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Car Sales: दक्षिण अफ्रीका में बिकने वाली आधी कारों का भारत से है सीधा कनेक्शन, रिपोर्ट में बड़ा खुलासा
ऑटो डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: अमर शर्मा
Updated Wed, 31 Dec 2025 05:09 PM IST
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सार
मार्केट इंटेलिजेंस की एक फर्म की रिपोर्ट के अनुसार, 2025 में दक्षिण अफ्रीका में बिकने वाली आधी कारों का कनेक्शन भारत से है।
Auto Sales
- फोटो : Adobe Stock
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विस्तार
साल 2025 में दक्षिण अफ्रीका के ऑटोमोबाइल बाजार में भारत की भूमिका बेहद मजबूत होकर उभरी है। मार्केट इंटेलिजेंस फर्म लाइटस्टोन की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस साल दक्षिण अफ्रीका में बिकने वाली लगभग 50 प्रतिशत कारें किसी न किसी रूप में भारत से जुड़ी हुई हैं। इनमें या तो भारत की कंपनियों द्वारा बनाई गई गाड़ियां शामिल हैं या फिर ऐसे वाहन हैं जिनके प्रमुख कंपोनेंट भारत में तैयार किए गए हैं।
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महिंद्रा की मजबूत मौजूदगी, पिकअप सेगमेंट में दबदबा
रिपोर्ट में बताया गया है कि बीते एक साल के बिक्री आंकड़ों में Mahindra (महिंद्रा) ने दक्षिण अफ्रीका में खास तौर पर अपनी मजबूत पहचान बनाई है। कंपनी की Pikup (पिकअप) सीरीज को बाजार में जबरदस्त स्वीकार्यता मिली है। जिससे महिंद्रा वहां अग्रणी खिलाड़ियों में शामिल हो गई है। यह रुझान भारत-आधारित ब्रांड्स की बढ़ती विश्वसनीयता को भी दर्शाता है।
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जापानी ब्रांड्स भी भारत पर निर्भर
लाइटस्टोन के आंकड़ों के मुताबिक, 2024 में दक्षिण अफ्रीका में बिकने वाले जापानी ब्रांड के 84 प्रतिशत लाइट व्हीकल्स भारत से आयात किए गए थे। हैरानी की बात यह है कि इनमें से सिर्फ 10 प्रतिशत वाहन ही वास्तव में जापान में बने थे। इसका मतलब यह है कि जापानी ब्रांड्स भी अपनी सप्लाई चेन में भारत को एक प्रमुख उत्पादन केंद्र के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।
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रिपोर्ट में बताया गया है कि बीते एक साल के बिक्री आंकड़ों में Mahindra (महिंद्रा) ने दक्षिण अफ्रीका में खास तौर पर अपनी मजबूत पहचान बनाई है। कंपनी की Pikup (पिकअप) सीरीज को बाजार में जबरदस्त स्वीकार्यता मिली है। जिससे महिंद्रा वहां अग्रणी खिलाड़ियों में शामिल हो गई है। यह रुझान भारत-आधारित ब्रांड्स की बढ़ती विश्वसनीयता को भी दर्शाता है।
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जापानी ब्रांड्स भी भारत पर निर्भर
लाइटस्टोन के आंकड़ों के मुताबिक, 2024 में दक्षिण अफ्रीका में बिकने वाले जापानी ब्रांड के 84 प्रतिशत लाइट व्हीकल्स भारत से आयात किए गए थे। हैरानी की बात यह है कि इनमें से सिर्फ 10 प्रतिशत वाहन ही वास्तव में जापान में बने थे। इसका मतलब यह है कि जापानी ब्रांड्स भी अपनी सप्लाई चेन में भारत को एक प्रमुख उत्पादन केंद्र के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।
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चीन की मौजूदगी दिखती ज्यादा, हिस्सेदारी कम
दक्षिण अफ्रीका की सड़कों पर Haval (हेवल) और Chery (चेरी) जैसे चीनी ब्रांड्स की बढ़ती मौजूदगी से यह धारणा बनती है कि चीनी कंपनियां बिक्री में आगे हैं। हालांकि, रिपोर्ट के आंकड़े कुछ और ही कहानी बयां करते हैं। साल 2024 में चीनी आयातों की हिस्सेदारी कुल वाहन बिक्री में सिर्फ 11 प्रतिशत रही। जबकि भारत से आयातित वाहनों की हिस्सेदारी 36 प्रतिशत तक पहुंच गई थी।
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भारत से आने वाली गाड़ियां लगभग स्थानीय उत्पादन के बराबर
रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 में दक्षिण अफ्रीका में बिकने वाली 37 प्रतिशत गाड़ियां स्थानीय स्तर पर निर्मित थीं। जबकि भारत से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आयातित वाहनों की हिस्सेदारी 36 प्रतिशत रही। यानी भारत से आने वाली गाड़ियां लगभग स्थानीय उत्पादन के बराबर खड़ी नजर आईं। जो देश के ऑटो बाजार में एक बड़ा बदलाव दर्शाता है।
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दक्षिण अफ्रीका की सड़कों पर Haval (हेवल) और Chery (चेरी) जैसे चीनी ब्रांड्स की बढ़ती मौजूदगी से यह धारणा बनती है कि चीनी कंपनियां बिक्री में आगे हैं। हालांकि, रिपोर्ट के आंकड़े कुछ और ही कहानी बयां करते हैं। साल 2024 में चीनी आयातों की हिस्सेदारी कुल वाहन बिक्री में सिर्फ 11 प्रतिशत रही। जबकि भारत से आयातित वाहनों की हिस्सेदारी 36 प्रतिशत तक पहुंच गई थी।
