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Operation Diamond: जिस मिग-21 को पाने के लिए तरसती थी दुनिया, उसे मोसाद ऐसे लाया था इस्राइल, जानें पूरी कहानी
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: शिवेंद्र तिवारी
Updated Wed, 11 Oct 2023 08:25 PM IST
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ऑपरेशन डायमंड
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अमर उजाला
विस्तार
सात अक्तूबर को हमास ने अचानक हमला कर इस्राइल को आश्चर्यचकित कर दिया। हमेशा चौकस रहने वाली इस्राइल की खुफिया एजेंसी मोसाद भी इसे भांप नहीं पाई। हालांकि, मोसाद दुनियाभर में अपने गुप्त अभियानों के लिए जानी जाती रही है। मोसाद का ऐसा ही एक चर्चित ऑपरेशन डायमंड है। आइये जानते हैं क्या था ऑपरेशन डायमंड?वो साल था 1956। सोवियत रूस के आसमान पर एक विमान ने उड़ान भरी। नाम रखा गया- मिकोयन गुरेविच 21 या जिसे आज दुनिया मिग-21 के नाम से जानती है। 1960 के दशक में मिग-21 की दीवानगी चरम पर थी। सोवियत रूस ने अरब दुनिया समेत एशिया के कई देशों को मिग निर्यात करना शुरू कर दिया। लेकिन, पश्चिम और खासकर अमेरिका से दुश्मनी के चलते इन कथित विकसित राष्ट्रों की पहुंच से मिग-21 बाहर ही रहा।
अमेरिका समेत पूरी पश्चिमी दुनिया एक अदद मिग के लिए छटपटा रही थी। वो देखना चाहती थी कि जिस मिग ने अपनी तकनीक, उड़ान और मारक क्षमता से तहलका मचा रखा है, क्या वो उसके जैसा कुछ बना सकते हैं? वो उससे कैसे टक्कर ले सकते हैं?
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ऑपरेशन डायमंड
जो कुछ सिनेमा के पर्दे पर फिल्मी कहकर खारिज कर दिया जाता है, वो कई बार दुनिया के किसी हिस्से में सच में घटित हो रहा होता है। 1963 के आसपास फिल्मी सी लगने वाली ये कहानी घट रही थी इस्राइल में। मोसाद को इस्राइल ही नहीं दुनिया की सबसे अत्याधुनिक और बेहतरीन खुफिया एजेंसियों में से एक का दर्जा मिला हुआ है। ये वो वक्त था जब मोसाद की कमान इजर हरेल के हाथ से निकलकर मीर एमिट के हाथों में आई। इजर हरेल रूस में पैदा हुए थे जबकि मीर, जन्म से ही इस्राइली थे। मीर, कई साल इस्राइल की फौज में गुजारने के बाद मोसाद के मुखिया बने थे। जाहिर है, उनका नजरिया काफी अलग था।
आइजर वाइजमैन, उस समय इस्राइल के वायु सेना अध्यक्ष थे। एक दिन वाइजमैन ने मीर को सीधे शब्दों में अपने दिल की बात बताई, कहा, 'मीर, मुझे एक मिग-21 चाहिए।'
मीर ये सुनकर चौंक गए। क्योंकि इस समय तक इस्राइल तो छोड़िए किसी पश्चिमी देश के पास एक भी मिग नहीं था।
लेकिन जब वाइजमैन ने जोर डाला तो मीर मान गए। उन्होंने इस ऑपरेशन की जिम्मेदारी अपने करीबी और विश्वसनीय रेहाविया वार्दी को दी। वार्दी पहले ही मिस्र या सीरिया के रास्ते मिग हासिल करने की नाकाम कोशिश कर चुके थे।
वार्दी ने बिना समय गंवाए अरब दुनिया में ये सिग्नल भेजने शुरू किए कि वो एक मिग की तलाश में हैं और इस काम के लिए लाखों डॉलर खर्च करने को तैयार हैं। इस दौर में सोवियत रूस बड़ी संख्या में अरब देशों को मिग निर्यात कर रहा था। ये इस्राइल के नजरिए से घातक था।
कुछ ही समय में वार्दी को अच्छी खबर मिली। एक इराकी यहूदी योसेफ शेमेश ने बताया कि वो एक पायलट को जानते हैं जो ये कर सकता है।
