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Sri Lanka: सेंट्रल बैंक को ज्यादा अधिकार देने से क्या दूर हो जाएगा श्रीलंका आर्थिक संकट?

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, कोलंबो Published by: Harendra Chaudhary Updated Mon, 27 Feb 2023 03:57 PM IST
सार

Sri Lanka: रानिल विक्रमसिंघे सरकार ने सेंट्रल बैंक की नई भूमिका तय करने के लिए प्रस्ताव कानून का मसविदा जारी किया है। इसके तहत सेंट्रल बैंक को जरूरत के मुताबिक नीति में लचीलापन लाने का अधिकार होगा। मौद्रिक और विनिमय दर संबंधी नीति बनाना पूरी तरह उसके अधिकार क्षेत्र में होगा...

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Will Sri Lanka crisis will be end by giving more rights to Central Bank?
Sri Lanka President Ranil Wickremesinghe - फोटो : Agency (File Photo)
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आर्थिक संकट से निकलने के लिए हाथ-पांव मार रही श्रीलंका सरकार ने देश के सेंट्रल बैंक के अधिकार क्षेत्र में बुनियादी बदलाव का प्रस्ताव किया है। विश्लेषकों के मुताबिक अगर यह प्रस्ताव लागू हो गया, तो सेंट्रल बैंक की भूमिका में भारी परिवर्तन आ जाएगा। मुक्त बाजार समर्थक विशेषज्ञों ने सरकार की इस पहल की आलोचना की है।

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रानिल विक्रमसिंघे सरकार ने सेंट्रल बैंक की नई भूमिका तय करने के लिए प्रस्ताव कानून का मसविदा जारी किया है। इसके तहत सेंट्रल बैंक को जरूरत के मुताबिक नीति में लचीलापन लाने का अधिकार होगा। मौद्रिक और विनिमय दर संबंधी नीति बनाना पूरी तरह उसके अधिकार क्षेत्र में होगा। मुक्त बाजार समर्थक विशेषज्ञ विनिमय दर में किसी हस्तक्षेप को गलत मानते हैं। उनकी दलील है कि श्रीलंकाई मुद्रा की कीमत को मांग और आपूर्ति के सिद्धांत के मुताबिक तय होने दिया जाना चाहिए।

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नए ड्राफ्ट में सेंट्रल बैंक के दो प्राथमिक उद्देश्य बताए गए हैं। कहा गया है कि सेंट्रल बैंक का प्रमुख मकसद घरेलू बाजार में मूल्य स्थिरता बनाए रखना होगा। उसका दूसरा मकसद वित्तीय स्थिरता हासिल करना होगा। अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर तय करने का अधिकार भी अब सेंट्रल बैंक को मिल जाएगा।

इसके पहले जब एजे जयवर्धने श्रीलंका के सेंट्रल बैंक के गवर्नर थे, तब विनिमय दर (विदेशी लेन-देन में श्रीलंकाई रुपये का मूल्य निर्धारण) तय करने की जिम्मेदारी से बैंक को मुक्त कर दिया गया था। उसके बाद से श्रीलंकाई रुपये की कीमत विनिमय बाजार की स्थितियों से तय होने लगी। सेंट्रल बैंक की भूमिका रुपये की बदलती कीमत को ध्यान में रखते हुए मुद्रास्फीति नियंत्रण करने की बन गई।

लेकिन आलोचकों का कहना है कि उस व्यवस्था के तहत भी सेंट्रल बैंक ने विदेशी मुद्रा बाजारों में हस्तक्षेप करना जारी रखा था। वह विदेशी मुद्रा की खरीदारी और बिक्री के जरिए रुपये की कीमत को प्रभावित करता था। आलोचकों का दावा है कि श्रीलंका के डिफॉल्ट (कर्ज चुकाने में अक्षम होने) करने की नौबत आने के पीछे सेंट्रल बैंक के इस रोल की भी भूमिका थी।

खुले बाजार के समर्थक विशेषज्ञों ने मांग की है कि सेंट्रल बैंक को मौद्रिक और विनिमय दर दोनों तरह की नीतियों को तय करने का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए। उन्होंने इसे परस्पर विरोधी भूमिका बताया है। अर्थशास्त्री और सांसद कबीर हाशिम ने आरोप लगाया है कि देश के नौकरशाहों ने अर्थशास्त्रियों की सलाह की अनदेखी की, जिसका खराब नतीजा हुआ। अब वही गलतियां नहीं दोहराई जानी चाहिए।

अभी लागू कानून के मुताबिक सेंट्रल बैंक को कोई खास अधिकार नहीं मिला हुआ है। सेंट्रल बैंक के गवर्नर डब्ल्यूए विजेवर्धने कह चुके हैं कि उन्हें मुद्रा छपाई के मामले में वैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं है। अर्थव्यवस्था की मांग के मुताबिक नोटों की छपाई कम या ज्यादा करने का निर्णय बैंक के अधिकार क्षेत्र से बाहर रहा है।

आर्थिक विशेषज्ञों के मुताबिक श्रीलंका में इस महंगाई की ऊंची दर को देखते हुए मुद्रा छपाई पर नियंत्रण की जरूरत है। मौजूदा हाल में भी संभावना है कि सेंट्रल बैंक बाजार पांच फीसदी और ऩोटों की छपाई करेगा। यह मौद्रिक स्थिरता वाले देशों की तुलना में लगभग ढाई गुना ज्यादा होगा। विशेषज्ञों के मुताबिक इतने नोट बाजार में आने का मतलब महंगाई का जारी रहना होगा।

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