Bihar Oath: कर्पूरी ठाकुर का आशीर्वाद व 50 साल की यात्रा, फिर मंत्री बने श्रवण कुमार; नीतीश के हैं पुराने साथी
Bihar Oath Ceremony: 2014 से लगातार मंत्री पद संभाल रहे श्रवण कुमार को नीतीश मंत्रिमंडल में एक बार फिर जगह मिली है। उनकी यात्रा साबित करती है कि लगन, कर्मठता और जनता से जुड़ाव राजनीति में किसी भी व्यक्ति को शीर्ष तक पहुंचा सकता है।
विस्तार
बिहार की राजनीति में मंत्री श्रवण कुमार का नाम संघर्ष, सादगी, समर्पण और जनसेवा का प्रतीक है। 1974 के जेपी आंदोलन से शुरू हुई उनकी राजनीतिक यात्रा आज तक बिना रुके आगे बढ़ रही है। हजारीबाग जेल में जननायक कर्पूरी ठाकुर के सानिध्य में राजनीति के आदर्शों को समझने वाले श्रवण कुमार ने पूरी जिंदगी इसी विचारधारा को आधार बनाया।
कर्पूरी ठाकुर का मार्गदर्शन और 2400 वोटों का सबक
1985 में लोकदल के टिकट पर नालंदा से उपचुनाव लड़ते समय उन्हें मात्र 2400 वोट मिले और वे हार गए। निराश होकर वे कर्पूरी ठाकुर से मिलने नहीं गए। जब जननायक ने बुलाया तो जीवन का सबसे बड़ा सबक दिया। पार्टी टिकट चुनाव जीतने के लिए नहीं, नेता बनाने के लिए देते हैं। जिन 2400 लोगों ने विपरीत परिस्थिति में वोट दिया, वही आपके असली समर्थक हैं। एक दिन यही लोग आपको विधायक बनाएंगे। यहीं से उनकी राजनीतिक ऊर्जा और समर्पण की नई शुरुआत हुई।
संघर्ष से लोकप्रियता तक का सफर
हार के बावजूद श्रवण कुमार गांव-गांव घूमकर समस्याएं उठाते रहे। 1990 में जनता दल के टिकट पर 50 हजार से अधिक वोट मिले, हालांकि निर्दलीय रामनरेश सिंह से हार गए। 1993 में उनके प्रयास से लालू प्रसाद यादव ने बेन को ब्लॉक का दर्जा दिया, जिससे उनकी पहचान और मजबूत हुई।
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नीतीश कुमार के विश्वसनीय साथी बने
1994 में नीतीश कुमार व जॉर्ज फर्नांडीज के नई पार्टी बनाने पर उन्होंने जनता दल बिहार के महासचिव पद से इस्तीफा देकर समता पार्टी का दामन थाम लिया। 1995 में उन्होंने नालंदा से 44,000 वोटों से जीत हासिल की। तब से वे नीतीश कुमार के सबसे भरोसेमंद साथियों में गिने जाते हैं। 2005 में नीतीश सरकार बनने के बाद वे जेडीयू के मुख्य सचेतक रहे।
मंत्री पद की उठापटक और भूमिका
2005 में मंत्री न बनाए जाने और 2014 में मांझी मंत्रिमंडल में शुरुआत में जगह न मिलने पर उन्होंने सरकारी वाहन लौटा दिया था। मंत्रिमंडल के विस्तार में उन्हें ग्रामीण कार्य, ग्रामीण विकास एवं संसदीय कार्य विभाग मिला। उन्होंने ग्रामीण कार्य विभाग का पूरा बजट खर्च करवा कर एक भी पैसा सरेंडर नहीं होने दिया। नालंदा में 13 बड़े पुलों समेत कई संरचनाओं को मंजूरी मिली।
सादगी और जनसरोकार की पहचान
कृषक परिवार से आने वाले श्रवण कुमार आज भी बेन में अपनी पैतृक भूमि से जुड़े हैं। तीन बहनें (एक स्वास्थ्य विभाग से सेवानिवृत्त, दो शिक्षिका), दो बेटियां और एक बेटा—सभी पढ़ाई कर रहे हैं। वे हर दल–जाति–धर्म के लोगों की समस्याएं सुनने और समाधान कराने के लिए जाने जाते हैं। गरीब, दलित और मध्यम वर्ग उनका मजबूत आधार है। हर कठिन परिस्थिति में नीतीश कुमार महत्वपूर्ण जिम्मेदारी उन्हें ही सौंपते हैं।
इनपुट : सूरज कुमार, नालंदा