वो पायलट था- मुनीर रेडफा। और उसे कोड नेम दिया गया- डायमंड। और इस तरह ये पूरा ऑपरेशन कहलाया--ऑपरेशन डायमंड। इराक की वायु सेना का हिस्सा मुनीर एक ईसाई था। उसकी पत्नी केमिली, शेमेश की महिला मित्र की बहन थी।
जो कुछ सिनेमा के पर्दे पर फिल्मी कहकर खारिज कर दिया जाता है, वो कई बार दुनिया के किसी हिस्से में सच में घटित हो रहा होता है। 1963 के आसपास फिल्मी सी लगने वाली ये कहानी घट रही थी इस्राइल में। मोसाद को इस्राइल ही नहीं दुनिया की सबसे अत्याधुनिक और बेहतरीन खुफिया एजेंसियों में से एक का दर्जा मिला हुआ है। ये वो वक्त था जब मोसाद की कमान इजर हरेल के हाथ से निकलकर मीर एमिट के हाथों में आई। इजर हरेल रूस में पैदा हुए थे जबकि मीर, जन्म से ही इस्राइली थे। मीर, कई साल इस्राइल की फौज में गुजारने के बाद मोसाद के मुखिया बने थे। जाहिर है, उनका नजरिया काफी अलग था।
आइजर वाइजमैन, उस समय इस्राइल के वायु सेना अध्यक्ष थे। एक दिन वाइजमैन ने मीर को सीधे शब्दों में अपने दिल की बात बताई, कहा, 'मीर, मुझे एक मिग-21 चाहिए।'
मीर ये सुनकर चौंक गए। क्योंकि इस समय तक इस्राइल तो छोड़िए किसी पश्चिमी देश के पास एक भी मिग नहीं था।
लेकिन जब वाइजमैन ने जोर डाला तो मीर मान गए। उन्होंने इस ऑपरेशन की जिम्मेदारी अपने करीबी और विश्वसनीय रेहाविया वार्दी को दी। वार्दी पहले ही मिस्र या सीरिया के रास्ते मिग हासिल करने की नाकाम कोशिश कर चुके थे।
वार्दी ने बिना समय गंवाए अरब दुनिया में ये सिग्नल भेजने शुरू किए कि वो एक मिग की तलाश में हैं और इस काम के लिए लाखों डॉलर खर्च करने को तैयार हैं। इस दौर में सोवियत रूस बड़ी संख्या में अरब देशों को मिग निर्यात कर रहा था। ये इस्राइल के नजरिए से घातक था।
कुछ ही समय में वार्दी को अच्छी खबर मिली। एक इराकी यहूदी योसेफ शेमेश ने बताया कि वो एक पायलट को जानते हैं जो ये कर सकता है।
वो पायलट था- मुनीर रेडफा। और उसे कोड नेम दिया गया- डायमंड। और इस तरह ये पूरा ऑपरेशन कहलाया--ऑपरेशन डायमंड। इराक की वायु सेना का हिस्सा मुनीर एक ईसाई था। उसकी पत्नी केमिली, शेमेश की महिला मित्र की बहन थी।
ऑपरेशन डायमंड
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...और मुनीर मान गया
मुनीर इस बात से खासा नाराज था कि काबिल होने के बावजूद उसे पदोन्नति नहीं मिल रही। उसे बेहतर मौके नहीं दिए जा रहे। वो मन ही मन मान बैठा कि ऐसा उसके ईसाई होने की वजह से किया जा रहा है। उसे लगा कि वो कभी स्क्वाड्रन लीडर नहीं बन पाएगा।
पूरे एक साल तक शेमेश किसी न किसी बहाने, मुनीर से मुलाकात करता रहा और उसे अपने खेमे में खींचने की कोशिशों में लगा रहा। कुछ समय बाद शेमेश को कामयाबी मिली और वो मुनीर और उसकी पत्नी केमिली को पहले ग्रीस और फिर कुछ समय के लिए रोम ले गया। इस दौरान, वो मुनीर को लगातार समझाता रहा।
एक बार मुनीर से सीधे पूछ लिया गया, अगर वो इराक से मिग-21 लेकर निकल जाए तो? इस पर मुनीर का जवाब था कि वो जिंदा नहीं बचेगा और उसे किसी देश में शरण नहीं मिलेगी। तभी, मुनीर को इस्राइल ने न सिर्फ शरण देने की पेशकश की बल्कि अच्छा पैसा भी ऑफर किया।
