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Bihar Bhumi : बिहार में किसकी जमीन खोद रहे विजय सिन्हा? वह चार काम, जिसमें काली कमाई के नाम पर मचा हंगामा

सार

Land Bihar : बिहार में जमीन रखना, खरीदना, अपने नाम कराना और यहां तक कि अपने परिवार की जमीन को बांटना तक मुश्किल है। मुश्किल इसलिए, क्योंकि हर काम में 'पैसा' लगता है। टेबल के नीचे से। बिहार में अंडर टेबल पैसों का यह खेल इस समय चर्चा में क्यों है? क्यों है हंगामा, क्या समाधान हो रहा, जानें सबकुछ। 

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बिहार के उप मुख्यमंत्री विजय सिन्हा ने राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग की कमान संभालते ही मचाया हड़कंप। - फोटो : अमर उजाला डिजिटल
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विस्तार
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बिहार में सबसे ज्यादा हत्याएं जमीन के विवाद में होती हैं- यह एनसीआरबी की रिपोर्ट में कई बार आ चुका है। फिर भी जमीन विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। राज्य की नीतीश कुमार सरकार ने इसपर कई बार कई तरह के फैसले लिए, लेकिन समाधान नहीं निकला। इस बार राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग की कमान संभालने वाले उप मुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने 'समस्याओं की जड़' पकड़ ली है। अपने ही विभागीय सिस्टम को सुधारने में ऐसे जुटे हैं कि आंदोलन शुरू हो गया है। एक तरफ विभागीय अधिकारी-कर्मी डरे हुए हैं तो दूसरी तरफ डर नहीं दिखाने के लिए आंदोलन भी कर रहे हैं। मगर, सामने सिन्हा दूसरे मोड में हैं। आज भी एक सीओ को निलंबित कर दिया है। इस स्टोरी में हम जनता को सीधे प्रभावित कर रहे उन चार कारणों को समझेंगे, जिसे सुधारने के कारण हंगामा हो रहा है। पहले जानें कि हंगामा क्यों है बरपा आखिर?

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विजय कुमार सिन्हा ने क्या किया, जो हंगामा यूं है बरपा?
दरअसल, उप मुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा को राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग की जिम्मेदारी मिली तो उन्होंने जिलों में जनसंवाद कार्यकम शुरू कर दिया। अधिकारियों के सामने जनता को रखकर। इस के दौरान अंचल अधिकारियों से लेकर राजस्व कर्मचारी तक की कारस्तानी सामने आ रही है। विजय कुमार सिन्हा ने जनसंवाद के दौरान ही अधिकारियों को सस्पेंड भी किया। वैसे उन्हें चेतावनी तो लगातार दे रहे हैं। विजय कुमार सिन्हा के गुस्से की एक बड़ी वजह यह भी रही कि दाखिल-खारिज अटकाने के लिए 10 कुख्यात जिलों में उनके गृह जिले लखीसराय का भी नाम है और पटना का भी। पटना और लखीसराय के अलावा भोजपुर, मधेपुरा, अररिया, रोहतास, भागलपुर, वैशाली, सहरसा और मुंगेर को टॉप 10 में राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग की जांच के बाद आई रिपोर्ट में ही रखा गया था। फरियादी हर जिले से अपने विधायकों के जरिए मंत्री तक जमीन से जुड़ी समस्याएं लेकर आ रहे थे। 
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किसने शुरू किया हंगामा, किस बात पर जताई आपत्ति?
ऐसे में विजय कुमार सिन्हा ने जन-संवाद शुरू किया तो जनता ने पोल खोलनी शुरू कर दी। इसी पर चेतावनी और कार्रवाई का दौर शुरू हो गया। अब इसी बात को अब मुद्दा बनाकर राजस्व विभाग के जितने भी अंचल अधिकारी और राजस्व सेवा के अधिकारी हैं, उन्होंने मंत्री के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया है। राजस्व सेवा संघ का कहना है कि "राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री की ओर से सार्वजनिक मंचों और सोशल मीडिया पर अधिकारियों के विरूद्ध अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया जा रहा है। संघ का आरोप है कि लोकप्रियता एवं तात्कालिक तालियों की अपेक्षा में प्रशासनिक मर्यादाओं, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत, संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 21 की भावना के प्रतिकूल, संवैधानिक प्रक्रियाओं तथा सेवा नियमों को दरकिनार किया जा रहा है। राजस्व सेवा संघ ने कहा है कि "खड़े-खड़े सस्पेंड कर देंगे", "यहीं जनता के सामने जवाब दो", "स्पष्टीकरण लो और तुरंत कार्रवाई करो", "ऑन द स्पॉट फैसला होगा" जैसे संवाद किसी संवैधानिक लोकतंत्र के अनुरूप नहीं हैं। यह भाषा न तो प्रशासनिक विवेक का परिचायक है और न ही विधि के शासन (Rule of Law) की। राजस्व विभाग की वर्तमान जन संवाद, फील्ड ट्रायल, ड्रमहेड कोर्ट मार्शल या मॉब जस्टिस की भाषा लोकतांत्रिक प्रशासन की नहीं, बल्कि तमाशाई शासन शैली की प्रतीक है।"

