Bihar News : रासायनिक पानी से जमीन खराब, फसल चौपट, घर-आंगन में भी मुसीबत; रिफाइनरी के बांध से नहीं रुक रही आफत
Waste Management : बिहार अभी उद्योग के मामले में पिछड़ा है तो औद्योगिक कचरे का निस्तारण मुसीबत बना हुआ है। आम लोगों की परेशानी की जानकारी पर 'अमर उजाला' की टीम ने ऐसे ही एक क्षेत्र की जमीनी हालत देखी।
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रसायनों का दुर्गंध लोगों को कितना बीमार कर सकता है, इसका अंदाजा इस समय पूरी दुनिया को लग रहा है। देश की राजधानी दिल्ली ने पिछले दिनों प्रदूषण की एक बड़ी चोट झेली। इस समय भी परेशान है। ऐसे में यह खबर इसलिए भी, क्योंकि बिहार की नई सरकार ने राज्य में उद्योगों को बढ़ावा देने की राह पकड़ ली है। उद्योगों के जरिए रोजगार तो आए, लेकिन स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ने से बचाने के लिए औद्योगिक कचरे के निस्तारण पर साथ-साथ काम जरूरी है। इस जरूरत को दिखा रही बिहार के औद्योगिक जिला बेगूसराय की यह खबर। यहां रासायनिक पानी से जमीन खराब हो रही। पौधे छोड़िए, पेड़ भी सूख रहे। फसल तो चौपट हो रही है। घर-आंगन तक में पानी पहुंच गया है। किसानों के तालाब में पानी जाने से मछलियां भी मर रही हैं। मतलब, हर तरह का संकट है।
रिफाइनरी का दावा- हमारा पानी नहीं; दुर्गंध इस दावे की पोल खोल रही
इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड का दावा है कि वह रासायनिक पानी नहीं छोड़ता है। बरौनी रिफाइनरी क्षेत्र का वर्षा जल भी संचयित होकर एक बांध के अंदर तालाब में रहता है। लेकिन, जमीनी हकीकत कुछ और स्थिति बयां कर रही है। रासायनिक पानी से स्थानीय निवासी और किसान परेशान हो रहे हैं। रिफाइनरी से सटे पपरौर के करीब 50 घरों के आंगन तक रसायन-युक्त पानी पहुंच गया है। खेत से लेकर रिहायशी इलाके तक, करीब चार किलोमीटर की दूरी तक 'अमर उजाला' टीम ने घूम-घूम कर समझा कि आखिर परेशानी कहां से शुरू होकर कहां तक जा रही है? सबसे बड़ी बात यह कि भले ही रिफाइनरी कह रहा है कि यह उसका पानी नहीं, लेकिन इसका जहां से जहां तक विस्तार है- दुर्गंध सामान्य नाले की सड़ांध जैसी नहीं।
100 बीघा प्रभावित, किसानों का दावा- एक बार मुआवजा दिया गया था
किसानों के खेत जहां अभी भी पानी है, पेड़ सूख रहे हैं। मछलियां तालाब में मरी हुई नजर आ रही हैं। सब्जी उपजाने वाले किसान आठ-आठ आंसू रो रहे हैं। पौधों की कौन कहे, आम-महोगनी के पेड़ सूख रहे हैं। स्थानीय किसानों का कहना है कि इस साल अत्यधिक पानी के कारण नुकसान ज्यादा हुआ है। लोगों ने कहा कि भूतपूर्व सांसद स्व. भोला सिंह के कार्यकाल में एक बार ऐसी विकराल समस्या आई थी तो रिफाइनरी प्रबंधन ने मुआवजा राशि भी दी थी। वैसे, अमूमन रिफाइनरी इसे अपना पानी मानने से ही इनकार करता है। पपरौर के मुखिया प्रतिनिधि अरविंद कुमार राय ने बताया पंचायत के रिहायशी इलाकों में रिफाइनरी का छोड़ा गया पानी है। रिफाइनरी की टैंक सफाई से छोड़ दिए गए पानी से जलजमाव की स्थिति बनी। पपरौर इलाके में करीब 50 बीघे और बीहट में करीब 50 बीघा भूमि में फसल को नुकसान पहुंचा है। रिफाइनरी तक बात पहुंचाई गई तो ह्यूम पाइप टाइप का उपयोग कर पानी को रोकने का प्रयास तो किया गया, लेकिन मौजूदा जल-निकासी और किसानों के मुआवजा पर ध्यान नहीं दिया गया।
रिफाइनरी ने जिस बांध की बात कही, उसका हाल भी दिखा
रिफाइनरी जहां इस रासायनिक दुर्गंध वाले पानी को अपना मानने से इनकार कर रहा है, वहीं आम ग्रामीणों का कहना है कि इसके लिए राज्य सरकार इस जल की जांच कराए। इस इलाके में और कोई औद्योगिक उपक्रम नहीं है और किसानों के खेत में आसमान से यह रासायनिक पानी आया नहीं होगा, इसलिए इसकी जांच से ही हकीकत सामने आ जाएगी। रिफाइनरी जिस बांध की बात करता है, 'अमर उजाला' को किसान उस जगह तक लेकर गए। यहां एक जगह पर साफ दिखा कि टूटे हिस्से से रिसता हुआ पानी किसानों के तालाब-जमीन की ओर आ रहा है। बोरा डालकर रोकने का प्रयास यहां बेकार नजर आ रहा है। बीहट के किसान डोमन सिंह कहते हैं यह पानी अभी कम है, कुछ समय पहले तक खूब धारा में आ रहा था। किसान पप्पू सिंह ने इस बात को आगे बढ़ाते हुए पानी में ताजा हकीकत और मोबाइल में पड़े पुराने वीडियो को दिखाते हुए कहा कि इसी के कारण दो बीघे के तालाब की उनकी मछलियां मर गईं।
(ग्राउंड इनपुट- घनश्याम देव, बेगूसराय)