उसने कुछ दिन तक विचार करने के बाद आखिरकार हामी भर दी। 1966 खत्म होने में अभी कुछ महीने बचे थे। अगस्त 1966 में मुनीर रेडफा उर्फ डायमंड ने मिग-21 में सवार होकर इस्राइल के आसमान में प्रवेश किया। इस्राइल की वायुसीमा से उसके साथ दो मिराज फाइटर जेट बतौर एस्कॉर्ट साथ आए। मोसाद के मुखिया मीर एमिट ने नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया। सोवियत रूस के हथियारों में सबसे शक्तिशाली और मारक विमान मिग-21 का एक नमूना इस्राइल के हत्जोर हवाई अड्डे की पट्टी पर उतर चुका था। पश्चिमी दुनिया नींद में थी। एक मुश्किल ऑपरेशन की कामयाबी से बेखबर।
मुनीर ने प्रेस को इराक में ईसाइयों पर अत्याचार और कुर्दों पर बमबारी के बारे में बताया। इसके जरिए उसने खुद को सही ठहराने की कोशिश की।
मुनीर इस बात से खासा नाराज था कि काबिल होने के बावजूद उसे पदोन्नति नहीं मिल रही। उसे बेहतर मौके नहीं दिए जा रहे। वो मन ही मन मान बैठा कि ऐसा उसके ईसाई होने की वजह से किया जा रहा है। उसे लगा कि वो कभी स्क्वाड्रन लीडर नहीं बन पाएगा।
पूरे एक साल तक शेमेश किसी न किसी बहाने, मुनीर से मुलाकात करता रहा और उसे अपने खेमे में खींचने की कोशिशों में लगा रहा। कुछ समय बाद शेमेश को कामयाबी मिली और वो मुनीर और उसकी पत्नी केमिली को पहले ग्रीस और फिर कुछ समय के लिए रोम ले गया। इस दौरान, वो मुनीर को लगातार समझाता रहा।
एक बार मुनीर से सीधे पूछ लिया गया, अगर वो इराक से मिग-21 लेकर निकल जाए तो? इस पर मुनीर का जवाब था कि वो जिंदा नहीं बचेगा और उसे किसी देश में शरण नहीं मिलेगी। तभी, मुनीर को इस्राइल ने न सिर्फ शरण देने की पेशकश की बल्कि अच्छा पैसा भी ऑफर किया।
उसने कुछ दिन तक विचार करने के बाद आखिरकार हामी भर दी। 1966 खत्म होने में अभी कुछ महीने बचे थे। अगस्त 1966 में मुनीर रेडफा उर्फ डायमंड ने मिग-21 में सवार होकर इस्राइल के आसमान में प्रवेश किया। इस्राइल की वायुसीमा से उसके साथ दो मिराज फाइटर जेट बतौर एस्कॉर्ट साथ आए। मोसाद के मुखिया मीर एमिट ने नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया। सोवियत रूस के हथियारों में सबसे शक्तिशाली और मारक विमान मिग-21 का एक नमूना इस्राइल के हत्जोर हवाई अड्डे की पट्टी पर उतर चुका था। पश्चिमी दुनिया नींद में थी। एक मुश्किल ऑपरेशन की कामयाबी से बेखबर।
मुनीर ने प्रेस को इराक में ईसाइयों पर अत्याचार और कुर्दों पर बमबारी के बारे में बताया। इसके जरिए उसने खुद को सही ठहराने की कोशिश की।
ऑपरेशन डायमंड
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एक घंटे में सीखा मिग-21 उड़ाना
डैनी शापिरा, इस्राइल के सर्वश्रेष्ठ टेस्ट पायलट थे। इस्राइली वायु सेना के कमांडर, मेजर जनरल हॉड ने शापिरा को बुलाकर कहा, 'तुम मिग-21 उड़ाने वाले पहले पश्चिमी पायलट होगे। विमान की तकनीक समझना शुरू कर दो। जितना उड़ाना चाहते हो, उड़ाओ। इसकी ताकत और कमजोरियों को सीखो।'
जिसके बाद शापिरा ने मुनीर रेडफा से मुलाकात की। शापिरा के शब्दों में,
'मुनीर ने मुझे कुछ स्विच दिखाए। लेबल देखे जो रूसी और अरबी भाषा में थे। एक घंटे बाद मैंने कहा कि मैं ये उड़ाने जा रहा हूं। मुनीर चौंक गए। उन्होंने मुझसे कहा कि तुमने कोर्स तो पूरा किया ही नहीं।
मैंने उन्हें समझाया कि मैं एक टेस्ट पायलट हूं। वो बहुत चिंता में दिखे।'
सभी बड़े अधिकारी पहली उड़ान देखने हत्जोर हवाई अड्डे पर जमा हुए। आइजर वाइजमैन ने डैनी शापिरा को कहा कि कोई ट्रिक नहीं चाहिए। ये विमान सुरक्षित वापस भी लाना है।
