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Bihar: सीताकुंड वेदी पर बालू की कमी, तीर्थयात्रियों को पिंडदान के लिए खरीदना पड़ रहा बालू
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, गया जी
Published by: आशुतोष प्रताप सिंह
Updated Sun, 14 Sep 2025 12:00 PM IST
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सार
सीताकुंड वेदी पर पितृपक्ष मेला के दौरान पिंडदान करने वाले तीर्थयात्रियों को बालू नहीं मिलने के कारण मजबूरी में दुकानों से बालू खरीदना पड़ रहा है। फल्गु नदी पर बने रबर डैम के कारण पानी भरा होने के कारण नदी से बालू निकालना संभव नहीं है।

तीर्थयात्रियों को पिंडदान के लिए बालू खरीदने की मजबूरी
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
मोक्ष की नगरी गया जी के फल्गु नदी के पूर्वी तट पर स्थित सीताकुंड वेदी पर इस बार पितृपक्ष मेला के दौरान तीर्थयात्रियों को पिंडदान के लिए बालू खरीदना पड़ रहा है। दरअसल, फल्गु नदी पर रबर डैम बनने के कारण नदी में पानी भर गया है और तीर्थयात्री और पिंडदानी नदी से बालू निकालने में असमर्थ हैं।
स्थानीय दुकानदारों ने बताया कि वे सीताकुंड के पास बालू बेच रहे हैं। दस रुपये प्रति बालू के हिसाब से दिनभर में लगभग 300 से 500 रुपये की बिक्री होती है। दुकानदारों के अनुसार, यह परंपरा इसलिए है क्योंकि धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि भगवान राम अपने पिता राजा दशरथ के पिंडदान के लिए माता सीता के साथ सीताकुंड आए थे और पिंडदान के लिए बालू का उपयोग किया था।
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तीर्थयात्रियों ने बताया कि वे देश और विदेश से पिंडदान के लिए आए हैं। पहले नदी का पानी कम होने के कारण बालू आसानी से मिलता था, लेकिन अब डैम के कारण पानी भरा है, इसलिए उन्हें मजबूरी में दुकानों से बालू खरीदना पड़ रहा है। उन्होंने जिला प्रशासन से बालू की बेहतर व्यवस्था की मांग की है। सीताकुंड पर पिंडदान करा रहे आचार्य रवि कुमार ने बताया कि माता सीता ने यहीं पर भगवान राम के साथ राजा दशरथ का बालू का पिंड बनाकर पिंडदान किया था। इसलिए आज भी सभी पिंडदानी इसी बालू का उपयोग करते हैं और यह परंपरा लगातार चलती आ रही है।

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स्थानीय दुकानदारों ने बताया कि वे सीताकुंड के पास बालू बेच रहे हैं। दस रुपये प्रति बालू के हिसाब से दिनभर में लगभग 300 से 500 रुपये की बिक्री होती है। दुकानदारों के अनुसार, यह परंपरा इसलिए है क्योंकि धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि भगवान राम अपने पिता राजा दशरथ के पिंडदान के लिए माता सीता के साथ सीताकुंड आए थे और पिंडदान के लिए बालू का उपयोग किया था।
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तीर्थयात्रियों ने बताया कि वे देश और विदेश से पिंडदान के लिए आए हैं। पहले नदी का पानी कम होने के कारण बालू आसानी से मिलता था, लेकिन अब डैम के कारण पानी भरा है, इसलिए उन्हें मजबूरी में दुकानों से बालू खरीदना पड़ रहा है। उन्होंने जिला प्रशासन से बालू की बेहतर व्यवस्था की मांग की है। सीताकुंड पर पिंडदान करा रहे आचार्य रवि कुमार ने बताया कि माता सीता ने यहीं पर भगवान राम के साथ राजा दशरथ का बालू का पिंड बनाकर पिंडदान किया था। इसलिए आज भी सभी पिंडदानी इसी बालू का उपयोग करते हैं और यह परंपरा लगातार चलती आ रही है।