Year Ender 2025: 15 साल बाद 2025 में क्या हुआ कि 2026 में राहें जुदा होने का खतरा! राजद-कांग्रेस में आगे क्या?
Mahagathbandhan News: बिहार में महागठबंधन की भविष्य पर सवाल उठने लगा है। गठबंधन के प्रमुख दल राजद और कांग्रेस के नेता एक-दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोल रहे हैं। बात इतनी बढ़ गई कि अब इनके ही नेता अकेले चलने की बात कह रहे हैं। अब तक ऐसा क्या हुआ और नए साल 2026 में क्या दोनों दल साथ रहेंगे? आइए जानते हैं पूरी बात...
विस्तार
साल 2025 को महागठबंधन याद नहीं रखना चाहेगी। इस साल चुनावी हार और आंतरिक कलह ने महागठबंधन को कमजोर किया। बिहार विधानसभा परिणाम आने के बाद महागठबंधन महज 35 सीटों पर सिमट गया। चुनाव के वक्त सीट बंटवारे को लेकर महागठबंधन के दलों के बीच खींचतान शुरू हुई थी। हार के बाद दरार दिखने लगी। बात इतनी बढ़ गई राजद और कांग्रेस के नेता एक-दूसरे पर हार का ठीकरा फोड़ने लगे। कांग्रेस ने तो राजद से अलग होने की बात तक कह दी। अब सवाल उठ रहा है कि क्या 2026 में महागठबंधन बचेगा? आइए जानते हैं।
कांग्रेस ने कहा- अकेले ही चलना चाहिए
"2026 में बिहार में महागठबंधन बचेगा?" यह सवाल इसलिए उठने लगा क्योंकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शकील अहमद खान ने स्पष्ट कह दिया गया कि अब साथ रहने का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि बिहार में अब महागठबंधन जैसी कोई चीज ही नहीं बची है। कांग्रेस को बिहार में अकेले ही चलना चाहिए। राजद के साथ गठबंधन करने से कोई लाभ नहीं मिल रहा है। बिहार विधानसभा चुनाव का रिजल्ट सबने देख लिया है। इसलिए अलग होना ही बेहतर है।
राजद ने कहा- आत्मचिंतन करे कांग्रेस
शकील अहमद के इस बयान के बाद राष्ट्रीय जनता दल के प्रवक्ता मृत्युजंय तिवारी ने कहा कि बिहार में कांग्रेस को राजद से ही मजबूती मिलती है। राजद ही कांग्रेस की ताकत भी है। जनता ने जो भी वोट दिया है, वह तेजस्वी यादव के काम को देखकर। जमीन पर राजद के कार्यकर्ता मेहनत करते हैं। इसलिए कोई भी किसी मुलागते में न रहे। बिहार में कांग्रेस पार्टी सिमटती जा रही है। इसलिए उनके नेताओं को बयानबाजी छोड़कर आत्मचिंतन करनी चाहिए।
भाजपा ने कहा- जनता ने उखाड़ फेंका
भाजपा प्रवक्ता अरविंद कुमार सिंह ने कहा कि महागठबंधन जेल यात्रा के डर से बनने वाला गठबंधन था। यह एनडीए की विकास की गति को रोकने के लिए बनाया गया था। लेकिन, जब जनता ने एनडीए के काम को देखते हुए महागठबंधन को करारा जवाब दिया तो वहां भगदड़ मच गई। इनके प्रमुख नेता विदेश यात्रा पर निकल गए। इन्हें ही गठबंधन या अपनी पार्टी से कोई मतलब नहीं था। यह परिवारिक लाभ वाले नेताओं का गठबंधन था। इन्हें बिहार की जनता और विकास से कोई मतलब नहीं है। यह बढ़ते हुए बिहार को रोकने लिए कुछ परिवार के लोगों, दागी और बागी नेताओं को गठबंधन था। जब बिहार की जनता ने इन्हें उखाड़ फेंका तो अब कोई बात बाकी ही नहीं बचती है। हाल के दिनों में महागठबंधन के दल एक-दूसरे पर कैसे हमलावर हैं, यह जनता देख रही है। कांग्रेस नेता शकील अहमद खान ने एकदम सही कहा है।
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जदयू ने कहा- महागठबंधन का औचित्य नहीं
जदयू के मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि अगर कांग्रेस ने मैखिक आपत्ति जताई है तो उन्होंने उनके बड़े नेताओं ने लिखित में कहां दिया है कि तेजस्वी यादव उनके नेता नहीं है। वह पहले लिखित में विधानसभा अध्यक्ष को दे दें कि तेजस्वी यादव उनके नेता नहीं है। वैसे भी बिहार में महागठबंधन का कोई औचित्य नहीं है। जनता ने इस बार एनडीए की झोली में 202 सीटें देकर सारी बात स्पष्ट कर दी है। इसके बाद से ही इनके नेतृत्वकर्ता ही फरार हैं। इसलिए सारी बात साफ है कि अब बिहार में महागठबंधन का औचित्य नहीं है।
