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Vampanthi Deemak: सुधांशु त्रिवेदी बोले- वामपंथी सोच भारतीय संस्कृति के समक्ष बड़ा खतरा
डिजिटल ब्यूरो, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: राहुल कुमार
Updated Sun, 18 May 2025 11:04 PM IST
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सार
भाजपा के राज्यसभा सांसद डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि समय के साथ वामपंथी विचारधारा अपना स्वरुप बदल रही है। इस समय वह 'वोकिज्म' का रूप धरकर भारतीय संस्कृति की नींव और इसकी सबसे बहुमूल्य इकाई 'परिवार' को तबाह करने की कोशिश कर रही है।

डॉ. सुधांशु त्रिवेदी, राजीव तुली, हितेश शंकर, सुनील देवधर और वामपंथी दीमक पुस्तक के लेखक अभिजीत जोग
- फोटो : अमर उजाला

विस्तार
भाजपा के राज्यसभा सांसद डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने वामपंथी विचारधारा को देश की संस्कृति के लिए 'खतरनाक' बताया है। उन्होंने कहा है कि वामपंथी विचारधारा जहां भी पनपी, वहां इसने स्थापित मान्यताओं को अपने लाभ के लिए तोड़ने-मरोड़ने का काम किया। अपने शुरुआती दौर से ही जिस भी देश में वामपंथी विचारधारा पनपी, वहां हिंसक रास्तों से इसने सत्ता तक अपनी पैठ बनाई, लेकिन इसके बाद भी वामपंथी लोग अपने साथ लिबरल (उदारवादी) शब्द का उपयोग करते हैं जो इस शब्द का दुरुपयोग है।
त्रिवेदी ने कहा कि समय के साथ वामपंथी विचारधारा अपना स्वरुप बदल रही है। इस समय वह 'वोकिज्म' का रूप धरकर भारतीय संस्कृति की नींव और इसकी सबसे बहुमूल्य इकाई 'परिवार' को तबाह करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि इससे हर उस व्यक्ति को सतर्क रहना चाहिए जो राष्ट्रवादी है और देश की संस्कृति-सभ्यता को प्रेम करता है।
राष्ट्रवादी विचारधारा के लेखक अभिजीत जोग की पुस्तक 'टरमाइट्स' के हिंदी संस्करण 'वामपंथी दीमक' के लोकार्पण के अवसर पर रविवार को लोगों को संबोधित करते हुए डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि यह विचारधारा अक्सर उदारवाद, सेक्युलर, बोलने की स्वतंत्रता और प्रगतिवाद की अगुवा के रूप में प्रस्तुत की जाती है, लेकिन असलियत यह है कि वामपंथी विचारधारा जिस भी देश में पनपी, वहां उसने लोगों को बोलने की आजादी नहीं दी।
इसके लिए उन्होंने साम्यवादी देश चीन, उत्तर कोरिया और म्यांमार का उदाहरण दिया। त्रिवेदी ने कहा कि इन देशों में किसी विपक्षी को बोलने की आजादी नहीं है, कोई सरकार-सत्ता के खिलाफ आवाज नहीं उठा सकता, लेकिन इसके बाद भी साम्यवादी शासन व्यवस्था स्वयं को बोलने की आजादी की पक्षधर बताए तो यह हास्यास्पद है।
सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि साम्यवादी सत्ता वाले चीन, म्यांमार और अन्य देशों में विपरीत विचारधारा के लोगों को केवल बोलने से ही नहीं रोका गया, बल्कि उनका नरसंहार भी किया गया। इसके उदाहरण भारत में पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में भी देखने को मिला था, लेकिन इसके बाद भी वामपंथी लोग स्वयं के लिए लिबरल शब्द का इस्तेमाल करते हैं तो यह हास्यास्पद है।
अभिजीत जोग ने कहा
'वामपंथी दीमक' पुस्तक में इस विचारधारा पर सभ्यता-संस्कृति के लिए "हानिकारक" और "विनाशकारी" होने का आरोप लगाया गया है। पुस्तक के लेखक अभिजीत जोग ने कहा कि यह विचारधारा केवल दीमकों की तरह भारतीय संस्कृति और समाज को खोखला कर रही है। अभिजीत जोग द्वारा लिखित पुस्तक में वामपंथी विचारधारा के विकास और आधुनिक स्वरूप का विस्तार से विश्लेषण किया गया है।
'सरकार उनकी है, लेकिन सिस्टम तो हमारा है'
सुरुचि प्रकाशन के अध्यक्ष राजीव टुली ने कहा कि दि केरला फाइल्स फिल्म का एक कथन बहुत प्रसिद्ध हुआ था- सरकार उनकी है, लेकिन सिस्टम तो हमारा है। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस के शासन काल में वामपंथी विचारधारा ने सिस्टम पर अपनी पकड़ बनाई। यही कारण है कि सत्ता में न होने के बाद भी वे देश-समाज पर अपना नकारात्मक असर छोड़ने में सफल रहते हैं। एक पत्रिका के संपादक हितेश शंकर ने कहा कि जहां भी यह विचारधारा फैली है, उसने मेजबान देश को दीमक की तरह खा लिया है। वे भारत के साथ भी यही करने की कोशिश कर रहे हैं।
विश्वविद्यालयों में हो विचार-विमर्श- सुनील देवधर
