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NH: हाईवे पर हादसों पर सख्ती, राजमार्ग पर बार-बार होने वाली दुर्घटनाओं के लिए ठेकेदारों पर लगेगा जुर्माना
ऑटो डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: अमर शर्मा
Updated Mon, 03 Nov 2025 10:55 AM IST
सार
सड़क हादसों को रोकने और लोगों की जान बचाने के लिए सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने एक बड़ा कदम उठाया है। अब अगर किसी नेशनल हाईवे के एक ही हिस्से पर साल में एक से ज्यादा हादसे होते हैं, तो उस सड़क के ठेकेदार को भारी जुर्माना भरना पड़ेगा।
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Road Accident
- फोटो : Amar Ujala
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विस्तार
सड़क हादसों को रोकने और लोगों की जान बचाने के लिए सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने एक बड़ा कदम उठाया है। अब अगर किसी नेशनल हाईवे के एक ही हिस्से पर साल में एक से ज्यादा हादसे होते हैं, तो उस सड़क के ठेकेदार को भारी जुर्माना भरना पड़ेगा। यह नियम खास तौर पर उन सड़कों पर लागू होगा जो बिल्ट-ऑपरेट-ट्रांसफर (BOT) (बीओटी) मॉडल के तहत बनी हैं।
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बार-बार हादसों पर लगेगा जुर्माना
राजमार्ग सचिव वी. उमाशंकर ने बताया कि मंत्रालय ने बीओटी प्रोजेक्ट के नियमों में बदलाव किया है। अब ठेकेदारों को "क्रैश मैनेजमेंट" यानी हादसों की रोकथाम और सुधार के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।
अगर किसी हाईवे के 500 मीटर के हिस्से पर एक साल में एक से ज्यादा हादसे होते हैं, तो ठेकेदार पर 25 लाख रुपये का जुर्माना लगेगा। अगर अगले साल फिर से हादसा होता है, तो यह जुर्माना 50 लाख रुपये तक बढ़ जाएगा।
अभी मंत्रालय के पास देशभर में लगभग 3,500 ऐसे ब्लैक स्पॉट हैं, जहां हादसे बार-बार होते हैं।
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राजमार्ग सचिव वी. उमाशंकर ने बताया कि मंत्रालय ने बीओटी प्रोजेक्ट के नियमों में बदलाव किया है। अब ठेकेदारों को "क्रैश मैनेजमेंट" यानी हादसों की रोकथाम और सुधार के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।
अगर किसी हाईवे के 500 मीटर के हिस्से पर एक साल में एक से ज्यादा हादसे होते हैं, तो ठेकेदार पर 25 लाख रुपये का जुर्माना लगेगा। अगर अगले साल फिर से हादसा होता है, तो यह जुर्माना 50 लाख रुपये तक बढ़ जाएगा।
अभी मंत्रालय के पास देशभर में लगभग 3,500 ऐसे ब्लैक स्पॉट हैं, जहां हादसे बार-बार होते हैं।
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अलग-अलग मॉडल पर बनते हैं हाईवे
भारत में राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाएं कई मॉडल्स पर बनाई जाती हैं-
BOT और HAM प्रोजेक्ट्स में ठेकेदार को सड़क के रखरखाव की जिम्मेदारी दी जाती है, जो आमतौर पर 15 से 20 साल तक के लिए होती है।
EPC प्रोजेक्ट्स में रखरखाव की अवधि कम होती है। बिटुमिनस सड़कों के लिए 5 साल और कंक्रीट सड़कों के लिए 10 साल।
इसके अलावा, TOT (टोल-ऑपरेट-ट्रांसफर) और InvIT प्रोजेक्ट्स में मेंटेनेंस की अवधि 20 से 30 साल तक होती है। जबकि OMT (ऑपरेट-मेंटेन-ट्रांसफर) प्रोजेक्ट्स के लिए यह समय 9 साल होता है।
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भारत में राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाएं कई मॉडल्स पर बनाई जाती हैं-
- BOT (बिल्ट-ऑपरेट-ट्रांसफर)
- HAM (हाइब्रिड एन्युटी मॉडल)
- EPC (इंजीनियरिंग, प्रोक्यूरमेंट, कंस्ट्रक्शन)
BOT और HAM प्रोजेक्ट्स में ठेकेदार को सड़क के रखरखाव की जिम्मेदारी दी जाती है, जो आमतौर पर 15 से 20 साल तक के लिए होती है।
EPC प्रोजेक्ट्स में रखरखाव की अवधि कम होती है। बिटुमिनस सड़कों के लिए 5 साल और कंक्रीट सड़कों के लिए 10 साल।
इसके अलावा, TOT (टोल-ऑपरेट-ट्रांसफर) और InvIT प्रोजेक्ट्स में मेंटेनेंस की अवधि 20 से 30 साल तक होती है। जबकि OMT (ऑपरेट-मेंटेन-ट्रांसफर) प्रोजेक्ट्स के लिए यह समय 9 साल होता है।
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सड़क हादसे पीड़ितों के लिए कैशलेस इलाज योजना
सरकार अब सड़क हादसे के शिकार लोगों के लिए कैशलेस इलाज योजना को पूरे देश में लागू करने जा रही है। इस योजना के तहत, किसी भी सड़क हादसे के पीड़ित को पहले 7 दिनों तक 1.5 लाख रुपये तक का इलाज देशभर के तय किए गए अस्पतालों में बिना किसी भुगतान के मिलेगा।
यह योजना मई 2025 में अधिसूचित की गई थी और इसका मकसद सड़क हादसों में होने वाली मौतों को कम करना है। खासकर तब, जब इलाज में देरी से जान चली जाती है।
इससे पहले मार्च 2024 में यह योजना चंडीगढ़ में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू की गई थी, और बाद में इसे छह राज्यों तक बढ़ाया गया।
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यह योजना मई 2025 में अधिसूचित की गई थी और इसका मकसद सड़क हादसों में होने वाली मौतों को कम करना है। खासकर तब, जब इलाज में देरी से जान चली जाती है।
इससे पहले मार्च 2024 में यह योजना चंडीगढ़ में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू की गई थी, और बाद में इसे छह राज्यों तक बढ़ाया गया।
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सरकार का उद्देश्य
सरकार चाहती है कि सड़कें न सिर्फ तेज और बेहतर हों, बल्कि सुरक्षित भी रहें। बार-बार हादसे होने वाले हिस्सों पर ठेकेदारों की जवाबदेही तय करने से सुरक्षा पर ध्यान बढ़ेगा। साथ ही, हादसे के शिकार लोगों को तुरंत इलाज मिलने से उनकी जान बचाने की संभावना भी बढ़ेगी।
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सरकार चाहती है कि सड़कें न सिर्फ तेज और बेहतर हों, बल्कि सुरक्षित भी रहें। बार-बार हादसे होने वाले हिस्सों पर ठेकेदारों की जवाबदेही तय करने से सुरक्षा पर ध्यान बढ़ेगा। साथ ही, हादसे के शिकार लोगों को तुरंत इलाज मिलने से उनकी जान बचाने की संभावना भी बढ़ेगी।
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