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फ्रांस में सियासी संकट: बाल-बाल बची मैक्रों की सरकार, सदन में PM लेकोर्नु के खिलाफ दो अविश्वास प्रस्ताव गिरे

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, पेरिस। Published by: निर्मल कांत Updated Fri, 17 Oct 2025 09:06 AM IST
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सार

फ्रांस की राजनीति में एक बार राजनीतिक संकट टल गया है। सदन में प्रधानमंत्री सेबस्टियन लेकोर्नु  के खिलाफ लगातार दो अविश्वास प्रस्ताव गिर गए। इससे राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को राष्ट्रीय बजट पारित कराने से पहले थोड़ी राहत मिली है। हालांकि, असली चुनौती अब भी बाकी है क्योंकि देश की अल्पमत वाली सरकार को संसद में हर बड़े फैसले के लिए जद्दोजहद करनी पड़ेगी। पेंशन सुधार जैसे मुद्दे और आगामी बजट को लेकर राजनीतिक तनाव बढ़ सकता है। जानिए पूरा ताजा घटनाक्रम-

Political crisis in France eases for now as prime minister survives no-confidence vote
फ्रांस के पीएम सेबेस्टियन लेकोर्नु (मध्य में) - फोटो : एक्स/Sebastien Lecornu
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विस्तार
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फ्रांस का ताजा सियासी संकट फिलहाल टल गया है, क्योंकि प्रधानमंत्री सेबस्टियन लेकोर्नु गुरुवार को लगातार अविश्वास प्रस्तावों से बच गए। इससे सरकार गिरने का खतरा टल गया और राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को कुछ समय के लिए राहत मिल गई। हालांकि, अब भी देश का बजट पारित कराना असली चुनौती है। 
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हालात में थोड़ी स्थिरता जरूर आई है। लेकिन संकट पूरी तरह टला नहीं है। यूरोप की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अब भी एक अल्पमत वाली सरकार चला रही है। ससंद में कोई एक पार्टी या गठबंधन बहुमत में नहीं है। अब हर बड़ा कानून आखिरी समय पर होने वाली सौदेबाजी पर निर्भर हो गया है और अगली बड़ी परीक्षा सालाना बजट पारित कराना है, जिसे साल खत्म होने से पहले पास करना जरूरी है। 
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संसद में ड्रामा
गुरुवार को 577 सीटों वाली नेशनल असेंबली में सांसदों ने वामपंथी पार्टी 'फ्रांस अनबोउड' की ओर से लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिया। प्रस्ताव के पक्ष में 271 वोट पड़े, जो सरकार गिराने के लिए जरूरी 289 वोटों से 18 कम थे। दूसरा अविश्वास प्रस्ताव दक्षिणपंथी पार्टी 'नेशनल रैली' की ओर से लाया गया, जो विफल हो गया। अगर लेकोर्नू यह वोट हार जाते, तो राष्ट्रपति मैक्रों के सामने नए संसदीय चुनाव कराने, एक और नया प्रधानमंत्री खोजने (जो एक साल में फ्रांस का पांचवां प्रधानमंत्री होता) या खुद इस्तीफा देने जैसे कुछ ही कठिन और अप्रिय विकल्प बचते, जिससे वह पहले ही इनकार कर चुके हैं। 
 
फ्रांस इस स्थिति तक कैसे पहुंचा?
जून 2024 में राष्ट्रपति मैक्रों द्वारा नेशनल असेंबली को भंग करने का फैसला उनके लिए उल्टा साबित हुआ। इसके बाद जो संसदीय चुनाव हुए, उसमें निचले सदन में मैक्रों के विरोधी नेता तो बड़ी संख्या में चुनकर आ गए, लेकिन किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। तबसे मैक्रों की अल्पमत सरकार एक-एक विधेयक के लिए समर्थन जुटाने की कोशिश कर रही है और लगातार गिर जा रही है।

यह स्थिति फ्रांस की 'पांचवीं गणराज्य' की राजनीतिक व्यवस्था से मेल नहीं खाती है, जिसकी नींव 1958 में शार्ल द गॉल के नेतृत्व में रखी गई थी। यह व्यवस्था एक मजबूत राष्ट्रपति और स्थिर संसद के बहुमत के लिए बनाई गई थी, न कि गठबंधन की सौदेबाजी या बिखरी हुई संसद के लिए।

अब जब कोई भी एक दल या गठबंधन 289 सीटों के पूर्ण बहुमत के करीब भी नहीं है, तो यह पूरी राजनीतिक व्यवस्था अपनी मूल संरचना के खिलाफ जाकर काम कर रही है। हर बड़ा वोट एक तनावपूर्ण मुकाबला बना रहा है और फ्रांस की शासन व्यवस्था को लेकर बुनियादी सवाल उठ रहे हैं। फ्रांसीसी मतदाताओं और पर्यवेक्षकों के लिए यह स्थिति चौंकाने वाली है। जो देश कभी यूरोप की स्थिरता का मॉडल माना जाता था, वह अब एक संकट से दूसरे संकट में फंसते चला जा रहा है।

