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जलवायु संकट की नई चेतावनी: दो महीने में हेक्टोरिया ग्लेशियर आधा गायब, समुद्री जल-स्तर बढ़ने के संकेत
अमर उजाला नेटवर्क
Published by: लव गौर
Updated Mon, 10 Nov 2025 04:25 AM IST
सार
Hektoria Glacier: जलवायु संकट की नई चेतावनी सामने आई है। अंटार्कटिका का हेक्टोरिया ग्लेशियर दो महीने में आधा गायब हो गया है, जिसके बाद समुद्र के जलस्तर बढ़ने के संकेत मिले हैं।
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दो महीने में हेक्टोरिया ग्लेशियर आधा गायब
- फोटो : अमर उजाला प्रिंट
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विस्तार
अंटार्कटिका का हेक्टोरिया ग्लेशियर मात्र दो माह में अपनी बर्फ का करीब आधा हिस्सा गायब कर बैठा है। यह वर्तमान में दर्ज सबसे तेज और चौंकाने वाला हिमनद पतन है। यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो बोल्डर के वैज्ञानिकों के शोध से पता चला कि ग्लेशियर के नीचे की समतल चट्टानी सतह के कारण वह अचानक तैरने लगा और कुछ ही हफ्तों में आठ किलोमीटर पीछे हट गया। यह घटना जलवायु परिवर्तन और समुद्र-स्तर वृद्धि के लिए एक गंभीर वैश्विक संकेत है।
वैज्ञानिकों ने माना, दो माह में बर्फीले पहाड़ का ढहना गंभीर समस्या है। अंटार्कटिका के पूर्वी हिस्से में स्थित हेक्टोरिया ग्लेशियर 2023 की शुरुआत में महज दो महीनों में 115 वर्ग मील क्षेत्रफल की बर्फ खो बैठा जो नई चेतावनी है।
उपग्रहों के डाटा को जोड़कर किया घटना का विश्लेषण
नेचर जियोसाइंस में छपी रिपोर्ट बताती है कि वैज्ञानिकों ने विभिन्न उपग्रहों के डाटा को जोड़कर इस पूरी घटना का विश्लेषण किया। यदि उपग्रह चित्र तीन महीने के अंतराल पर लिए गए होते तो यह तेज बदलाव पकड़ में नहीं आता। सीआइआरईएस के प्रमुख शोधकर्ता ने बताया कि जब हमने 2024 की शुरुआत में उस जगह को प्रत्यक्ष रूप से देखा, तो हमारी आंखों पर विश्वास करना मुश्किल था। जो हमने उपग्रहों में देखा था, वास्तविक दृश्य उससे भी कहीं ज्यादा भयावह था। इसने हमें हिला दिया।
ये भी पढ़ें: बड़ी राहत: संकटों से घिरी दुनिया में किसानों का कमाल, अनाज उत्पादन तोड़ेगा रिकॉर्ड
जलवायु प्रणाली के अस्थिर होने के साफ संकेत
वैज्ञानिक समुदाय इस घटना को पृथ्वी की जलवायु प्रणाली के अस्थिर होने के स्पष्ट संकेत के रूप में देख रहा है। यह न केवल अंटार्कटिका की बर्फीली परत के भविष्य के लिए चिंता का विषय है, बल्कि वैश्विक जलवायु नीति के लिए भी। शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि यदि इस तरह की घटनाएं अन्य बड़े ग्लेशियरों में दोहराई गईं, तो वैश्विक समुद्र-स्तर में वृद्धि तेज और अपरिवर्तनीय रूप ले सकती है। हेक्टोरिया ग्लेशियर का पतन केवल एक वैज्ञानिक घटना नहीं, बल्कि मानवजनित जलवायु परिवर्तन की जीवित तस्वीर है।
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उपग्रहों के डाटा को जोड़कर किया घटना का विश्लेषण
नेचर जियोसाइंस में छपी रिपोर्ट बताती है कि वैज्ञानिकों ने विभिन्न उपग्रहों के डाटा को जोड़कर इस पूरी घटना का विश्लेषण किया। यदि उपग्रह चित्र तीन महीने के अंतराल पर लिए गए होते तो यह तेज बदलाव पकड़ में नहीं आता। सीआइआरईएस के प्रमुख शोधकर्ता ने बताया कि जब हमने 2024 की शुरुआत में उस जगह को प्रत्यक्ष रूप से देखा, तो हमारी आंखों पर विश्वास करना मुश्किल था। जो हमने उपग्रहों में देखा था, वास्तविक दृश्य उससे भी कहीं ज्यादा भयावह था। इसने हमें हिला दिया।
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जलवायु प्रणाली के अस्थिर होने के साफ संकेत
वैज्ञानिक समुदाय इस घटना को पृथ्वी की जलवायु प्रणाली के अस्थिर होने के स्पष्ट संकेत के रूप में देख रहा है। यह न केवल अंटार्कटिका की बर्फीली परत के भविष्य के लिए चिंता का विषय है, बल्कि वैश्विक जलवायु नीति के लिए भी। शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि यदि इस तरह की घटनाएं अन्य बड़े ग्लेशियरों में दोहराई गईं, तो वैश्विक समुद्र-स्तर में वृद्धि तेज और अपरिवर्तनीय रूप ले सकती है। हेक्टोरिया ग्लेशियर का पतन केवल एक वैज्ञानिक घटना नहीं, बल्कि मानवजनित जलवायु परिवर्तन की जीवित तस्वीर है।