Bihar SIR : राबड़ी राज के बिहार में कितने दिनों चला था मतदाता गहन पुनरीक्षण? SIR पर जवाब जानकर तेजस्वी भी सन्न
Election Commission : बिहार के बाद देश के बाकी राज्यों में भी मतदाताओं का विशेष गहन पुनरीक्षण होगा। पश्चिम बंगाल का नंबर तो आने ही वाला है। बवाल है कि महज 30 दिनों में यह कैसे संभव हो सकता है? लेकिन, जवाब चौंकाने वाला है। सवाल उठाने वाले भी चौंक गए।

विस्तार
बिहार में इसी साल चुनाव है। समय अधिकतम तीन महीने का बचा होगा। इसी बीच भारत निर्वाचन आयोग ने 25 जून से मतदाताओं के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) शुरू करा दिया और यह 26 जुलाई तक चलेगा। इसके बाद सारे प्रपत्र जमा होंगे और 1 अगस्त को ड्राफ्ट मतदाता सूची जारी होगी और उस दिन से 1 सितंबर तक दावा किया जा सकेगा कि किनका छूट गया। बिहार में विपक्ष इतने कम समय, यानी 25 जून से 26 जुलाई तक घर-घर पुनरीक्षण को लेकर हंगामा कर रहा है। हंगामे में दूसरे राज्यों को शामिल कराने के लिए बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव कूद चुके हैं। दक्षिण भारतीय राज्यों के नेताओं के साथ-साथ राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव को भी चिट्ठी लिख चुके हैं। लेकिन, गुरुवार को बिहार विधानसभा में एक ऐसी बात हो गई कि तेजस्वी यादव भी हक्काबक्का रह गए। सवाल-जवाब में समझें, आज क्या आया सामने और यह कैसे अन्य राज्यों पर भी डालेगा असर?

हर चुनाव के पहले मतदाता पुनरीक्षण होता है। यह अलग कैसे?
किसी भी राज्य में किसी भी तरह का चुनाव होता है तो एक बार पुनरीक्षण जरूर होता है। इस पुनरीक्षण के दौरान कोई नया मतदाता अपना नाम जुड़वाता है। कोई मृत मतदाता का नाम हटवाता है। यह एक सामान्य पुनरीक्षण होता है। गहन पुनरीक्षण अलग है।
गहन पुनरीक्षण में क्या होता है और इसकी क्या प्रक्रिया होती है?
गहन पुनरीक्षण में चुनाव आयोग अपने प्रतिनिधि के रूप में बूथ लेवर ऑफिसर (BLO) को घर-घर भेजता है। घर में जो पहले से वोटर हैं, उनका वेरीफिकेशन होता है। नए वोटरों को जोड़ने की प्रक्रिया तो होती ही है, लेकिन सबसे ज्यादा यह देखा जाता है कि कौन अब जीवित नहीं या यहां नहीं रहकर कहीं और का वोटर बन चुका है।
इस बार के गहन पुनरीक्षण से पहले बिहार में यह कब हुआ था?
इससे पहले बिहार में 2003 में गहन पुनरीक्षण किया गया था। उसके बाद से हर तरह के चुनाव के पहले सामान्य पुनरीक्षण की प्रकिया की जाती रही है। इस बार गहन पुनरीक्षण 25 जून से 26 जुलाई तक किया जा रहा है। उसके बाद ड्राफ्ट वोटर लिस्ट का प्रकाशन कर दावा-आपत्ति ली जाएगी।
26 जुलाई के बाद क्या होगा, अगर उसी समय तक सबकुछ हो गया है तो?
नए मतदाता भी जुड़ेंगे। कोई वेरीफिकेशन से छूटा हो या जीवित होते भी मृत बताया गया हो या अपने बूथ का वोटर होते हुए भी उसका नाम हट गया हो तो उसकी आपत्ति पर जांच होगी और नाम जोड़ लिया जाएगा। जिनके पास बताए गए दस्तावेज नहीं होंगे, उनका भौतिक सत्यापन किया जाएगा कि वह वास्तव में उसी विधानसभा क्षेत्र के पारंपरिक-वंशानुगत वोटर हैं।
तो, फिर विपक्ष को परेशानी किस बात की है, जिसके कारण वोट बहिष्कार की बात है?
विपक्ष का कहना है कि लोकसभा चुनाव के बाद ही इसे करा लिया जाना चाहिए था। बिहार विधानसभा चुनाव के ठीक पहले यह जल्दबाजी में किया जा रहा है। विपक्ष के अनुसार यह प्रक्रिया 30 दिनों के अंदर की ही नहीं जा सकती है। असल आपत्ति 30 दिनों को लेकर ही है। सुप्रीम कोर्ट में जो मामला है, उसमें कहा गया है कि चुनाव आयोग नागरिकता की जांच कर रहा है। मंत्री विजय कुमार चौधरी ने गुरुवार को इस सवाल पर कहा कि "संविधान में लिखा है कि जिसे नागरिकता मिली हुई है, उसके पास ही मताधिकार है। विशेष गहन पुनरीक्षण भी संविधान और लोक प्रतिनिधित्व कानून के तहत हो रहा है। यहां रहने वाले किसी भी शख्स को मताधिकार तभी मिलेगा, जब वह भारत का नागरिक हो। नागरिक होगा तो कोई उससे मताधिकार नहीं छीन सकता। राज्य सरकार इसपर नजर रख रहा है और राजनीतिक दल भी सक्रिय हैं कि किसी नागरिक से मताधिकार नहीं छिने।
भारत निर्वाचन आयोग का क्या दावा है?