बिहार में जमीन विवाद की समस्या- नंबर 1
बिहार में सबसे ज्यादा समस्या जमीन के म्यूटेशन को लेकर है। म्यूटेशन का मतलब है जमीन का मालिकाना हक जानने का आधिकारिक प्रमाण। इसे दाखिल-खारिज कहते हैं। इसमें जिसकी जमीन होती है, उसके रिकॉर्ड से निकाल कर रजिस्ट्री के जरिए उतनी जमीन खरीदने वाले खरीदार के रिकॉर्ड में चढ़ाई जाती है। जमीन की रजिस्ट्री विक्रेता-खरीदार के बीच का मामला होता है और उसे रजिस्ट्रार कार्यालय के सामने यह डीड करनी होती है, इसलिए यह प्रक्रिया तो हो जाती है। लेकिन, अंचल कार्यालय पर दाखिल-खारिज अटकाने का आरोप लगता है। यह निगरानी के छापों में भी साबित हो चुका है कि म्यूटेशन के लिए अधिकारी कितना घुमाते हैं और कितनी वसूली करते हैं। 

यह हालत तब है, जबकि म्यूटेशन आवेदन को स्वीकार या रद्द करने के लिए समय सीमा तय है, लेकिन इसके बावजूद अंचल अधिकारी और राजस्व कर्मचारी किसी न किसी बहाने से इसे लटका कर रखते हैं या फाइल ट्रांसफर करते रहते हैं। अटका कर वसूली करने वालों को जब निगरानी विभाग ने दबोचा तो यह भी सामने आया कि बगैर प्रमाण के किसी खरीदार के दाखिल-खारिज आवेदन पर जमीन विवादित बताई गई तो कभी बगैर किसी दस्तावेज को देखे ही टिप्पणी कर दी गई कि जमीन के मालिकाना हक की लड़ाई कोर्ट में है। इसे साबित करने के लिए कई बार किसी तीसरे पक्ष से ही आपत्ति दर्ज करवा लेने का भी प्रमाण सामने आया। मतलब, लाखों-करोड़ों खर्च कर जमीन रजिस्ट्री करवाने वाले लोग दाखिल-खारिज नहीं होने से मालिकाना हक से वंचित रह जाते हैं। इसके बगैर सरकार के रिकॉर्ड में उसका नाम नहीं दिखता है।

