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RBI: नए साल में आरबीआई से राहत की उम्मीद; ब्याज दरों में और कटौती संभव, रुपये के प्रबंधन पर रहेगी कड़ी नजर
अमर उजाला ब्यूरो/एजेंसी, नई दिल्ली
Published by: शिवम गर्ग
Updated Wed, 31 Dec 2025 06:56 AM IST
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सार
महंगाई में रिकॉर्ड गिरावट और मजबूत आर्थिक वृद्धि के बीच 2026 में आरबीआई से और प्रोत्साहन की उम्मीद है। हालांकि, रुपये की गिरावट पर काबू पाना सबसे बड़ी चुनौती रहेगा।
भारतीय रिजर्व बैंक
- फोटो : एएनआई (फाइल)
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विस्तार
खुदरा महंगाई के मोर्चे पर बड़ी राहत के साथ मजबूत विकास दर ने इस बात की उम्मीद बढ़ा दी है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) नए साल यानी 2026 में भी प्रोत्साहन दे सकता है। इस बीच, सबकी नजरें रुपये के प्रबंधन पर रहेंगी, जिसमें हालिया महीनों में लगातार गिरावट देखने को मिली।
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रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंची खुदरा महंगाई के बीच आरबीआई ने 2025 में छह मौद्रिक नीति समीक्षाओं में से चार में अपनी प्रमुख नीतिगत दरों में कुल 1.25 फीसदी की कटौती की। गवर्नर संजय मल्होत्रा ने इस साल फरवरी में अपने पहले मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) बैठक से ही वृद्धि को समर्थन देने के लिए दरों में कटौती की शुरुआत की थी। इसके बाद जून में भी उन्होंने रेपो दर में 0.50 फीसदी की बड़ी कटौती की, क्योंकि कम महंगाई से नीतिगत स्तर पर ढील देने की महत्वपूर्ण गुंजाइश बनी।
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नौकरशाह से केंद्रीय बैंक के गवर्नर बने मल्होत्रा ने पद संभालने के एक वर्ष पूरे होने पर मौजूदा स्थिति को भारत के लिए दुर्लभ रूप से संतुलित आर्थिक दौर करार दिया। इसमें अमेरिका के टैरिफ और भू-राजनीतिक बदलाव जैसे प्रतिकूल कारकों के बावजूद वृद्धि दर आठ फीसदी से ऊपर रही और महंगाई एक फीसदी से नीचे रही। गवर्नर ने यह भी स्पष्ट किया कि आगे चलकर आर्थिक वृद्धि की रफ्तार कुछ नरम पड़ सकती है और अब तक घट रही खुदरा महंगाई भी बढ़कर आरबीआई के चार फीसदी के लक्ष्य के करीब पहुंच जाएगी।
रुपये में लगातार गिरावट थामना सबसे बड़ी चुनौती
आरबीआई ने 2025 में अपने 90 वर्ष पूरे किए और इस साल उसके लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक रुपया का डॉलर के मुकाबले 90 के स्तर से नीचे फिसलना रहा। केंद्रीय बैंक का कहना है कि उसका बाजार में हस्तक्षेप किसी स्तर को बचाने के लिए नहीं, बल्कि उतार-चढ़ाव को कम करने के लिए होता है।
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आरबीआई ने घरेलू मुद्रा के कमजोर होने के बीच इस साल के पहले नौ महीनों में 38 अरब डॉलर से अधिक का विदेशी मुद्रा भंडार बेचा। विशेषज्ञों का मानना है कि रुपये का प्रबंधन आगे भी केंद्रीय बैंक के लिए चुनौतीपूर्ण बना रहेगा। रुपया इस साल अब तक 4.79 फीसदी टूट चुका है। 31 दिसंबर, 2024 को यह डॉलर के मुकाबले 85.64 के स्तर पर बंद हुआ था।
वास्तविक महंगाई के आंकड़ों पर उठे सवाल
चालू कीमतों पर जीडीपी वृद्धि कम रहने की चिंताओं के बीच मल्होत्रा ने कहा, आरबीआई के कदम वास्तविक जीडीपी के आधार पर तय होते हैं, जो महंगाई घटाने के बाद सामने आती है। वास्तविक महंगाई के आंकड़े आरबीआई के अनुमानों से काफी कम रहे, जिससे केंद्रीय बैंक की पूर्वानुमान क्षमता को लेकर कुछ सवाल उठे। इस पर डिप्टी गवर्नर पूनम गुप्ता ने कहा, आकलन में किसी तरह का प्रणालीगत पक्षपात नहीं है।
मुख्य आय में गिरावट ने दिया बैंकों को झटका
रेपो दर कटौती और उधारी लागत में गिरावट की स्पष्ट अपेक्षाओं के चलते आरबीआई के कदम से बैंकों को झटका लगा। शुद्ध ब्याज मार्जिन (एनआईएम) में कमी और मुख्य आय में गिरावट से बैंक प्रभावित हुए। हालांकि, अर्थव्यवस्था में पर्याप्त नकदी सुनिश्चित करने और खास तौर पर नियामकीय ढील जैसे कदमों ने असर को कुछ हद तक कम किया।
ग्राहकों की शिकायतों का तेजी से समाधान पर रहा जोर
आरबीआई ने पूरे साल नियामकीय ढील के लिए कई उपाए किए गए। अक्तूबर की मौद्रिक नीति घोषणा इसका चरम रही, जिसमें 22 नियामकीय उपाय शामिल थे। इनमें से कुछ उपाय आरबीआई जैसे संस्थान के लिए असामान्य थीं। इनमें बैंकों को भारतीय कंपनियों की ओर से वैश्विक अधिग्रहणों के लिए वित्तपोषण की अनुमति देना शामिल है। मल्होत्रा का जोर ग्राहकों के प्रति संवेदनशीलता और शिकायतों का तेजी से समाधान करने पर रहा है, जो उनके कई भाषणों और टिप्पणियों में झलकता रहा है।
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