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Bihar News: सोनपुर मेला में रेत की अद्भुत दुनिया, मधुरेंद्र कुमार ने 50 प्रतिमाओं से बनाया विश्व रिकॉर्ड

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, सोनपुर Published by: आशुतोष प्रताप सिंह Updated Sun, 14 Dec 2025 05:54 PM IST
सार

मुंगेर के अंतरराष्ट्रीय रेत शिल्पकार मधुरेंद्र कुमार ने सोनपुर मेला 2025 में 50 अद्वितीय रेत प्रतिमाओं का निर्माण कर एशियन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में अपनी जगह बनाई।

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Madhurendra Kumar sets world record at Sonepur fair, creates new art example with 50 sand sculptures
सोनपुर मेला में कला का नया इतिहास - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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एशिया के सबसे बड़े और ऐतिहासिक सोनपुर मेला में इस वर्ष बिहार के अंतरराष्ट्रीय रेत शिल्पकार मधुरेंद्र कुमार ने कला के क्षेत्र में नया कीर्तिमान स्थापित किया है। पौराणिक गज–ग्राह युद्ध और भगवान विष्णु द्वारा सुदर्शन चक्र से ग्राह वध की कथा पर आधारित 50 अद्वितीय रेत प्रतिमाओं का निर्माण कर मधुरेंद्र कुमार ने ऐसा विश्व रिकॉर्ड बनाया है, जिसे एशियन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने आधिकारिक मान्यता प्रदान की है।

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एशियन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के इंटरनेशनल चेयरमैन अविनाश डी. सुकुंदे ने ई-मेल के माध्यम से मधुरेंद्र कुमार को बधाई देते हुए कहा कि उनकी मेहनत, समर्पण और रचनात्मकता ने कला जगत में उत्कृष्टता का नया मानदंड स्थापित किया है। संगठन की ओर से उपलब्धि प्रमाण पत्र, पदक और स्मृति चिह्न डाक द्वारा भेजे गए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सोनपुर मेला के लंबे इतिहास में पहली बार किसी सैंड आर्टिस्ट को ऐसा अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुआ है, जो बिहार के लिए गौरव की बात है।

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गौरतलब है कि वर्ष 2025 में भी मधुरेंद्र कुमार ने सोनपुर मेला में 150 टन बालू से 20 फीट ऊंची और 50 फीट लंबी विराट रेत प्रतिमा का निर्माण किया था, जिसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया था। यह प्रतिमा गज–ग्राह युद्ध पर आधारित थी और एशिया की सबसे विशाल प्रदर्शित रेत कृतियों में शामिल की जाती है, जिसमें बिहार सरकार का आधिकारिक लोगो भी अंकित था।

05 सितंबर 1994 को जन्मे मधुरेंद्र कुमार की कला यात्रा बचपन से ही प्रारंभ हो गई थी। महज तीन वर्ष की आयु में उनकी प्रतिभा सामने आ गई थी। वर्ष 2005 से सोनपुर मेला में सैंड आर्ट के माध्यम से उन्होंने इस कला को नई पहचान दिलाई। उनकी इस उपलब्धि से न केवल सोनपुर मेला का गौरव बढ़ा है, बल्कि बिहार की कला और संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय मंच पर नई पहचान भी मिली है।


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