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भारत से आने वाली गाड़ियां लगभग स्थानीय उत्पादन के बराबर
रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 में दक्षिण अफ्रीका में बिकने वाली 37 प्रतिशत गाड़ियां स्थानीय स्तर पर निर्मित थीं। जबकि भारत से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आयातित वाहनों की हिस्सेदारी 36 प्रतिशत रही। यानी भारत से आने वाली गाड़ियां लगभग स्थानीय उत्पादन के बराबर खड़ी नजर आईं। जो देश के ऑटो बाजार में एक बड़ा बदलाव दर्शाता है।
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कमर्शियल व्हीकल्स हटाएं तो भारत की हिस्सेदारी और बढ़ी
अगर पिकअप और लाइट कमर्शियल व्हीकल्स की बिक्री को आंकड़ों से अलग कर दिया जाए, तो तस्वीर और भी साफ हो जाती है। एक रिपोर्ट ने लाइटस्टोन के हवाले से बताया कि 2025 की पहली छमाही में भारत की हिस्सेदारी दक्षिण अफ्रीका के पैसेंजर व्हीकल बाजार में लगभग 50 प्रतिशत तक पहुंच गई। जनवरी से मई 2025 के बीच कुल पैसेंजर कार बिक्री में 49 प्रतिशत वाहन भारत से आयात किए गए थे।
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मारुति सुजुकी से लेकर टोयोटा तक भारत का रोल
इनमें से बड़ी संख्या में वाहन मारुति सुजुकी के भारत स्थित प्लांट्स से आते हैं। यही नहीं, भारत में बनी कई गाड़ियां जापानी ब्रांड Toyota (टोयोटा) के नाम से भी दक्षिण अफ्रीका में बेची जा रही हैं। जिनमें Starlet, Starlet Cross, Vitz और Urban Cruiser जैसे मॉडल शामिल हैं।
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अगर पिकअप और लाइट कमर्शियल व्हीकल्स की बिक्री को आंकड़ों से अलग कर दिया जाए, तो तस्वीर और भी साफ हो जाती है। एक रिपोर्ट ने लाइटस्टोन के हवाले से बताया कि 2025 की पहली छमाही में भारत की हिस्सेदारी दक्षिण अफ्रीका के पैसेंजर व्हीकल बाजार में लगभग 50 प्रतिशत तक पहुंच गई। जनवरी से मई 2025 के बीच कुल पैसेंजर कार बिक्री में 49 प्रतिशत वाहन भारत से आयात किए गए थे।
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मारुति सुजुकी से लेकर टोयोटा तक भारत का रोल
इनमें से बड़ी संख्या में वाहन मारुति सुजुकी के भारत स्थित प्लांट्स से आते हैं। यही नहीं, भारत में बनी कई गाड़ियां जापानी ब्रांड Toyota (टोयोटा) के नाम से भी दक्षिण अफ्रीका में बेची जा रही हैं। जिनमें Starlet, Starlet Cross, Vitz और Urban Cruiser जैसे मॉडल शामिल हैं।
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सस्ती लागत बनी भारत की सबसे बड़ी ताकत
लाइटस्टोन के ऑटो डेटा एनालिस्ट एंड्रयू हिबर्ट के अनुसार, भारत से वाहन आपूर्ति में तेजी की बड़ी वजह वहां मौजूद मजबूत मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम है। उन्होंने कहा कि भारत में कम श्रम लागत और कुल उत्पादन खर्च कम होने के कारण कई वैश्विक कंपनियां वहां बड़े पैमाने पर वाहन तैयार कर रही हैं और उन्हें अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भेज रही हैं।
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लाइटस्टोन के ऑटो डेटा एनालिस्ट एंड्रयू हिबर्ट के अनुसार, भारत से वाहन आपूर्ति में तेजी की बड़ी वजह वहां मौजूद मजबूत मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम है। उन्होंने कहा कि भारत में कम श्रम लागत और कुल उत्पादन खर्च कम होने के कारण कई वैश्विक कंपनियां वहां बड़े पैमाने पर वाहन तैयार कर रही हैं और उन्हें अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भेज रही हैं।
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उपभोक्ताओं को फायदा
विश्लेषकों का मानना है कि इस रुझान से दक्षिण अफ्रीका के उपभोक्ताओं को कीमतों में राहत जरूर मिल रही है। लेकिन यह स्थानीय ऑटोमोबाइल उद्योग के लिए चिंता का विषय भी है। उन्होंने 2009 के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि उस समय दक्षिण अफ्रीका में बिकने वाली लगभग आधी लाइट व्हीकल स्थानीय स्तर पर बनी होती थीं। और भारत से आने वाले वाहनों की हिस्सेदारी सिर्फ 5 प्रतिशत थी। मौजूदा स्थिति यह दिखाती है कि बीते डेढ़ दशक में बाजार की दिशा पूरी तरह बदल चुकी है।
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विश्लेषकों का मानना है कि इस रुझान से दक्षिण अफ्रीका के उपभोक्ताओं को कीमतों में राहत जरूर मिल रही है। लेकिन यह स्थानीय ऑटोमोबाइल उद्योग के लिए चिंता का विषय भी है। उन्होंने 2009 के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि उस समय दक्षिण अफ्रीका में बिकने वाली लगभग आधी लाइट व्हीकल स्थानीय स्तर पर बनी होती थीं। और भारत से आने वाले वाहनों की हिस्सेदारी सिर्फ 5 प्रतिशत थी। मौजूदा स्थिति यह दिखाती है कि बीते डेढ़ दशक में बाजार की दिशा पूरी तरह बदल चुकी है।
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