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पेंशन कानून बना अहम मुद्दा
विपक्षी दलों के कुछ सांसदों का समर्थन पाने के लिए प्रधानमंत्री लेकोर्नू ने राष्ट्रपति मैक्रों के 2023 के प्रमुख पेंशन कानून को धीरे-धीरे लागू करने का प्रस्ताव रखा। इस कानून के तहत सेवानिवृत्ति की उम्र 62 से बढ़ाकर 64 की जानी है। इस देरी से कानून के पूरी तरह लागू होने की समयसीमा लगभग दो साल आगे खिसक सकती है। इससे उन लोगों पर तुरंत असर नहीं पड़ेगा, जो अभी सेवानिवृत्ति के करीब हैं। सरकार का कहना है कि इस देरी से अगले साल करीब 400 मिलियन यूरो (430 मिलियन डॉलर) का अतिरिक्त खर्च आएगा और 2027 तक यह लागत बढ़कर 1.8 बिलियन यूरो (1.9 बिलियन डॉलर) हो सकती है। हालांकि, उन्होंने कहा है कि इन खर्चों की भरपाई के लिए अलग से प्रबंध किया जाएगा।

फ्रांस में कई लोगों के लिए पेंशन का मुद्दा बहुत संवेदनशील है। 2023 के इस पेंशन कानून ने बड़े विरोध प्रदर्शनों और हड़तालों को जन्म दिया, जिससे पेरिस की सड़कों पर कचरे के ढेर लग गए। इसके बाद सरकार ने अनुच्छेद 49.3 का सहारा लिया, जो प्रधानमंत्री को बिना संसद के वोट के कानून पारित कराने का विशेष सांविधानिक अधिकार देता है। लेकिन इस कदम के खिलाफ विरोध और तेज हो गया। 

अगली बजट की चुनौती
गुरुवार को अविश्वास प्रस्तावों के विफल होने के साथ ही मैक्रों की सरकार को थोड़ा वक्त मिल गया है। अब लड़ाई 2026 के बजट पर केंद्रित हो गई है, जिस पर चर्चा 24 अक्तूबर से शुरू होगी। लेकोर्नू ने वादा किया है कि वह बजट पारित कराने के लिए अनुच्छेद 49.3 का उपयोग नहीं करेंगे। 

यानी बिना वोट के कोई शॉर्टकट नहीं होगा। हर एक प्रावधान को संसद में समर्थन हासिल करना होगा, जबकि संसद अब विभाजित और कमजोर स्थिति में है। सरकार और उसके सहयोगी के पास 200 से भी कम सीटें हैं। बहुमत के लिए उन्हें विपक्ष का समर्थन चाहिए। इस गणित में सोशलिस्ट पार्टी (जिसके पास 69 सांसद हैं) और कंजरवेटिव रिपब्लिकन्स (जिनके पास 50 सांसद हैं) दोनों संभावित निर्णायक समूह बन जाते हैं। लेकिन इन दोनों का समर्थन निश्चित नहीं है। हालांकि दोनों ने गुरुवार को लेकोर्नु के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्तावों का विरोध किया था। सोशलिस्ट पार्टी का कहना है कि बजट का मसौदा अभी भी 'सामाजिक और आर्थिक न्याय' की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरता।

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घाटे, कर्ज और अमीरों पर टैक्स की बहस
फ्रांस का घाटा सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 5.4 फीसदी है। सरकार की योजना है कि अगले साल खर्चों को नियंत्रित करके और लक्षित कर (टैक्स) सुधारों के माध्यम से इसे 4.7 फीसदी तक लाया जाए। वामपंथी दल अमीर लोगों की संपत्ति पर नए टैक्स लगाने का दबाव बनाते हैं। लेकिन सरकार इसे स्वीकार नहीं करती है और छोटे-छोटे, कम लाभ देने वाले कदमों को प्राथमिकता देती है, जिनमें होल्डिंग कंपनियों पर कुछ उपाय शामिल हैं।  

मैक्रों के दांव पर क्या है?
समय अब तेजी से बीत रहा है। सरकार को साल खत्म होने से पहले यह दिखाना होगा कि वह पेंशन योजना में देरी से होने वाले खर्चों का कैसे प्रबंधन करेगी। साथ ही सरकार को टैक्स और खर्चों को लेकर विपक्ष से सहमति भी बनानी होगी। अगर पेंशन, टैक्स या बजट किसी भी मुद्दे पर यह बातचीत विफल हो जाती है, तो एक बार फिर से सरकार के गिरने का खतरा पैदा हो जाएगा और फ्रांस में फिर वही संकट शुरू हो सकता है, जो पहले से था। 





 
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