Bihar Election 2025 : इंडी न महागठबंधन... कांग्रेस बिहार में अपनी सरकार बना रही! 70 सीटों की जिद इसी कारण


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अगले महीने बिहार विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होगी। अक्टूबर अंत से लेकर 20 नवंबर के बीच बिहार चुनाव होगा। यह लगभग तय है। ऐसे में राजनीतिक गठबंधनों के अंदर सीटों को लेकर विचार अब आकार ले चुका है। दोनों पक्ष कह रहे कि अंदर सबकुछ ठीक है। लेकिन, जनता तो ठीक नहीं देख रही। लोकसभा चुनाव में बिहार के अंदर विपक्षी दल महागठबंधन की नाव पर सवार थे। पतवार तेजस्वी यादव के हाथ में रही।
लोकसभा चुनाव में सीट बंटवारे में मार खाई कांग्रेस बिहार चुनाव में विपक्ष की बागडोर संभालने के लिए इस साल के शुरू से ही लग गई थी। संकेतों को 'अमर उजाला' ने अप्रैल में ही समझाया था। अब भी कांग्रेस उसी राह है। दिल्ली में राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे के साथ बैठे बिहार के कांग्रेसियों ने 70 सीटों से कम पर कोई बात नहीं मानने की जिद बता दी। कांग्रेस ने महागठबंधन से बाहर के दलों को भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन (Indian National Developmental Inclusive Alliance- INDIA) में शामिल करा लिया। और तो और, बिहार में कांग्रेस का विज्ञापन भी कह रहा- बिहार में कांग्रेस सरकार यह देगी, वह देगी। ऐसे में यह समझना जरूरी है कि कांग्रेस किस राह चल रही है?
70 सीटों पर लड़ी थी कांग्रेस, 19 जीती थी, चार पर जमानत जब्त
बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस I.N.D.I.A. को सामने खड़ा कर दिया है। 'महागठबंधन' का नाम उसने धीरे-धीरे घटाते हुए इस नाम को आगे बढ़ाया और वाजिब तौर पर इसका नेतृत्व कांग्रेस करता है। कांग्रेस नेताओं की मानें तो बिहार चुनाव में तेजस्वी यादव को आगे रख भी रही है, लेकिन I.N.D.I.A. का नेतृत्व उनके हाथ में नहीं दिया जा रहा है। यही कारण है कि तेजस्वी यादव का नाम राहुल गांधी ने पूछे जाने पर भी नहीं लिया। खैर, जानने वाली बात फिलहाल यह है कि सीटों पर कांग्रेस की जिद के बीच उसका वास्तव में दावा कितना मजबूत है?
कांग्रेस ने 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व वाले महागठबंधन के अंदर रहकर 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था। उसमें से 19 पर जीत मिली थी। चार पर जमानत जब्त हुई थी। क्षेत्रीय दल राजद ने 144 में से 75 सीटें जीती थीं और लड़ी हुई सीटों पर उसका वोट प्रतिशत 38.96 प्रतिशत था। राष्ट्रीय दल कांग्रेस का लड़ी हुई सीटों पर वोट प्रतिशत 32.91 प्रतिशत था। इस हिसाब से देखें तो राजद के मुकाबले कांग्रेस बहुत पिछड़ी स्थिति में नहीं थी। राजद-जदयू-वामदलों या भाजपा के मुकाबले कमजोर कैडर के बावजूद कांग्रेस का लड़ी हुई सीटों पर वोट प्रतिशत ठीक था। 70 सीटों की जिद के पीछे यह कारण तो है ही, एक बड़ा कारण इस साल राहुल गांधी ने खड़ा किया है।
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राहुल गांधी ने तेजस्वी यादव के हाथ से पतवार कैसे अपने पास ली?
लोकसभा चुनाव में राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने सीट बंटवारे से पहले ही अपना प्रत्याशी घोषित करते हुए उन्हें चुनाव चिह्न देकर क्षेत्र भेज दिया था। ऐसा एक नहीं, कई मामलों में हुआ। यहां तक कि कांग्रेस में आने के लिए अपनी पार्टी का नामोनिशान खत्म करने वाले राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव की पूर्णिया सीट पर दावेदारी भी राजद ने छीन ली थी। पप्पू यादव ने महागठबंधन और सरकार के खिलाफ निर्दलीय खड़े होकर पूर्णिया लोकसभा सीट खाते में कर ली। लोकसभा चुनाव में ऐसी कहानियों से सीख लेते हुए कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव की तैयारियां समय से पहले शुरू कर दी। बात तैयारियों से आगे की है, यह पिछले दिनों वोटर अधिकार यात्रा में कांग्रेस ने दिखा दिया।
बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने बिहार में निर्वाचन आयोग की ओर से हो रहे मतदाताओं के विशेष गहन पुनरीक्षण का मुद्दा उठाया। कांग्रेस ने धीरे से उसे अपना मुद्दा बना लिया। पहले राहुल गांधी ने वोटर अधिकार यात्रा निकालने का एलान किया। शुरुआत में तेजस्वी यादव को आगे रखा। जब भीड़ देख उत्साहित हुए तो बहन प्रियंका गांधी को बुला लिया। फिर I.N.D.I.A. के बाकी दलों के नेताओं को जगह देते गए। वोटर अधिकार यात्रा के अंतिम दिन तो पूरे पटना के पोस्टर-बैनर दिखा रहे थे कि यह कार्यक्रम सिर्फ कांग्रेस का है। मंच पर तेजस्वी यादव भी थे, लेकिन कांग्रेस का प्रभाव साफ दिख रहा था। मतलब, राहुल गांधी ने तेजस्वी यादव के हाथ से पतवार धीरे-धीरे अपने पास ले ली। यह अलग बात है कि कांग्रेस के पास सीएम का चेहरा के रूप में अब भी तेजस्वी यादव का विकल्प कोई नहीं है।
विज्ञापनों में सिर्फ एक बात- बिहार में आ रही कांग्रेस सरकार
बिहार विधानसभा चुनाव के हिसाब से राजनीतिक दलों के विज्ञापन आने लगे हैं। यह जनता के बीच है। कांग्रेस पिछले करीब तीन महीने से इसपर काम कर रही है। कांग्रेस के विज्ञापन में कहीं भी महागठबंधन या I.N.D.I.A. की चर्चा नहीं दिख रही। कांग्रेस सीधे कह रही कि बिहार में कांग्रेस सरकार बनाएगी तो यह होगा, वह होगा। 'अमर उजाला' ने इस बारे में कांग्रेस नेताओं से समझना चाहा तो बचाव के लिए यह कहा गया कि यह विज्ञापन कांग्रेस शासित राज्यों की उपलब्धियों को दिखाते हुए उस मॉडल को बिहार में लाने के लिए है और उन्हीं राज्यों के खाते से यह आ रहा है- इसलिए ऐसा है। ऐसे में सवाल यह भी है कि कांग्रेस शासित राज्यों से कद्दावर कांग्रेसी भी अगर यह विज्ञापन खर्च रहे हैं तो क्या उन्हें बिहार में गठबंधन की जानकारी नहीं है? निश्चित तौर पर है। वह वोटर अधिकार यात्रा में भी यह देख चुके हैं। लेकिन, फिर भी कांग्रेस का बिहार में यही विज्ञापन चल रहा है।