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हरियाणा में भाजपा पस्त: उल्टा पड़ा हर दांव... सत्ता विरोध व जाट वोटों ने कांग्रेस को दिलाई पांच सीटों पर जीत

विजय कुमार गुप्ता, अमर उजाला, चंडीगढ़ Published by: निवेदिता वर्मा Updated Wed, 05 Jun 2024 06:11 AM IST
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सार

हरियाणा में प्रत्याशी घोषित करने में पिछड़ी कांग्रेस ने सोशल इंजीनियरिंग और क्षेत्रीय समीकरण को साध बाजी मार ली। जनादेश भाजपा व खासकर मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के लिए मंथन का विषय है कि विधानसभा चुनाव तक सत्ता विरोध को वह कैसे कम करते हैं। वहीं कांग्रेस में भूपेंद्र हुड्डा के नेतृत्व पर मोहर लगी है। हाईकमान में पैठ बढ़ने से उन्हें और फ्री हैंड मिलना तय है।

Political Analysis of Haryana Loksabha Election
भाजपा और कांग्रेस - फोटो : अमर उजाला

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सत्ता का विरोध दूर करने के लिए मुख्यमंत्री को देर से बदलना, जाट वोटों का ध्रुवीकरण रोकने के लिए जजपा से नाता तोड़ना... भाजपा का कोई दांव हरियाणा में काम नहीं आया। गुटबाजी व कमजोर संगठन के बावजूद कांग्रेस ने दस में से पांच सीटें जीत लीं। यह जनादेश विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा व नायब सिंह सैनी सरकार के लिए संकेत है। जजपा व इनेलो के लिए खतरे की घंटी।

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भाजपा को दोहरे सत्ता विरोध का सामना करना पड़ा। पिछली बार सभी दस सीटें दिलाने वाली मोदी लहर इस बार नहीं थी, बल्कि किसान केंद्र सरकार से खासे नाराज थे। इसका असर किसान आंदोलन प्रभावित सीटों अंबाला, सिरसा, हिसार में रहा। तीनों जगह भाजपा हारी। सरपंच और कर्मचारी भी राज्य सरकार से नाराज थे। इसे देखते हुए भाजपा ने मनोहर लाल को हटा नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री तो बनाया, लेकिन फायदा नहीं हुआ। पन्ना प्रमुखों के सम्मेलन से लेकर हर विधानसभा क्षेत्र में सभाएं करने के बावजूद भाजपा के नेता विरोध कम नहीं कर पाए।
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वोटों का ध्रुवीकरण नहीं रुका
जजपा से अलग होकर जाट वोटों का ध्रुवीकरण भाजपा रोक नहीं सकी। विधायकों को संजोकर रखने में नाकाम जजपा ने मतदाताओं का विश्वास भी खोया और कांग्रेस को उसका परंपरागत जाट वोट मिला। रोहतक में दीपेंद्र हुड्डा और हिसार में जयप्रकाश की जीत का बड़ा कारण यह रहा। जाट वोटों की राजनीति करते रहे क्षेत्रीय दलों जजपा व इनेलो के ज्यादातर प्रत्याशी बुरी तरह हारे और वोट प्रतिशत घटकर एक के आसपास रह गया। दोनों का भविष्य संकट में है।

शहरों में खोया वोट बैंक
शहरों में भाजपा ने वोट बैंक खोया है। नतीजतन उसका वोट शेयर जो 2019 में 58.2 प्रतिशत था, घटकर 46 आ गया। संगठन पूरा नहीं होने और गुटबाजी के बावजूद कांग्रेस की सीटें शून्य से पांच हुईं हैं और वोट शेयर 28.5 से बढ़कर 44 प्रतिशत। कांग्रेस ने शहरी वोट बैंक में सेंध लगाई है। भाजपा को न उसके राष्ट्रीय मुद्दों जैसे कि राम मंदिर, अनुच्छेद 370 या मोदी नाम का लाभ मिला और न राज्य सरकार के काम का। संविधान बदलने व अग्निवीर के मुद्दे कांग्रेस भुना गई। नतीजतन अंबाला, सोनीपत में मोदी और हिसार, रोहतक में शाह की रैली के बावजूद भाजपा जीत न सकी।
पहले प्रत्याशी घोषित करने के बावजूद पांच सांसदों की जगह दूसरे चेहरे उतारने का भाजपा को खास फायदा नहीं हुआ। सिरसा, हिसार, सोनीपत में वह फिर भी हारी। 
 

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