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भ्रामक विज्ञापन: SC ने रद्द किया NCDRC का आदेश, कहा- डीलरों का हित वाहन विनिर्माता से अलग नहीं

बिजनेस डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: ‌डिंपल अलावाधी Updated Fri, 15 Oct 2021 10:58 AM IST
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सार

सुप्रीम कोर्ट ने एनसीडीआरसी के उस आदेश को रद्द किया जिसमें कार डीलर को भ्रामक विज्ञापन को लेकर सेवा में कमी के चलते मुआवजा देने का निर्देश दिया गया था। 

SC set aside order of NCDRC which directed car dealer to pay compensation for deficiency of service over a misleading advertisement
फोर्ड - फोटो : pixabay

विस्तार
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उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) के एक आदेश को रद्द कर दिया। आदेश में एक कार डीलर को भ्रामक विज्ञापन को लेकर सेवा में कमी के चलते 7.43 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया गया था। मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डीलरों का हित वाहन विनिर्माता से अलग नहीं है।

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जानिए पूरा मामला
शिकायत दर्ज करने वाले व्यक्ति ने देहरादून स्थित एबी मोटर्स प्राइवेट लिमिटेड से फोर्ड फिएस्टा (डीजल) कार खरीदी थी। शिकायतकर्ता ने कहा कि फोर्ड इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित किया। विज्ञापन में 31.4 किलोमीटर प्रति लीटर के औसत माइलेज का दावा किया गया था। लेकिन गाड़ी की वास्तविक माइलेज 15 से 16 किलोमीटर प्रति लीटर थी।
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7,43,200 रुपये का भुगतान करने का निर्देश
यह दावा करते हुए शिकायतकर्ता ने जिला उपभोक्ता फोरम के सामने केस दर्ज किया। मामले में सुनवाई हुई और इसके बाद डीलर के साथ विनिर्माता को वाहन की वापसी कर उन्हें 7,43,200 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था। इतना ही नहीं, मुकदमे की लागत के रूप में 10,000 रुपये की राशि देने का आदेश भी दिया गया था।

यह मामला यहीं खत्म नहीं हुआ। फोर्ड इंडिया ने राज्य आयोग के समक्ष अपील दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया। लेकिन बाद में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग यानी एनसीडीआरसी ने पुनरीक्षण याचिका को मंजूर किया। इस बीच डीलरों को कार की कीमत का भुगतान करने के लिए जिला उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम के दिशानिर्देशों के दायित्व के बोझ तले दबना पड़ा।

सुप्रीम कोर्ट एनसीडीआरसी के आदेश के खिलाफ डीलर द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रहा था। मामले में न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने कहा कि डीलरों का हित वाहन के विनिर्माता से अलग नहीं है। ऐसे में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत उपभोक्ता मंचों द्वारा पारित आदेश उन डीलरों के खिलाफ कायम नहीं रह सकता, जिनका हित वाहन के विनिर्माता के साथ जुड़ा है।  वास्तव में वाहन विनिर्माता से मिलता है। पीठ ने कहा कि कथित भ्रामक विज्ञापन 20 जून 2007 को जारी किया गया था, जबकि वाहन नौ मार्च 2007 को खरीदा गया था। इसलिए यह उपभोक्ता को विज्ञापन से गुमराह नहीं किया जा सकता है।

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