हालांकि, नौ महीने के ‘मुक्ति संग्राम’ के बाद भारत की महत्वपूर्ण सहायता से ढाका 16 दिसंबर 1971 को एक स्वतंत्र देश की स्वतंत्र राजधानी के रूप में उभरा। इस दिन पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों को भारतीय सेना और बांग्लादेश की मुक्ति वाहिनी के सामने सरेंडर को मजबूर होना पड़ा था। इसकी वजह से भारत और बांग्लादेश हर साल विजय दिवस 16 दिसंबर को मनाते हैं। एक तरह से देखा जाए तो यह दिन बांग्लादेश के पश्चिमी पाकिस्तान के क्रूर शासन से आजाद होने से ज्यादा पाकिस्तान पर विजय प्राप्त करने से जुड़ा है। 

2. भारत-बांग्लादेश में इस साल साझा तौर पर विजय दिवस मनाने के तरीके में क्या अंतर?
16 दिसंबर 1971 के बाद से हर साल भारत और बांग्लादेश एक-दूसरे के युद्ध के नायकों और सेवारत अधिकारियों को अपने यहां होने वाले समारोहों में भाग लेने के लिए आमंत्रित करते हैं। भारतीय उच्चायोग के मुताबिक, ये वार्षिक द्विपक्षीय यात्राएं मुक्ति योद्धाओं और मुक्ति संग्राम के नायकों को दोनों देशों की अद्वितीय मित्रता का जश्न मनाने के लिए एक मंच प्रदान करती हैं।


I). दोनों देशों ने प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों में की कमी
हालांकि, बीते वर्षों में पिछली सरकारों और शेख हसीना शासन के मुकाबले इस साल एक-दूसरे के यहां दौरे पर जाने वाले युद्ध के नायकों और सेवारत अधिकारियों की संख्या में भारी कमी आई है। इस बार भारत और बांग्लादेश में विजय दिवस समारोहों में भाग लेने के लिए 1971 के मुक्ति संग्राम का हिस्सा रह चुके आठ भारतीय सैनिक ढाका पहुंचे हैं, जबकि वहां की सेना के आठ अधिकारी कोलकाता पहुंचे हैं। बांग्लादेश के अधिकारियों और ढाका में भारतीय उच्चायोग ने बताया कि दोनों पक्षों के दो-दो सेवारत अधिकारी प्रतिनिधिमंडल में शामिल हैं जो ढाका और कोलकाता में होने वाले समारोहों में हिस्सा लेंगे।

इसके उलट बीते वर्षों में दोनों देशों की तरफ से भेजे जाने वाले प्रतिनिधिमंडल के आंकड़े को देखा जाए तो इसमें सैनिकों और सेवारत कर्मियों की संख्या मिलाकर 50 से भी ज्यादा होती थी। यहां तक कि कई युद्ध दिग्गजों की पत्नियां भी इस प्रतिनिधिमंडल में शामिल होती थीं। लेकिन इस बार पूरे प्रतिनिधिमंडल में ही कुल 15 से 17 लोग (सेवारत कर्मियों की पत्नियों को मिलाकर) पहुंचे हैं। 
 

II). बांग्लादेश में समारोह से दूर राष्ट्रपिता मुजीब की आवामी लीग
शेख हसीना के सत्ता से हटने और बांग्लादेश में हिंदुओं पर हुए हमलों के बीच दोनों देशों के बीच आई तल्खी का असर अब रिश्तों पर भी देखने को मिला है। जहां भारत की तरफ से कोलकाता में इस दिन को मनाने के लिए बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एक कार्यक्रम में शामिल होंगी। वहीं ढाका के सावर में राष्ट्रीय स्मारक में भी एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया जाएगा, जिसमें राजनीतिक दलों के लोगों के आने की संभावना है। हालांकि, शेख हसीना की आवामी लीग के कार्यकर्ताओं के खिलाफ हुई हिंसा, उसके बड़े नेताओं की गिरफ्तारी और बांग्लादेश की आजादी के मुख्य बिंदु रहे शेख मुजीब-उर रहमान की विरासत को भुलाए जाने की कोशिशों के बीच यह तय नहीं है कि ढाका में समारोह में इस साल विजय दिवस कैसे मनाया जाएगा। 

III). ढाका में मार्च-पास्ट समारोह बंद
रिपोर्ट्स की मानें तो हर साल 16 दिसंबर को ढाका में होने वाला मार्च पास्ट इस साल रद्द कर दिया गया है। द टेलीग्राफ अखबार ने बांग्लादेश के सूत्रों के हवाले से दावा किया है कि इस बार यूनुस सरकार बांग्लादेश के मुक्ति संघर्ष को याद करने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं रखती। अंतरिम सरकार के कई नेता भी पहले ही कह चुके हैं कि वह 16 दिसंबर से ज्यादा शेख हसीना के देश छोड़ने के दिन- 5 अगस्त को बांग्लादेश की असली आजादी का दिन मानते हैं।

IV). बांग्लादेश में विजय दिवस पर भारत की भूमिका का जिक्र नहीं
बांग्लादेश में विजय दिवस के मौके पर भारत का जिक्र भी गायब रहा। यहां तक कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस के राष्ट्र के नाम संबोधन में भी भारत का जिक्र नहीं हुआ। इससे पहले शेख हसीना के राष्ट्र के नाम संबोधन में बांग्लादेश की आजादी में भारत की भूमिका की जबरदस्त चर्चा होती थी। 

बांग्लादेश के मीडिया समूहों में भी चल रहे मोहम्मद यूनुस के भाषण और विजय दिवस के बधाई संदेशों में भारत का जिक्र नहीं मिलता। बांग्लादेश की अंग्रेजी न्यूज वेबसाइट्स की तरफ से देश की आजादी में भारत की भूमिका तक के बारे में नहीं बताया गया है। यहां तक कि लेखों में भी बांग्लादेश के स्वतंत्रता आंदोलन का जिक्र तो है, लेकिन इसमें भारत की मदद का जिक्र नहीं मिलता।

जबकि पिछले कुछ वर्षों की बात की जाए तो कोरोनाकाल तक में भारत-बांग्लादेश ने विजय दिवस के भव्य आयोजन को जारी रखा था। 2021 में विजय दिवस मनाने के लिए भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद बांग्लादेश पहुंचे थे। यहां उन्होंने  राष्ट्रपति शेख हसीना के साथ कई कार्यक्रमों में हिस्सा लिया था। वहीं, इससे पहले 2020 में भी दोनों देशों ने साथ में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया। 2020 में विजय दिवस के एक दिन बाद ही पीएम मोदी और शेख हसीना ने वर्चुअल समिट के जरिए दोनों देशों के संबंधों की जरूरतों के बारे में बताया था।

इससे पहले 2018 में बांग्लादेश ने 1971 के युद्ध में मुक्ति वाहिनी के सहयोग के लिए भारत के शहीदों को सम्मानित करने का एलान किया था। युद्ध में भारत के 12 नायकों के परिवारों को बांग्लादेश ने यह मरणोपरांत सम्मान विजय दिवस के मौके पर दिए थे। 
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