माय होम इंडिया के संस्थापक और त्रिपुरा में भाजपा की जीत की नींव डालने वाले सुनील देवधर ने कहा कि यह समारोह केवल एक पुस्तक विमोचन नहीं है; यह एक वैचारिक युद्ध में एक निर्णायक मोर्चा है। उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक मार्क्सवाद द्वारा भारतीय परंपराओं और मूल्यों पर किए जा रहे हमले का मुकाबला लोगों को जागरूक करके ही किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक के बारे में विश्वविद्यालयों में विचार-विमर्श कराना चाहिए जिससे नई पीढ़ी यह समझ सके कि वामपंथी विचारधारा किस तरह देश की संस्कृति पर हमले कर रही है।
इस पुस्तक के मूल मराठी संस्करण का विमोचन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत के द्वारा किया गया था। उन्होंने ही इस पुस्तक को अंग्रेजी और हिंदी सहित तमाम भाषाओं में उपलब्ध कराने का सुझाव दिया था। यह पुस्तक जल्द ही सुरुचि प्रकाशन के मंच पर भी उपलब्ध होगी।
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त्रिवेदी ने कहा कि समय के साथ वामपंथी विचारधारा अपना स्वरुप बदल रही है। इस समय वह 'वोकिज्म' का रूप धरकर भारतीय संस्कृति की नींव और इसकी सबसे बहुमूल्य इकाई 'परिवार' को तबाह करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि इससे हर उस व्यक्ति को सतर्क रहना चाहिए जो राष्ट्रवादी है और देश की संस्कृति-सभ्यता को प्रेम करता है।
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राष्ट्रवादी विचारधारा के लेखक अभिजीत जोग की पुस्तक 'टरमाइट्स' के हिंदी संस्करण 'वामपंथी दीमक' के लोकार्पण के अवसर पर रविवार को लोगों को संबोधित करते हुए डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि यह विचारधारा अक्सर उदारवाद, सेक्युलर, बोलने की स्वतंत्रता और प्रगतिवाद की अगुवा के रूप में प्रस्तुत की जाती है, लेकिन असलियत यह है कि वामपंथी विचारधारा जिस भी देश में पनपी, वहां उसने लोगों को बोलने की आजादी नहीं दी।
इसके लिए उन्होंने साम्यवादी देश चीन, उत्तर कोरिया और म्यांमार का उदाहरण दिया। त्रिवेदी ने कहा कि इन देशों में किसी विपक्षी को बोलने की आजादी नहीं है, कोई सरकार-सत्ता के खिलाफ आवाज नहीं उठा सकता, लेकिन इसके बाद भी साम्यवादी शासन व्यवस्था स्वयं को बोलने की आजादी की पक्षधर बताए तो यह हास्यास्पद है।
सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि साम्यवादी सत्ता वाले चीन, म्यांमार और अन्य देशों में विपरीत विचारधारा के लोगों को केवल बोलने से ही नहीं रोका गया, बल्कि उनका नरसंहार भी किया गया। इसके उदाहरण भारत में पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में भी देखने को मिला था, लेकिन इसके बाद भी वामपंथी लोग स्वयं के लिए लिबरल शब्द का इस्तेमाल करते हैं तो यह हास्यास्पद है।
अभिजीत जोग ने कहा
'वामपंथी दीमक' पुस्तक में इस विचारधारा पर सभ्यता-संस्कृति के लिए "हानिकारक" और "विनाशकारी" होने का आरोप लगाया गया है। पुस्तक के लेखक अभिजीत जोग ने कहा कि यह विचारधारा केवल दीमकों की तरह भारतीय संस्कृति और समाज को खोखला कर रही है। अभिजीत जोग द्वारा लिखित पुस्तक में वामपंथी विचारधारा के विकास और आधुनिक स्वरूप का विस्तार से विश्लेषण किया गया है।
'सरकार उनकी है, लेकिन सिस्टम तो हमारा है'
सुरुचि प्रकाशन के अध्यक्ष राजीव टुली ने कहा कि दि केरला फाइल्स फिल्म का एक कथन बहुत प्रसिद्ध हुआ था- सरकार उनकी है, लेकिन सिस्टम तो हमारा है। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस के शासन काल में वामपंथी विचारधारा ने सिस्टम पर अपनी पकड़ बनाई। यही कारण है कि सत्ता में न होने के बाद भी वे देश-समाज पर अपना नकारात्मक असर छोड़ने में सफल रहते हैं। एक पत्रिका के संपादक हितेश शंकर ने कहा कि जहां भी यह विचारधारा फैली है, उसने मेजबान देश को दीमक की तरह खा लिया है। वे भारत के साथ भी यही करने की कोशिश कर रहे हैं।
विश्वविद्यालयों में हो विचार-विमर्श- सुनील देवधर
माय होम इंडिया के संस्थापक और त्रिपुरा में भाजपा की जीत की नींव डालने वाले सुनील देवधर ने कहा कि यह समारोह केवल एक पुस्तक विमोचन नहीं है; यह एक वैचारिक युद्ध में एक निर्णायक मोर्चा है। उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक मार्क्सवाद द्वारा भारतीय परंपराओं और मूल्यों पर किए जा रहे हमले का मुकाबला लोगों को जागरूक करके ही किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक के बारे में विश्वविद्यालयों में विचार-विमर्श कराना चाहिए जिससे नई पीढ़ी यह समझ सके कि वामपंथी विचारधारा किस तरह देश की संस्कृति पर हमले कर रही है।
इस पुस्तक के मूल मराठी संस्करण का विमोचन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत के द्वारा किया गया था। उन्होंने ही इस पुस्तक को अंग्रेजी और हिंदी सहित तमाम भाषाओं में उपलब्ध कराने का सुझाव दिया था। यह पुस्तक जल्द ही सुरुचि प्रकाशन के मंच पर भी उपलब्ध होगी।