जब डैनी उड़ान के बाद लौटे तो मुनीर रेडफा उनके गले से लिपट गए। मुनीर की आंखों में आंसू थे। उन्होंने कहा, 'आपके जैसे पायलट हों तो अरब कभी आपको नहीं हरा सकते।'
कुछ ही वक्त में इस्राइल को मालूम हो गया कि आखिर क्यों दुनिया मिग के पीछे दीवानी है। मिग-21 बहुत ऊंचाई पर उड़ान भरता था, ये बहुत तेज था और इस्राइल के मिराज-3 के मुकाबले एक टन हल्का था।
डैनी शापिरा, इस्राइल के सर्वश्रेष्ठ टेस्ट पायलट थे। इस्राइली वायु सेना के कमांडर, मेजर जनरल हॉड ने शापिरा को बुलाकर कहा, 'तुम मिग-21 उड़ाने वाले पहले पश्चिमी पायलट होगे। विमान की तकनीक समझना शुरू कर दो। जितना उड़ाना चाहते हो, उड़ाओ। इसकी ताकत और कमजोरियों को सीखो।'
जिसके बाद शापिरा ने मुनीर रेडफा से मुलाकात की। शापिरा के शब्दों में,
'मुनीर ने मुझे कुछ स्विच दिखाए। लेबल देखे जो रूसी और अरबी भाषा में थे। एक घंटे बाद मैंने कहा कि मैं ये उड़ाने जा रहा हूं। मुनीर चौंक गए। उन्होंने मुझसे कहा कि तुमने कोर्स तो पूरा किया ही नहीं।
मैंने उन्हें समझाया कि मैं एक टेस्ट पायलट हूं। वो बहुत चिंता में दिखे।'
सभी बड़े अधिकारी पहली उड़ान देखने हत्जोर हवाई अड्डे पर जमा हुए। आइजर वाइजमैन ने डैनी शापिरा को कहा कि कोई ट्रिक नहीं चाहिए। ये विमान सुरक्षित वापस भी लाना है।
जब डैनी उड़ान के बाद लौटे तो मुनीर रेडफा उनके गले से लिपट गए। मुनीर की आंखों में आंसू थे। उन्होंने कहा, 'आपके जैसे पायलट हों तो अरब कभी आपको नहीं हरा सकते।'
कुछ ही वक्त में इस्राइल को मालूम हो गया कि आखिर क्यों दुनिया मिग के पीछे दीवानी है। मिग-21 बहुत ऊंचाई पर उड़ान भरता था, ये बहुत तेज था और इस्राइल के मिराज-3 के मुकाबले एक टन हल्का था।
अमेरिका ने कहा- एक बार दिखा दो
अमेरिका ने तकनीशियनों की एक टीम इस्राइल भेजी लेकिन इस्राइल ने शर्त रखी कि जब तक वो सोवियत एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल सैम-2 की फाइल उन्हें नहीं सौंप देते, वो उन्हें मिग-21 की झलक नहीं दिखाएंगे। आखिरकार अमेरिका माना और इस तरह मिग-21 के राज धीरे-धीरे बेपर्दा होना शुरू हुए। इस्राइल ने इसे नया नाम दिया- 007।
अमेरिका ने तकनीशियनों की एक टीम इस्राइल भेजी लेकिन इस्राइल ने शर्त रखी कि जब तक वो सोवियत एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल सैम-2 की फाइल उन्हें नहीं सौंप देते, वो उन्हें मिग-21 की झलक नहीं दिखाएंगे। आखिरकार अमेरिका माना और इस तरह मिग-21 के राज धीरे-धीरे बेपर्दा होना शुरू हुए। इस्राइल ने इसे नया नाम दिया- 007।
जब काम आए सबक
मिग-21 पर तकनीकी रिसर्च का इम्तेहान करीब 10 महीने बाद इस्राइल के काफी काम आया। जून 1967 में 6 दिन तक चलने वाली लड़ाई में मिस्र को कदम पीछे खींचने में मिग पर महारत ने ही मजबूर किया।
दुनिया के करीब 60 देश मिग-21 का इस्तेमाल कर चुके हैं। ये उनके बेड़े का सबसे मजबूत खिलाड़ी रह चुका है। भारत समेत कई देशों में ये आज भी शामिल है।
मिग-21 पर तकनीकी रिसर्च का इम्तेहान करीब 10 महीने बाद इस्राइल के काफी काम आया। जून 1967 में 6 दिन तक चलने वाली लड़ाई में मिस्र को कदम पीछे खींचने में मिग पर महारत ने ही मजबूर किया।
दुनिया के करीब 60 देश मिग-21 का इस्तेमाल कर चुके हैं। ये उनके बेड़े का सबसे मजबूत खिलाड़ी रह चुका है। भारत समेत कई देशों में ये आज भी शामिल है।