वरिष्ठ पत्रकार बोले- दोनों को एक-दूसरे की जरूरत
वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष कुमार ने कहा कि बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को राजद की जरूरत पड़ती है। लोकसभा चुनाव में राजद को कांग्रेस की जरूरत पड़ती है। दोनों पार्टी जानती है कि वह एक-दूसरे के बाद बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को टक्कर नहीं दे सकती है। राजद मुस्लिम-यादव समीकरण पर और सवर्ण-दलित समीकरण पर फोकस करती है। बिहार में चुनाव लड़ने के लिए दोनों को एक-दूसरे की जरूरत है। वहीं महागठबंधन अन्य सहयोगी वामदल, वीआईपी और आईआईपी हर हाल में राजद के साथ ही रहेंगे। इनके पास राजद के साथ रहने से बेहतर विकल्प फिलहाल नहीं है। राजद और कांग्रेस के नेता भले ही एक-दूसरे को भला-बुरा कहते हो लेकिन इनके आलाकमान यानी राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के सुर एक हैं। क्योंकि इन दोनों को पता है कि बिहार में एनडीए का रथ यह लोग अकेले नहीं रोक सकते हैं। इसलिए अगर कुछ महीनों के लिए यह लोग अलग भी होते हैं तो विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में एकसाथ हो जाएंगे। आशुतोष कुमार ने कहा कि दोनों दल कमियां छिपाने के लिए एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़ रहे हैं। लालू प्रसाद के एक्टिव रहते राजद काफी मजबूत थी। अब राजद महज 25 सीटों पर सिमट चुकी है। इसलिए नया साल दोनों पार्टियों के लिए चुनौती पूर्ण होगा। नए साल में राजद और कांग्रेस को बिहार में मजबूत होने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ेगी।
जानिए, पिछले 15 साल के विधानसभा चुनाव में राजद-कांग्रेस की स्थिति
- 2010 के विधानसभा चुनाव में राजद और कांग्रेस ने अलग-अलग चुनाव लड़ने का फैसला किया था। राजद ने करीब 168 सीटों पर चुनाव लड़ा और 22 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस ने 243 सीटों पर लड़ा और केवल चार सीटें जीत सकी।
- 2015 के विधानसभा चुनाव में राजद और कांग्रेस महागठबंधन के तहत एक साथ आए थे। गठबंधन में राजद ने करीब 101 सीटों पर लड़ा और 80 जीतें हासिल कीं, जबकि कांग्रेस ने 41 सीटों पर चुनाव लड़कर 27 जीतें हासिल कीं।
- 2020 के विधानसभा चुनाव में राजद और कांग्रेस फिर महागठबंधन के भाग थे। राजद ने 144 सीटों पर लड़ते हुए 75 जीते, और कांग्रेस ने 70 सीटों पर लड़ा और 19 जीतें हासिल कीं।
- 2025 के विधानसभा चुनाव में दोनों दल फिर महागठबंधन में रहे। राजद ने 143 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की और 25 जीतें हासिल कीं, जबकि कांग्रेस ने 61 सीटों पर लड़ा और सिर्फ 6 जीत पाई।
2025 के चुनाव में महागठबंधन के मुख्य घटक दलों में राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस, विकासशील इंसान पार्टी और वाम शामिल थे। रिज़ल्ट के अनुसार राजद ने 143 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसमें से 25 सीटें जीतीं, कांग्रेस ने 61 सीटों पर चुनाव लड़ा और 6 सीटें जीत पाईं। वहीं वीआईपी ने 18 सीटों पर उम्मीदवार उतारे लेकिन एक भी जीत नहीं मिल सकी और वामपंथी दलों (Left) ने 33 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए सिर्फ 3 सीटें जीतीं। इस तरह महागठबंधन कुल मिलाकर 35 सीटों तक सिमट गया।
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