बिहार में जमीन विवाद की समस्या- नंबर 2
दूसरे की जमीन पर फर्जी कागजातों के जरिए कब्जा करने वाले भी अंचल के पूरे सिस्टम को कब्जे में रखते रहे हैं। फर्जी कागजात भी अंचलों से ही यह बनवाते रहे हैं। यहां तक की जमाबंदी के रजिस्टर-2 तक में फर्जीवाड़ा होता रहा है। एक बार यह उलटफेर कर लिया तो फर्जी प्रमाण के आधार पर ही जमीन की रसीद कट जाती है। इसी रसीद के आधार पर सबसे ज्यादा अवैध कब्जों का मामला सामने आता है। इस तरह से कब्जा करने वाले उन लोगों को ज्यादा परेशान कर रहे, जो गांव-जमीन से दूर रह रहे या जमीन पर कम जाते हैं। एक तरफ फर्जी कागज के लिए अंचल में पैसे देकर आधार तैयार करते हैं तो दूसरी तरफ कभी टाट-फूंस की झोपड़ी तो कभी बांस-बल्ले से घेरकर कब्जा करते हैं। बहुत समय तक किसी ने नहीं देखा तो चापाकल गड़वा कर या कच्चा-पक्का निर्माण कर लंबे समय से मालिकाना हक साबित करने के लिए माहौल बनाते हैं। खास बात यह भी है कि ऐसा करने वाले राज्य के कई बड़े नेताओं से भी साठगांठ रखते हैं, ताकि स्थानीय प्रशासन उसपर हाथ डालने से पहले सौ बार सोचे। सोमवार को मुजफ्फरपुर के कांटी के तत्कालीन सीओ को निलंबत करने का आदेश इसी का एक प्रमाण है। इस मामले में सरकार की जमीन का ही फर्जी कागजात के आधार पर भू-माफिया ने दाखिल-खारिज तक करा लिया था।

बिहार में जमीन विवाद की समस्या- नंबर 3
सरकार की ओर से परिमार्जन की सुविधा दी गई है। इससे दाखिल-खारिज या जमाबंदी में सुधार किया जाता है, लेकिन परिमार्जन, यानी मामूली सुधार के भी मामलों को जानबूझकर किसी ने किसी पेच के नाम पर लटका कर रखा जाता है। इसमें अवैध वसूली के आरोप लगते हैं। निगरानी ब्यूरो ने ऐसे कई मामलों में घूस लेते गिरफ्तारी भी की है। हालत यह है कि वर्षों से परिमार्जन का मामला भी लंबित है। इसी क्रम में निर्देश दिया गया है कि परिमार्जन अब 15 दिनों में होगा। परिमार्जन प्लस के तहत प्राप्त आवेदनों में लिपिकीय-टंकण भूल या लोप से जुड़ी त्रुटियों का सुधार 15 कार्य दिवस में किया जाएगा। अन्य जमाबंदी संबंधी त्रुटियों का सुधार 35 कार्य दिवस में होगा। छूटी हुई जमाबंदी को ऑनलाइन करने का कार्य 75 कार्य दिवस में निर्धारित किया गया है। यदि इन मामलों में भू-मापी (नापी) की आवश्यकता भी होती है तो भी ऐसे मामलों का निष्पादन 75 कार्य दिवस में अनिवार्य रूप से करने की सीमा तय की गई है।

बिहार में जमीन विवाद की समस्या- नंबर 4
अब तक पारिवारिक बंटवारे के लिए कोर्ट कचहरी का चक्कर लगाना पड़ता था। बिहार में सबसे ज्यादा मामले पारिवारिक बंटवारे के कचहरियों में लंबित हैं। पारिवारिक बंटवारे के कारण मारपीट की घटनाएं रोज हो रही हैं। बीच-बीच में हत्याएं भी हो रहीं। पुलिस थानों में केस दर्ज हो रहा है। कोर्ट पर केस का प्रेशर बढ़ रहा है। इसे लेकर विजय कुमार सिन्हा ने एक बड़ा फैसला लिया है कि पारिवारिक बंटवारा अब ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से होगा। इसके लिए पोर्टल 27 दिसंबर से शुरू कर दी गई है। अब अगर कोई एक हिस्सेदार भी चाहे और आवेदन करे तो पूरे परिवार का जमीनी बंटवारा अंचल से हो जाएगा। अब तक सभी हिस्सेदारों की सहमति के बावजूद पारिवारिक बंटवारे के लिए वंशावली से लेकर पुराने कागजातों की लंबी मांग के नाम पर लटकाने की परंपरा रही है। 

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