भारत निर्वाचन आयोग का दावा है कि उसने 23 जुलाई तक बिहार की मौजूदा मतदाता सूची के 98.01% मतदाताओं का वेरीफिकेशन पूरा कर लिया है। इनमें 20 लाख मृत मतदाताओं के नाम पाए गए। मतलब, इनके नाम हटाए जाएंगे। 28 लाख स्थायी रूप से प्रवास कर चुके मतदाताओं के नाम पाए गए। मतलब, जो अब वोटर लिस्ट वाले विधानसभा क्षेत्र से स्थायी तौर पर निकल कर कहीं और रह रहे हैं। इसके अलावा, 7 लाख मतदाताओं ने अपना नाम एक से ज्यादा जगह करा रखा है, मतलब वह एक ही जगह के वोटर रहेंगे जहां के लिए वेरीफिकेशन कराया होगा इस बार। चुनाव आयोग के अनुसार 23 जुलाई तक बिहार की मतदाता सूची में से 1 लाख मतदाताओं का कोई पता नहीं चल पा रहा। इनकी कोई जानकारी अभी नहीं है। दावा-आपत्ति में कुछ लौटें तो लौटें। इसके अलावा, चुनाव आयोग का कहना है कि 15 लाख मतदाताओं ने प्रारूप लेकर अभी तक वापस नहीं किया है। और, अब तक 7.17 करोड़ मतदाताओं (90.89%) के फॉर्म प्राप्त होकर डिजिटाइज्ड हो चुके हैं।
जब 98 प्रतिशत से ज्यादा का वेरीफिकेशन हो गया तो अब काम लगभग पूरा होने पर है। फिर रद्द कराने की बात क्यों?
विपक्ष का कहना है कि दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और अनपढ़ लोग भारतीय जनता पार्टी के वोटर नहीं हैं, इसलिए उसी के कहने पर चुनाव आयोग बिहार के ऐसे वोटरों को मतदाता सूची से गायब करने की साजिश रच रहा है। इसी कारण इतने कम समय में यह सब किया जा रहा है कि मांगे गए कागजात ऐसे लोग जमा नहीं कर पाएं और मताधिकार छिन जाए।
30 दिनों के पहले ही 98 प्रतिशत से ज्यादा का वेरीफिकेशन हो गया। पिछली बार कितने समय में हुआ था?
निर्वाचन आयोग यह जानकारी पहले देता तो शायद हंगामा नहीं बढ़ता। गुरुवार को बिहार विधानसभा में जब विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने 30 दिनों को अनुपयुक्त बताया तो राज्य की नीतीश कुमार सरकार के मंत्री विजय कुमार चौधरी ने बताया कि 2003 में जब लालू प्रसाद यादव की पत्नी राबड़ी देवी मुख्यमंत्री थीं तो यह गहन पुनरीक्षण 30 दिनों में कराया गया था। तब 15 जुलाई 2003 से 14 अगस्त 2003 के बीच घर-घर जांच की गई थी।
जब उतना ही समय दिया गया तो क्या आबादी बढ़ने को लेकर हंगामा मचेगा?
लोकतंत्र में विरोध तो संभव है, लेकिन जहां तक उस समय की आबादी और मौजूदा जनसंख्या का सवाल है तो अभी कई गुना है। लेकिन, उस समय कंप्यूटराइज्ड फॉर्म, भरे हुए डाटा, डाउनलोड-अपलोड आदि की कोई व्यवस्था नहीं थी कि इतनी तेजी से काम हो। जहां तक घर-घर जांच की बात है तो तेजस्वी यादव पिछली सरकार में जब उप मुख्यमंत्री थे तो बिहार में उसके पहले बनी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के फैसले को आगे बढ़ाते हुए जातीय जनगणना कराई गई थी। मंत्री विजय कुमार चौधरी ने यह याद दिलाते हुए गुरुवार को बताया कि तब 7 जनवरी 2023 से 21 जनवरी 2023 के बीच पूरे बिहार में घर-घर जाकर सर्वे का काम महज 15 दिनों में करा लिया गया था।
बिहार में यह प्रक्रिया पूरी हो गई तो आगे क्या होगा?
यह प्रकिया पहले चरण में पूरी होने वाली है। इसके बाद अगस्त तक तमाम दावे-आपत्तियों को देखा जाएगा। असल विवाद का समय वही रहेगा और अगर उस समय सबकुछ ठीक से निकल गया तो चुनावा आयोग एक-एक कर या एक साथ भी कई राज्यों में इस तरह से गहन पुनरीक्षण कर वास्तविक वोटरों को खोजकर उनकी सूची प्रकाशित करेगा। बिहार के बाद, दूसरा लक्ष्य पश्चिम बंगाल होगा क्योंकि वहां सबसे ज्यादा बाहरी लोगों के वोटर बनने की बात अरसे से आती रही है।