Sri Lanka: सरकार-विपक्ष के बीच टकराव बढ़ा, विक्रमसिंघे पर तानाशाह बनने का आरोप
Sri Lanka: प्रमुख विपक्षी दल समगई जना बलावेगया (एसजेबी) ने तो विक्रमसिंघे पर उगांडा के पूर्व तानाशाह इदी अमीन के नक्शे-कदम पर चलने का आरोप लगाया है। इदी अमीन 1970 के दशक में उगांडा के राष्ट्रपति थे, जिन्होंने अपने विरोधियों का बेरहमी से दमन किया था...
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श्रीलंका में स्थानीय चुनावों को लगातार टालने के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघ सरकार के रुख के कारण विपक्ष के साथ उसका टकराव बढ़ता जा रहा है। विपक्षी दल अब खुल कर राष्ट्रपति पर तानाशाही कायम करने के इल्जाम लगाने लगे हैं। प्रमुख विपक्षी दल समगई जना बलावेगया (एसजेबी) ने तो विक्रमसिंघे पर उगांडा के पूर्व तानाशाह इदी अमीन के नक्शे-कदम पर चलने का आरोप लगाया है। इदी अमीन 1970 के दशक में उगांडा के राष्ट्रपति थे, जिन्होंने अपने विरोधियों का बेरहमी से दमन किया था।
एसजेबी के सांसद हर्षा राजकरुणा ने शुक्रवार को पत्रकारों को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि स्थानीय निकायों और प्रांतीय परिषदों के लिए चुनाव पर पूरी तरह से चुप्पी साध ली गई है और सारे देश को तानाशाही से चलाया जा रहा है। उन्होंने कहा- ‘प्रांतीय परिषदों के चुनाव नहीं कराए जा रहे हैं। अब तो इनकी चर्चा तक नहीं की जा रही है। प्रांतों को चलाने के लिए केंद्र सरकार ने अपने खास लोगों को गवर्नर बना दिया है। वही एक व्यक्ति सारे प्रांत को चलाता है।’ राजकरुणा ने आरोप लगाया कि सरकार ने इस मामले में कोर्ट के फैसले की भी अनदेखी कर दी है।
इस बीच यूनाइटेड नेशनल फ्रीडम एलायंस (यूपीएफए) ने कहा है कि अगर राष्ट्रपति विक्रमसिंघे सचमुच देश में आम सहमति कायम करना चाहते हैं, तो उन्हें तुरंत राष्ट्रीय सरकार का गठन करना चाहिए। यूएनएफए के महासचिव तिलंगा समुथिपला ने कहा है कि अगर विक्रमसिंघे को सत्ता का मोह नहीं है, तो महत्त्वपूर्ण मसलों पर अन्य दलों का समर्थन हासिल कर सकते हैं। मौजूदा स्थिति में राष्ट्रीय सरकार के प्रस्ताव का विरोध कोई दल नहीं करेगा। लेकिन जिन मसलों पर आम सहमति नहीं बनेगी, उनका विरोध किया जाएगा।
यूपीएफ मोटे तौर पर पूर्व राष्ट्रपति मैत्रिपला सिरिसेना की पार्टी है। इस सदी के पहले दशक में वह सत्ता में थी। लेकिन बाद में इस पार्टी के ज्यादातर बड़े नेता इससे अलग हो गए और उन्होंने श्रीलंका पोडुजना पेरामुना (एसएलपीपी) की स्थापना की, जो पिछले चुनाव में सत्ता में आई थी। विक्रमसिंघे एलएसपीपी के समर्थन से ही राष्ट्रपति बने थे। विक्रमसिंघे जुलाई 2022 में राष्ट्रपति बने थे। तब से वे देश में अहम मुद्दों पर आम सहमति बनाने की अपील करते रहे हैं।
स्थानीय और प्रांतीय चुनावों के अलावा सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों के निजीकरण का मामला भी सरकार और विपक्ष के बीच टकराव का मुद्दा बन गया है। एसजेबी ने शिकायत की है कि निजीकरण की प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं बरती जा रही है। इसमें टेंडर प्रक्रिया का पालन नहीं किया जा रहा है। पार्टी ने आरोप लगाया है कि आर्थिक सुधार लागू करने और सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के पुनर्गठन के नाम पर परदे की आड़ में डील किए जा रहे हैं।
हर्षा राजकरुणा ने शुक्रवार को आरोप लगाया कि कोलंबो पोर्ट में 14 एकड़ जमीन एक चीनी कंपनी बिना किसी टेंडर प्रक्रिया के दे दी गई। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने यह भी पहले से ही फैसला कर लिया है कि श्रीलंका टेलीकॉम और श्रीलंका इंश्योरेंस कॉरपोरेशन को किसी निजी कंपनी को सौंपा जाएगा।